आदमी का अहंकार

By: Jul 6th, 2019 12:02 am

ओशो

 तुमने देखा विनम्र आदमी का अहंकार। वह कहता है मैं आपके पैर की धूल, मगर उसकी आंख में देखना, वह क्या कह रहा है। अगर तुम कहो कि आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, हमको तो पहले ही से पता था कि आप पैर की धूल हैं, तो वह झगड़ने को खड़ा हो जाएगा। वह यह कह नहीं रहा है कि आप भी इसको मान लो। यह कह रहा है कि आप कहो कि आप जैसा विनम्र आदमी! दर्शन हो गए। बड़ी कृपा! वह कह रहा है कि आप खंडन करो कि आप और पैर की धूल? आप तो स्वर्ण शिखर हैं। आप तो मंदिर के कलश हैं। जैसे-जैसे तुम कहोगे ऊंचा, वह कहेगा कि नहीं, मैं बिलकुल पैर की धूल हूं, लेकिन जब कोई कहे कि मैं पैर की धूल हूं। तुम अगर स्वीकार कर लो कि आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, सभी ऐसा मानते हैं कि आप बिलकुल पैर की धूल हैं, तो वह आदमी फिर तुम्हारी तरफ कभी देखेगा भी नहीं।

वह विनम्रता नहीं थी। वह नए अहंकार का रंग था। अहंकार ने विनम्रता के वस्त्र ओढ़े थे। मेरे पास कई लोग आ जाते हैं, कहते हैं कि ऐसा कुछ मार्ग दें कि दुनिया में कुछ करके दिखा जाएं। क्या करके दिखाना चाहते हो। वे कहते हैं कि नाम रह जाए।हम तो चले जाएंगे, लेकिन नाम रह जाए। नाम रहने से क्या प्रयोजन? तुम्हारे नाम में और किसी की कोई उत्सुकता नहीं है, सिवाय तुम्हारे। जब तुम्हीं चले गए, कौन फिक्र करता है कि तुम्हारे नाम की और नाम बच भी गया तो क्या सार है। किन्हीं किताबों में दबा पड़ा रहेगा। तड़फेगा वहां। सिकंदर का नाम है, नेपोलियन का नाम है, क्या सार है, नहीं, लेकिन हमें बचपन से ये रोग सिखाए गए हैं। बचपन से यह कहा गया है कि कुछ करके मरना, बिना करे मत मर जाना। अच्छा हो तो अच्छा, नहीं तो बुरा करके मरना, लेकिन नाम छोड़ जाना। लोग कहते हैं, बदनाम हुए तो क्या, कुछ नाम तो होगा ही। अगर ठीक रास्ता न मिले, तो उल्टे रास्ते से कुछ करना, लेकिन नाम छोड़ कर जाना।  लोग ऐसे दीवाने हैं कि पहाड़ जाते हैं, तो पत्थर पर नाम खोद आते हैं। पुराना किला देखने जाते हैं, तो दीवारों पर नाम लिख आते हैं और जो आदमी नाम लिख रहा है, वह यह भी नहीं देखता कि दूसरे नाम पोंछ कर लिख रहा है। तुम्हारा नाम कोई दूसरा पोंछ कर लिख जाएगा। तुम दूसरे का पोंछ कर लिख रहे हो। दूसरों के लिखे हैं, उनके ऊपर तुम अपना लिख रहे हो और मोटे अक्षरों में, कोई और आ कर उससे मोटे अक्षरों में लिख जाएगा। किस पागलपन में पड़े हो। इससे अच्छा तो यह है कि कुछ ऐसा करो कि दुनिया तुम्हें भूल ही न पाए। अपना नाम बचाने के प्रयास को छोड़ कर दूसरों की भलाई के लिए काम करो, तो खुद-ब-खुद तुम्हारा नाम हर किसी की जुबान पर रहेगा। अपना अहंकार छोड़ कर विनम्रता की राह पर चलने से आप अपनी मंजिल तक पहुंच जाते हैं।


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