मृत्युंजय जप कैसे करें

By: Jul 6th, 2019 12:03 am

करुणामयी मां ने देवताओं को बचाने एवं विश्व की रक्षा करने के लिए देवलोक के चारों ओर अपने तेजोमंडल की चारदिवारी खड़ी कर दी और स्वयं धीरे से बाहर आ गईं। देवी को देखते ही दैत्यों ने उन पर आक्रमण कर दिया। इसी बीच देवी के दिव्य शरीर से सुंदर रूप वाली काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्री विद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बंगला, धूम्रा, त्रिपुरसुंदरी और मातड़गी, ये दस महाविद्याएं अस्त्र-शस्त्र लिए निकली। साथ ही असंख्य मातृकाएं भी प्रकट हो गईं। उन सबने अपने मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट धारण कर रखा था और वे सभी विद्युत के समान दीप्तिमान दिखाई देती थीं…

-गतांक से आगे…

करुणामयी मां ने देवताओं को बचाने एवं विश्व की रक्षा करने के लिए देवलोक के चारों ओर अपने तेजोमंडल की चारदिवारी खड़ी कर दी और स्वयं धीरे से बाहर आ गईं। देवी को देखते ही दैत्यों ने उन पर आक्रमण कर दिया। इसी बीच देवी के दिव्य शरीर से सुंदर रूप वाली काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्री विद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बंगला, धूम्रा, त्रिपुरसुंदरी और मातड़गी, ये दस महाविद्याएं अस्त्र-शस्त्र लिए निकली। साथ ही असंख्य मातृकाएं भी प्रकट हो गईं। उन सबने अपने मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट धारण कर रखा था और वे सभी विद्युत के समान दीप्तिमान दिखाई देती थीं। इन शक्तियों ने देखते-देखते दुर्गमासुर का तीखे त्रिशूल से वध कर डाला और वेदों का उद्धार कर उन्हें देवताओं को दे दिया। इस प्रकार देवी ने दुर्गमासुर का वध कर विश्व की रक्षा की। चूंकि उन्होंने दुर्गमासुर को मारा था, उनका नाम ‘दुर्गा’ प्रसिद्ध हुआ। शताक्षी एवं शाकुंभरी भी उन्हीं का नाम है। वे दुर्गतिनाशिनी हैं, इसलिए भी वे दुर्गा कहलाती हैं। भगवती दुर्गा का ध्यान स्वरूप इस प्रकार निरूपित है :

कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेंदुरेखां।

शंख चक्र कृपाणं करैरुद्वहंतीं त्रिनेत्राम।।

सिंहस्कनघधिरूढ़ा त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयंतीं।

ध्यायेद् दुर्गा जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः।।

‘सिद्धि की इच्छा रखने वाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं, उन जया नामवाली दुर्गा देवी का ध्यान करें। उनके श्री अंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है, वे अपने कटाक्षों से शत्रु समुदाय को भय देने वाली हैं। उनके मस्तक पर आबद्ध चंद्रमा की रेखा शोभा पाती है, वे हाथों में शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण किए रहती हैं। उनके तीनों लोकों को परिपूर्ण कर रही हैं।’ यही महादुर्गा साक्षात ब्रह्म स्वरूपिणी हैं :

सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कालि त्वं महादेवीति।

साब्रवीत-अहं ब्रह्मस्वरूपिणी मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत्।।

देवताओं ने देवी का उपस्थान (उनके निकट पहुंचकर) कर उनसे प्रश्न किया-आप कौन हैं? देवी ने कहा- मैं ब्रह्म स्वरूपिणी हूं। मुझसे ही प्रकृति-पुरुषात्मक जगत् उत्पन्न होता है। यही निर्गुण देवी जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुण-भाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप से उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती है।

                                          -क्रमशः

 

 


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