हार के बाद बिखरता विपक्ष

By: Jun 6th, 2019 12:05 am

2019 के आम चुनाव से पहले और प्रचार के दौरान विपक्ष समवेत स्वर में शोर मचाया करता था कि संविधान, लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाओं को बचाना है और मोदी को हराना है। यदि मोदी-शाह फिर सत्ता में आ गए, तो भविष्य में कोई चुनाव ही नहीं होगा। भाजपा को नए सिरे से जनादेश मिला, मोदी फिर प्रधानमंत्री बन गए, लेकिन अब विपक्ष चिंतित नहीं है, बल्कि आपस में बिखर गया है। चुनाव के उसी दौर में प्रधानमंत्री मोदी ने, खासकर उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के संदर्भ में भविष्यवाणी की थी कि 23 मई आने दीजिए, ये आपस में कपड़े फाड़ेंगे। बुआ-बबुआ के गठबंधन को ‘महामिलावटी’ भी करार दिया था। आज यथार्थ सामने है। सपा-बसपा गठबंधन औपचारिक तौर पर टूट चुका है। दोषारोपण भी शुरू हो गया है। गठबंधन का फायदा बसपा को खूब मिला, जिसके 10 सांसद चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं। 2014 में मायावती की पार्टी का एक भी सांसद चुना नहीं गया था। बहरहाल राष्ट्रीय पटल पर देखें, तो विपक्ष के ‘हाथ’ छूट रहे हैं। विपक्ष बिखर रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, कांग्रेस के कद्दावर नेता, राधाकृष्ण विखे पाटिल ने पार्टी ही छोड़ दी है। विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया है। अब्दुल सत्तार का सार्वजनिक तौर पर कहना है कि कांग्रेस के कमोबेश 10 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। वे भाजपा में शामिल हो सकते हैं। वैसे महाराष्ट्र में इसी अक्तूबर से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस आलाकमान में तो इस्तीफों का तांता लगा है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे पर संशय बना हुआ है। कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) की गठबंधन सरकार है। वह कब तक रहेगी, कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता। कई कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के ‘अहंकारी’ व्यवहार से दुखी हैं और पार्टी छोडऩे की धमकियां दे रहे हैं। यदि हिंदी और उत्तर भारत के राज्यों की तरफ देखें, तो राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच तनाव पसरा है। दोनों का मानना है कि चुनावी हार की जिम्मेदारी दूसरा नेता ले। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन सभी 25 लोकसभा सीटें भाजपा ने जीती हैं। कांग्रेस का सूपड़ा साफ। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस सरकार है, लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी परंपरागत सीट छिंदवाड़ा पर ही पुत्र नकुल नाथ की जीत तय कर सके हैं। शेष 28 सीटें भाजपा की झोली में गई हैं। नतीजतन कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया बनाम दिग्विजय सिंह की राजनीतिक स्थितियां बिलकुल स्पष्ट दिख रही हैं। विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भाजपा को वाकई रौंद दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव में 11 में से 9 सीटें भाजपा ने हासिल की हैं। यदि हम कोलकाता की ओर चलें, तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इतनी बौखलाई और तपतपाई हैं कि खुद के सामने ही भाजपा दफ्तर का ताला तुड़वा रही हैं और उस पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा किया है। बंगाल में बम विस्फोट, हिंसा, तोड़ फोड़ अब भी जारी है। सवाल है कि क्या औसत चुनाव हारने के बाद विपक्ष ऐसी ही भूमिका में आ जाता है? सपा-बसपा गठबंधन को लेकर तो बड़ी निर्णायक व्याख्याएं की जा रही थीं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मंच से चीखने के अंदाज में बोला करते थे- ‘प्रधानमंत्री…सिर्फ चार दिन… आपके सामने नया प्रधानमंत्री होगा।’ प्रधानमंत्री बनने के सपने तो चूर-चूर हुए, लेकिन लंबे समय तक चलने वाले गठबंधन के दावे भी ध्वस्त हुए। अब सपा और बसपा 2022 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के सपने के साथ आंदोलित होंगी। बेशक यह गठबंधनों का दौर है। भाजपा ने अपने बूते 303 सांसदों का अपार बहुमत हासिल करने के बावजूद मोदी कैबिनेट में सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व दिया है। बेशक बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार का जनता दल-यू ऐसी भागीदारी पर सहमत नहीं हुआ, लेकिन एनडीए बरकरार है। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका भी बराबर की मानी गई है, लेकिन आसार ऐसे हैं कि विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है। अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ छोड़ कर विपक्ष एक ही मंच पर मौजूद नहीं है। दरअसल ये विपक्षी दल बुनियादी और मानसिक तौर पर इक_ा कभी हुए ही नहीं, लिहाजा विपक्षी एकता छिन्न-भिन्न रही है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App