केनफ से परिवेश में निवेश

By: Jul 13th, 2019 12:04 am

आम हिमाचली अपने करियर की सुरक्षा में सरकारी नौकरी को अहमियत देता रहा है, लेकिन युवा पीढ़ी के संकल्पों को पढ़ा जाए तो व्यवस्थागत सरलीकरण से स्वरोजगार की नई राहें विकसित हो सकती हैं। जागृति के नए मुकाम पर स्वयं सहायता समूहों ने खुद को रेखांकित किया, तो स्टार्टअप जैसे नए आइडिया के दम पर आकाश में लिखने की कोशिश शुरू हुई है। कारोबार की पारंपरिक व्याख्या को बदलने के लिए सरकारी तौर पर वैकल्पिक रास्ते सशक्त किए जाएं, तो निवेश की परिपाटी हमारे भविष्य से जुड़ेगी। इस संबंध में कृषि व बागबानी विश्वविद्यालयों की उपाधियों का निवेश अगर सरकारी नौकरी में देखा गया, तो कहीं अनुसंधान या नवाचार की रिक्तता दर्ज हुई। प्रदेश में नए निवेश की हांक में आशा की कोंपलें नजदीक होते हुए भी मिट्टी से दूर हैं, तो कल हमारी जमीन पर उगेगा क्या। हम अगर चौसठ फीसदी वनों से ढके हैं, तो बाकी जमीन का भविष्य से क्या रिश्ता। क्या हिमाचल की कृषि-बागबानी उत्पादकता को कभी युवा पीढ़ी की महत्त्वाकांक्षा से जोड़ा गया या यह सोचा गया कि पढ़े-लिखे युवा को किस तरह गांव में समृद्ध किया जाए। न हम हरित, न सफेद और न ही नीली क्रांतियों के पहरुआ बने, तो परिवेश में निवेश की संज्ञा खाली रह गई। अतीत में जैतून की खेती को प्रचारित किया गया, लेकिन विश्वविद्यालय से विभागीय कसरतों के बीच पूरी संभावना दफन हो गई। फिर कहीं जैट्रोफा गूंजा, लेकिन समय की परीक्षा में यह अनुत्तरित होकर रह गया। बेशक तत्कालीन धूमल सरकार ने कार्बन क्रेडिट के तहत परिवेश से संसाधन ढूंढने की कोशिश की और एक दृष्टि विकसित हुई, लेकिन इस निवेश की कूवत भी निराश हो गई। कार्बन क्रेडिट की रैंकिंग में निवेश हिमाचल की आय का एक सहारा बन सकता है और इसके तहत निर्मल संसार की परिकल्पना में योगदान भी सुनिश्चित होगा। हिमाचल जैसे पर्वतीय क्षेत्र की शर्तों को देखते हुए कार्बन क्रेडिट के तहत हरित पट्टी का विस्तार शुरू हुआ और यह संयुक्त राष्ट्र से किसी भारतीय राज्य की पहली पेशकश है, जो सीधे पांच हजार परिवारों के आंगन से जुड़ती है। हिमाचल को हर साल चालीस हजार टन कार्बन डाइआक्साइड कम करनी है, तो 2025 तक परिवेश में यह निवेश अपना चौखा रंग छोड़ सकता है। आर्थिकी, विज्ञान और व्यापार की दृष्टि से हिमाचल को नई कृषि, बागबानी और वानिकी की दिशा में निवेश करना होगा। ऐसे में ईको मित्र उत्पादों की दिशा में बढ़ते हुए हिमाचली जंगल का आधार बदलना होगा, तो किसान की खेती भी। बिलासपुर के हरिमन शर्मा ने गर्म इलाकों में सेब उगाकर जो क्रांति पैदा की, क्या यह राज्य इसे कबूल कर पाया या सरकार आगे आकर इससे कुछ सीख पाई। इसी तरह डा. विक्रम शर्मा ने कॉफी की खेती को व्यावसायिक शक्ल देकर निचले हिमाचल का नजरिया बदल दिया, लेकिन विभागीय रस्में अभी इसे कृषि निवेश के रूप में नहीं देख पाई। जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच हिमाचल को जिस खेती को अपनाना होगा, उसमें ‘केनफ’ का नाम उभर कर सामने आता है। अफ्रीका और एशिया के कुछ देशों में ‘केनफ’ की चमत्कारिक खेती का असर दिखाई देने लगा है। चीन, म्यांमार, बांग्लादेश और थाईलैंड ने इस दिशा में बाजार पर पकड़ बना ली है, क्योंकि विश्वभर में ‘केनफ’ उत्पादों की मांग दस से पंद्रह फीसदी दर से हर साल बढ़ रही है। हिमाचल में केनफ की दो फसलें ली जा सकती हैं और इसके उत्पादन में सहयोग व निवेश करने में कई विदेशी कंपनियां तैयार हैं। अमरीका में रह रहे एक हिमाचली अजय परमार का मानना है कि अगर प्रदेश इस खेती को अपना ले, तो देश के सामने एक आदर्श राज्य बन सकता है। यह इसलिए भी क्योंकि केनफ के रेशे से पर्यावरण मित्र कागज से फर्नीचर व बायोफ्यूल से टेक्सटाइल तक इस्तेमाल बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए टोयटा गाडि़यों की आंतरिक सज्जा में 1990 से, जबकि बीएमडब्ल्यू भी अपनी इलेक्ट्रिक कार में इसके उत्पाद को प्रयोग में ला रही है। मलेशिया ने केनफ को अपना तीसरा बड़ा औद्योगिक उत्पाद बना दिया है। जाहिर है केनफ के माध्यम से वन और सामान्य खेती को बदल कर हिमाचल एक बड़ी छलांग लगा सकता है। क्या प्रदेश के कृषि व बागबानी विश्वविद्यालय इस दिशा में सरकारी धन का सही इस्तेमाल करते हुए नई क्रांति लाएंगे या केवल एक ढर्रा बनकर संभावनाएं कुंद होती रहेंगी।   


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App