बेटियों को दें सुरक्षित माहौल

By: Jul 9th, 2019 12:06 am

अनुज कुमार आचार्य

बैजनाथ

 

प्रदेश पुलिस द्वारा जारी वर्ष 2017 की अवधि में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि दर्ज 1260 मामलों में 403 यौन शोषण, 248 रेप, 29 हत्या, दो दहेज हत्याओं, अपहरण के 249 तो बेटियों के प्रति क्रूरता के 192 और छेड़छाड़ के 56 मामले सामने आए हैं, जो कहीं न कहीं महिलाओं को प्राप्त सुरक्षा के दावों की पोल खोलते हैं…

आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी बेटियां अपनी सफलता की नई-नई कहानियां लिख रही हैं। गार्गी, सीता, सावित्री, अहिल्या, मीरा और लक्ष्मीबाई जैसी नारी शक्ति से देश सदियों से समृद्ध रहा है। भारतीय नारी ने त्याग, तपस्या, साधना, बलिदान और आत्मत्याग की जो गौरवशाली परंपरा स्थापित की है, वह निश्चय ही महान है। आधुनिक हिमाचल और भारत में भी हमारी बेटियां शिक्षा और नौकरी के क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रही हैं, लेकिन कुछ मामलों में अभी भी हमारे समाज में निकृष्ट एवं दुष्ट सोच वाले लोगों की काली करतूतों से महिलाओं पर बढ़ रहे जुल्मों की तसदीक होती है। हिमाचल प्रदेश पुलिस द्वारा जारी वर्ष 2017 की अवधि में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि दर्ज 1260 मामलों में 403 यौन शोषण, 248 रेप, 29 हत्या, दो दहेज हत्याओं, अपहरण के 249 तो बेटियों के प्रति क्रूरता के 192 और छेड़छाड़ के 56 मामले सामने आए हैं, जो कहीं न कहीं महिलाओं को प्राप्त सुरक्षा के दावों की पोल खोलते हैं। वहीं एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में हमारे देश में बलात्कार के 34651 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से 33098 मामलों में इस घृणित अपराध को अंजाम देने वाले पीडि़ता के ही परिचित थे।

आज समय की मांग है कि हमारी बेटियों को भी सुरक्षित माहौल मिले, ताकि वह भी अपने पंख पसार कर तरक्की की उड़ान भर सकें। ‘टीन एज’ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत की हर चार में से तीन किशोरियां पढ़ाई पूरी करके काम करना चाहती हैं। इसमें भी 33.3 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां भविष्य में अध्यापन करना चाहती हैं, जबकि 10.6 फीसदी डाक्टर, 11.5 फीसदी सिलाई-बुनाई, 7.2 फीसदी पुलिस अथवा सशस्त्र बलों में जाना चाहती हैं। 6.1 फीसदी इंजीनियर और 2.7 फीसदी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हैं। भारत की छठी आर्थिक जनगणना के मुताबिक हमारे देश में 5.85 करोड़ उद्यम थे, जिनमें से मात्र 14 फीसदी व्यवसायों की बागडोर महिलाओं के हाथों में थी। वहीं ‘इंटरनेशनल कमीशन ऑन फाइनेंसिंग ग्लोबल एजुकेशन आपर्च्यूनिटी’ के शोध के अनुसार भारत में प्राइमरी स्तर पर महिला साक्षरता की स्थिति पड़ोसी देशों के मुकाबले बहुत खराब है, जिसमें तत्काल सुधार की गुंजाइश है। हमारे देश के राजनीतिक दल महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने से बिदकते हैं।  इस बार 17वीं लोकसभा के लिए 78 महिला सांसद चुनी गई हैं। देशभर की विधानसभाओं में 4120 विधायक चुने जाते हैं, लेकिन 2015 तक विधानसभाओं के आंकड़े दर्शाते हैं कि इनमें मात्र 360 महिला विधायक चुनी गई थीं और उनमें से भी मात्र 39 महिलाओं को ही मंत्री पद से नवाजा गया था। इंटर पार्लियामेंट यूनियन की रिपोर्ट के अनुसार संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में विश्व के 141 देशों में भारत का स्थान 103वां है और हमारी संसद में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व मात्र 12 प्रतिशत ही है। आज भारतीय बेटियां और महिलाएं घर की देहरी लांघकर शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला- संस्कृति, सेवाक्षेत्र और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को समानता का अधिकार, राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने, अवसर की समानता, समान कार्य, समान वेतन, महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का परित्याग करने आदि की अनुमति देता है। अपने पिछले कार्यकाल में केंद्र में मोदी सरकार का जोर बालिकाओं को बचाने और पढ़ाने-लिखाने तथा उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर था, जबकि इस बार भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में ‘नारी तू नारायणी’ की अवधारणा से महिला सशक्तिकरण को केंद्र में रखकर महिला उद्यमियों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से कई सहूलियतों की घोषणा की है।

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा महिलाओं के आर्थिक एवं सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से कई कार्यक्रमों को लागू किया गया है। जयराम सरकार द्वारा गुडि़या और होशियार सिंह हेल्पलाइन तथा शक्ति ऐप का शुभारंभ किया गया है, तो महिला सशक्तिकरण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए ‘हिमाचल गृहिणी सुविधा योजना’ आरंभ की गई है। ‘बेटी है अनमोल’ के अंतर्गत बीपीएल परिवारों को मिलने वाली राशि को बढ़ाकर 12 हजार किया गया है और नई व्यापक ‘सशक्त महिला योजना’ को लागू किया गया है। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग एक लाख के आसपास विधवाओं को पेंशन दी जा रही है, इसके अलावा हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अपराध की शिकार महिलाओं को क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए ‘यौन उत्पीड़न अन्य अपराधों-2018 से बचने के लिए पीडि़त महिलाओं के लिए मुआवजा योजना’ को भी शुरू किया गया है, जिसके तहत दो लाख से 10 लाख रुपए तक का मुआवजा देने की व्यवस्था की गई है।

सरकार द्वारा महिला अपराधों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति को अपनाया गया है, जो एक सराहनीय कदम है। महिला अधिकारों को सुनिश्चित बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य महिला आयोग की भी स्थापना की गई है, जो महिलाओं के उत्पीड़न, दहेज मामलों, महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण, महिलाओं की शिकायतों के समाधान, दुखी महिलाओं के पुनर्वास और महिलाओं के उत्थान के लिए सेवारत है। प्रदेश सरकार को महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा को अभी और यकीनी बनाने की दिशा में महिलाओं से संबंधित सभी योजनाओं को न केवल अपनी समग्रता में लागू करने की जरूरत है, अपितु सभी प्रमुख जगहों पर पुलिस तैनाती एवं पुलिस गश्त को बढ़ाने की भी जरूरत है। स्कूल-कालेजों में भी पुलिस की नियमित गश्त की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि अपराधी तत्त्वों में खौफ पैदा हो, तो वहीं महिला अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधियों को तत्काल सजा मिले, इसकी भी पुख्ता व्यवस्था होनी जरूरी है।


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