दूब वाला स्थान राजप्रसाद के लिए शुभ
हाटकोटी से थोड़ी दूर उत्तर की ओर ब्राड़ घाटी में चूहटा गांव का काला (कालीदास) नाम का एक व्यक्ति अपने लिए नया मकान बनाने के लिए जमीन खोद रहा था। ऐसा करने के लिए उसने उक्त भूमि से दूवा (स्थानीय बोली में दूब) घास को काट कर फेंक दिया। दूसरे दिन जब वह फिर खोदने के लिए गया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, देखता है कि उस स्थान पर पहले की ही तरह नई दूब उग आई है…
गतांक से आगे …
जुब्बल रियासत : मूल चंद ने हाटकोटी से थोड़ी दूर विषकलटी नदी के बाएं किनारे वाली ढलवान में सारी नामक स्थान पर स्थापित की और दुनी चंद ने भी हाटकोटी के पास ही पब्बर नदी के दाहिने किनारे पर रावीं नामक टीले पर अपने लिए किला बनाया। इन्हीं दिनों हाटकोटी से थोड़ी दूर उत्तर की ओर ब्राड़ घाटी में चूहटा गांव का काला (कालीदास) नाम का एक व्यक्ति अपने लिए नया मकान बनाने के लिए जमीन खोद रहा था। ऐसा करने के लिए उसने उक्त भूमि से दूवा (स्थानीय बोली में दूब) घास को काट कर फेंक दिया। दूसरे दिन जब वह फिर खोदने के लिए गया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, देखता है कि उस स्थान पर पहले की ही तरह नई दूब उग आई हैं, उसने विचार किया कि वह स्थान किसी राजा जैसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के योग्य है। उधर, हाटकोटी में इस शुभ लक्षण का पता कर्ण चंद को भी लग गया। कर्ण चंद ने इस बारे में ज्योतिषी से पूछा। उसने कहा कि यह स्थान राजप्रसाद के लिए शुभ है और वह इस स्थान पर अपने लिए मकान बना ले। उधर, काला ने हाटकोटी जाकर कर्ण चंद को उक्त स्थान पर भवन बनाने के लिए आमंत्रित किया। अतः उसने ऐसा ही किया। बाद में उसका स्थान जूब ‘जूबड़’ और फिर जुब्बल पड़ा जो समय बीतने के साथ-साथ चंद द्वारा स्थापित राज्य के लिए प्रयोग होने लगा। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि कर्ण चंद की सेवा में झांगरू नाम का एक व्यक्ति रहता था। उस ने हाटकोट के साथ लगते बढ़ाल परगना के लोगों को ब्राड़ के ठाकुर के विरुद्ध भड़काकर अपने साथ मिला लिया और जुब्बल गांव के काला नाम के व्यक्ति को भी कहा कि यदि वह ठाकुर के विरुद्ध उन का साथ देगा तो उसे मुखिया या महता बना दिया जाएगा। इस झांसे में आकर उन्होंने ठाकुर को मार उसके लिए वहां एक भवन बनाया। बाद में कर्ण ने बढ़ाल के परगना के एक व्यक्ति जीवन दास को महत्ता बनाया। उस ने बढ़ाल के परगना को कर्ण चंद के आधिपत्य में लाने में सहायता की। विशाल सिरमौर राज्य में के अंतिम राजा उग्रचंद की मृत्यु के पश्चात दक्षिणी सिरमौरी पर जो जैसलमेर के भट्टी राजकुमार ने अधिकार कर लिया उत्तरी भाग के छोटे-छोटे सामंत स्थिति से लाभ उठाकर स्वतंत्र हो गए, और जब कर्णचंद राज्य की बागड़ोर संभाली तो उसे तथा उस के वंशजों को इन सामंत ठाकुरों को अपने आधिपत्य में लाने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा।
जुब्बल के संस्थापक कर्णचंद : (लगभग 13वीं शताब्दी का प्रथम चरण) से लेकर 1948 ई. में हिमाचल की स्थापना के समय तक कितने और कौन-कौन से राजा हुए, इसका अभी पूरा ब्योरा प्राप्त नहीं हुआ।
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