ट्रिब्यूनल बंद करना सही फैसला

By: Jul 26th, 2019 12:01 am

अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ ने नकारा वकीलों का विरोध

शिमला – प्रशासनिक ट्रिब्यूनल पर कोर्ट अधिवक्ताओं के संताप को समझ से परे करार देते हुए प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी सेवाएं महासंघ ने इसे किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं बताया है। महासंघ के नवनिर्वाचित प्रदेशाध्यक्ष विनोद कुमार ने कहा है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में कर्मचारियों की सेवाओं के मामले जाते रहे हैं, न कि अधिवक्ताओं की सेवाओं से संबंधित,  तो इसलिए अधिवक्ताओं का यह विरोध कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करता है कि प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कुछ लोगों की अच्छी कमाई का यह सस्ता जरिया था। इस बात को कर्मचारियों पर छोड़ा जाना चाहिए कि वे अपने मामलों की लड़ाई ट्रिब्यूनल जैसी संस्था में रखना चाहते हैं या फिर उच्च न्यायालय में। विनोद कुमार ने कहा है कि ‘लॉ कमीशन ऑफ इंडिया’ ने भी अपनी रिपोर्ट में कुछ वर्ष पहले यह उल्लेख किया है कि ‘ट्रिब्यूनल किसी कोर्ट का विकल्प नहीं है, यह मात्र एक ऐसी अनुपूरक व्यवस्था है, जो केवल नियमों की व्याख्या करती है। 1986 में ट्रिब्यूनल के गठन के समय ही कर्मचारी संघों ने इसका विरोध किया था और उसके बाद कभी भी ट्रिब्यूनल ने प्रताडि़त कर्मचारी नेताओं और कर्मचारियों को न्याय नहीं दिया। यह एक ऐसी संस्था बन गई कि सरकार द्वारा प्रताडि़त कर्मचारियों पर सरकार के आदेशों पर ही ट्रिब्यूनल से मुहर लगवाई जाती रही है। ट्रिब्यूनल ने कर्मचारियों को न्याय देने के बजाय सरकारी फैसलों पर ही अपनी मुहर लगाई है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और उनकी कैबिनेट का यह फैसला कर्मचारियों की मांग पर कर्मचारियों के हित में लिया गया फैसला है, जिसे 21 जुलाई को महासंघ की आम सभा में बिलासपुर के किसान भवन में कर्मचारियों की संसद ने इस पर अपनी मुहर लगाकर सरकार के इस फैसले का पूर्ण समर्थन किया है। इसे लेकर महासंघ मुख्यमंत्री से मिलकर उनको सम्मानित करेगा।


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