निखिल और पोपट
निखिल के दादा कुछ दिन पहले पास के शहर से एक तोता लेकर आ गए। यह शौक अचानक दादा को कहां से जागा, घर वालों को समझ नहीं आया। घर में आए इस तोते को देखकर सबसे ज्यादा खुशी निखिल को हुई। पर वह दादा से इस बात को लेकर नाराज भी हुआ कि वे इसे तब लेकर आए जब उसकी बरसात की छुट्टियां खत्म होने को थीं। जिस पक्षी को उसने अभी तक दूर से ही देखा था वह आज उसके इतने करीब था। उसे याद है। उसके मामा ने उसे बताया था कि उनके घर भी एक तोता था जो इनसानों की तरह बात करता था। वे उसे जब ‘मिट्ठु’ पुकारते तो वह भी बदले में ‘मिट्ठु’ बोलता। ऐसे और भी शब्द मामा ने बताए थे। निखिल भी बार-बार इस तोते को ‘मिट्ठु’ पुकारता, लेकिन वह कुछ नहीं कहता। उसने सोचा शायद यह उसका नाम नहीं है तभी यह जवाब नहीं देता। इसलिए निखिल ने उसे और बहुत से नाम लेकर पुकारा लेकिन उसकी ओर से तब भी कोई जवाब नहीं मिला। दुखी होकर निखिल के मुंह से गुस्से में अचानक निकला, ‘पोपट कहीं का!’ दादी ने यह सुना और बोलीं, ‘निखिल, ‘पोपट’ नाम रख लो इसका। यह सही रहेगा।’ तब से तोता अब पोपट हो गया।दादा ने निखिल को समझाया कि अभी दो-तीन दिन पहले ही इसे पकड़कर पिंजरे में कैद किया है। इसलिए यह सब सीखने में उसे अभी समय लगेगा। निखिल को सारी बात समझ में आ गई। जैसे-जैसे समय बीतता गया निखिल ने एक बात महसूस की कि पोपट बिलकुल उदास रहता है। न ढंग से खाता है और न ही उतना चुस्त है जैसा उसने तोतों के बारे में सुन रखा था। यह तो बस बार-बार, आकाश की ओर उड़ते हुए पक्षियों को देखता और बाहर निकलने को छटपटाता रहता। यही नहीं, निखिल ने एक और बात नोटिस की। वह यह कि पिछले दो दिनों से एक अन्य तोता बार-बार पिंजरे के आस-पास मंडरा रहा था। निखिल को समझते देर न लगी कि यह तोता उसका कोई अपना है। आज जब निखिल कमरे से दाना लेकर बाहर निकल रहा था तो उसने देखा कि वह बाहरी तोता अपनी चोंच से पिंजरे की लोहे की तारों को काटने का प्रयास कर रहा था। निखिल को सारी बात समझ आ गई। उसने दादा से कहा, ‘दादा, मुझे लगता है पोपट को हमें छोड़ देना चाहिए।’ ‘क्यों?’ दादा हैरानी में बोले। ‘वह इसलिए दादा कि पोपट आसमान में उड़ते पक्षियों को देखकर बार-बार बाहर निकलने के लिए छटपटाता है। साथ ही यहां पिछले कुछ दिनों से रोज एक दूसरा तोता बार-बार पिंजरे के आसपास आता है। वह शायद कोई उसका अपना है, जो पिंजरे की तारों को अपनी चोंच से काटने की कोशिश करता है। परंतु हमेशा नाकाम होकर रोज लौट जाता है। आज तो तारों में मैंने खून के धब्बे भी देखे जो शायद उसकी चोंच से निकले हैं।’ चिंतित-सा निखिल बोला। ‘कोई बात नहीं निखिल। यह सब, कुछ दिनों के बाद सामान्य हो जाएगा।’ ‘लेकिन दादा यह ठीक नहीं है। आप इसे छोड़ दें।’ उदास निखिल फरियाद करता हुए बोला। ‘निखिल इसे मैं नहीं छोड़ पाऊंगा। तुम्हे शायद पता नहीं मैं इसे यहां किस कारण लेकर आया हूं।’ ‘किसलिए दादा?’ ‘कुछ दिन पहले जब मैं तुम्हारी दादी की दवाई लाने पास के शहर गया था तो वहां मुझे अपने बुजुर्ग पंडित जी मिले। उनसे तुम्हारी दादी की बिमारी की बात चली तो उन्होंने तोता पालने का उपाय सुझाया।’ ‘मतलब!’ ‘उन्होंने समझाया कि यदि तुम घर में तोता पालोगे तो बुरे ग्रहों का प्रभाव नहीं पड़ेगा और घर में प्रेम व शांति बनी रहेगी। रोग घर से दूर भागेंगे।’ निखिल के चेहरे से हंसी फुट पड़ी थी। ‘तुम्हे पता है इसे लाने का दिन और रखने की जगह भी खास है।’ ‘मैं समझा नहीं दादा।’ ‘निखिल, इसे मैं बुधवार को लेकर आया था, क्योंकि पंडित जी ने कहा था कि तोते के रंग को बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। किसी भी बुरे प्रभाव से बचने के लिए इसे उत्तर दिशा में रखा जाता है। जैसे मैंने इसे रखा है। ऐसा करने से जहां पढ़ने में तुम्हारी रुचि बनेगी वहीं तुम्हारी स्मरण शक्ति भी बढ़ेगी।’ निखिल अपना सिर खुजाता हुआ बोला, ‘दादा, यह ग्रह-ग्रह का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मैं अपनी बात को कह सकता हूं कि मैं पढ़ने में हमेशा अच्छा रहा हूं और रहूंगा भी। और रही दूसरी बात, मुझे हर विषय का याद भी जल्दी ही हो जाता है। इससे ज्यादा और मुझे कितना चाहिए? और दादा, आपको एक बात कहूं?’ ‘कहो।’ ‘जब से तोता घर में आया है न! तब से मेरा तो पढ़ने में जरा भी मन नहीं कर रहा है। आप इन अंधविश्वासों को छोड़कर दादी को किसी अन्य अच्छे डाक्टर को दिखाओ।’ ‘तुम अभी बहुत छोटे हो निखिल। तुम इन बातों को नहीं समझोगे।’ ‘लेकिन दादा, आप पोपट को छोड़ दो, बस। यह यहां खुश नहीं है। इसे अपने आसमान में उड़ने दीजिए। अपने साथियों से मिलने दीजिए। हम इनसानों के साथ रहकर यह सुखी तो जरा भी नहीं है।’ ‘निखिल, तुम जाओ अब। कल स्कूल जाना है। अपना स्कूल बैग तैयार कर लो। और मम्मी-पापा से भी अपनी स्कूल की वर्दी बगैरह तैयार करने के लिए कहो।’ दादा बात को टालते हुए बोले। निखिल अभी तो चला गया लेकिन शाम के समय वह चुपके से जैसे ही पोपट का पिंजरा खोलने लगा तो दादा ने उसे देख लिया। उसे डांट भी पड़ी और दादा ने पिंजरे के दरवाजे पर ताला भी जड़ दिया, जिसकी चाबी दादा ने फिर अपनी जेब में ही रखी। अगले दिन सुबह पोपट से बातें कर और उसकी आंखों में पसरे कैद के दुख को महसूसते हुए निखिल स्कूल चला गया। आज स्कूल में जरा भी उसका मन नहीं लगा। उदास निखिल जब शाम को घर पहुंचा तो घर के बरामदे में लोगों की भीड़ देखकर चिंतित हो गया। दौड़कर जब नजदीक पहुंचा तो उसने देखा, दादा की पूरी टांग में प्लास्टर बंधा था। वह दादा से लिपट गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले।
सुबकते हुए वह बोला, ‘दादा, यह कैसे हुआ?’
‘बेटा, गाय के चारे के लिए पेड़ से टहनियां काट रहा था। पैर फिसला और नीचे आ गिरा।’ इस बात पर निखिल ने दादा को एक बार फिर से कसकर पकड़ लिया था। हल्की-सी चुप्पी के बाद वह दादा के कान में चुपके से बोला, ‘दादा, अब बताओ? तोता पालने से कौन-सी खुशियां और शांति आ गई?’ दादा-पोते का प्यार देखकर खड़े सभी लोगों की आंखें भर आई थीं। तभी पापा बोले, ‘निखिल, पहले बैग रखकर अपनी स्कूल ड्रैस बदल लो।’ निखिल जैसे ही जाने को हुआ तो दादा ने निखिल का हाथ पकड़कर उसे रोका और पिंजरे की चाबी उसके हाथ में देते हुए बोले, ‘तुम सही थे निखिल। जाओ, पहले पोपट को अपना आकाश नापने दो।’ ‘वाह, दादा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’ निखिल खुशी से चिल्ला उठा। वह बैग को एक ओर रखता हुआ पिंजरे की ओर दौड़ पड़ा था।
– पवन चौहान गांव व डाकघर महादेव, तहसील- सुंदरनगर
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