दुर्गा सिंह के बाद ईश्वरी सिंह बैठे थे गद्दी पर
राजा दुर्गा सिंह की मृत्यु के उपरांत ईश्वरी सिंह 1977 से 2004 तक गद्दी पर बैठा। राजा दुर्गा सिंह की न तो कोई संतान थी और न ही सगा भाई। अतः उनके चचेरे भाई मियां गोपाल सिंह के पुत्र ईश्वरी सिंह को गद्दी प्राप्ति का पारिवारिक अधिकार मिला। इनका जन्म 17 अप्रैल, 1921 को हुआ था। इनका प्रथम विवाह कोटी के राणा मंगत सिंह की पुत्री कुमारी गीता कुमारी से तथा द्वितीय विवाह कोटी के ही कंवर जीवन सिंह की पुत्री कुमारी निर्मला कुमारी से हुआ था…
गतांक से आगे …
दुर्गा सिंह : गांधी जी की सलाह पर राजा दुर्गा सिंह वापस सोलन आए और उन्होंने राजाओं तथा प्रजामंडलों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन 26 जनवरी, 1948 को सोलन में बुलाया। सम्मेलन में राजा दुर्गा सिंह ने प्रतिनिधियों के सम्मुख यह सुझाव रखा कि सभी रियासतों को एक संगठन में लाकर इसको हिमाचल प्रदेश का नाम दिया जाए। इसके लिए एक उपसमिति को यह कार्य दिया गया कि यह दूसरे प्रजामंडलों के साथ संपर्क बनाएं और रियासतों के एकीकरण के लिए भारत सरकार के राज्य मंत्रालय के साथ बातचीत चलाएं। इसी के परिणामस्वरूप 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया और बघाट रियासत महासू जिला की तहसील सोलन के रूप में उभर कर आई। 30 मार्च, 1977 को राजा दुर्गा सिंह की मृत्यु हो गई।
ईश्वरी सिंह : राजा दुर्गा सिंह की मृत्यु के उपरांत ईश्वरी सिंह 1977 से 2004 तक गद्दी पर बैठ। राजा दुर्गा सिंह की न तो कोई संतान थी और न ही सगा भाई। अतः उनके चचेरे भाई मियां गोपाल सिंह के पुत्र ईश्वरी सिंह को गद्दी प्राप्ति का पारिवारिक अधिकार मिला। इनका जन्म 17 अप्रैल, 1921 को हुआ था। इनका प्रथम विवाह कोटी के राणा मंगत सिंह की पुत्री कुमारी गीता कुमारी से तथा द्वितीय विवाह कोटी के ही कंवर जीवन सिंह की पुत्री कुमारी निर्मला कुमारी से हुआ था। इनके चार संतानें थीं। 17 अप्रैल, 2004 को ईश्वरी सिंह की मृत्यु हो गई।
केश्वेंद्र सिंह : 27 अप्रैल, 2004 से पारिवारिक संपत्ति के उत्तराधिकारी बने केश्वेंद्र सिंह का जन्म 26 अप्रैल, 1967 को हुआ। इनकी शिक्षा सेंटमैरी स्कूल कसौली, सेंट ल्यूक स्कूल सोलन तथा डिग्री कालेज सोलन से हुई। सन् 1995 में इनका विवाह हुआ तथा एक पुत्र है। कुनिहार की ठकुराई शिमला से थोड़ी दूर पश्चिमी की ओर स्थित थी। यह 3103 व 3107 उत्तरी आक्षाश तथा 76059 व 7703 पूर्वी देशांतर पर स्थित थी। शिमला से लगभग 35 किलोमीटर पश्चिम में स्थित इसका कुल क्षेत्रफल 15 वर्ग मील था। कुनिहार की परंपरा के अनुसार इस ठकुराई का संस्थापक अभोज देव बारहवीं शताब्दी (1154 ई.) के मध्य में जम्मू के अखनूर क्षेत्र के छोटे राज्य से आया था। संभवतः उसके आने का कारण भी पश्चिम की ओर से मुसलमानों के आक्रमण का भय रहा होगा। कुनिहार का इतिहास यह कहता है कि अभोज देव अपने साथ कुछ साहसी व्यक्तियों को लेकर घर से निकला। मार्ग में उसे पता चला कि कहलूर में कुछ विद्रोह उठ खड़ा हो गया है। इसलिए उसने कुनिहार की ओर का रास्ता लिया। राजकोट के पास उनका सामना क्योंथल के कुछ सैनिकों से हुआ।
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