लापरवाही का ट्रैक बनीं सड़कें

By: Jul 6th, 2019 12:06 am

बीरबल शर्मा

लेखक, मंडी से हैं

 

लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली, सड़कों की दुर्दशा, पानी की निकासी, खतरनाक जगहों पर क्रैश बैरियर नहीं हैं। आधुनिक बीम रेलिंग भी ऐसी-ऐसी जगहों पर लगी है, जहां पर इसकी जरूरत कम है, मगर जहां होनी चाहिए, वहां पर नहीं है। अधिकारी कार्यालयों का मोह छोड़ कर फील्ड में जाकर स्वयं देखें, तो बात बने…

पिछले कुछ दिनों से हिमाचल हादसों का प्रदेश बनता जा रहा है। लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं ने सरकार की परेशानी बढ़ा दी है। बढ़ती दुर्घटनाओं के कारण खोजे जाने लगे हैं, हर दुर्घटना के बाद जांच बिठाई जा रही है, मगर कम होने की बजाय ये दुर्घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। पिछले एक महीने में ही एक दर्जन से अधिक बड़ी सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिससे पूरा सिस्टम हिल सा गया है। सवाल यही खड़ा हो रहा है कि आखिर दुर्घटनाओं के बढ़ने का बड़ा कारण क्या है और लोग बेमौत क्यों मारे जा रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत एक एनजीओ की रिपोर्ट को मानें, तो पिछले दस सालों में इस देवभूमि हिमाचल में 65766 से अधिक लोग दुर्घटनाओं में घायल व मौत का शिकार हुए हैं। यह आंकड़ा अपने आप में चौंकाने वाला है। जून 18 को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में औट लूहरी नेशनल हाई-वे पर बंजार के भियोट मोड़ पर हुए निजी बस हादसे में 44 लोगों की जान गई, तो इतने ही घायल हो गए। इन घायलों में कम से कम दो दर्जन सदा के लिए विकलांग हो जाएंगे। जुलाई महीने की शुरुआत भी शिमला में बस हादसे से हुई, जबकि इससे पहले छोटे वाहनों की एक दर्जन दुघर्टनाएं महज दस ही दिन में और घट गईं।

बस हादसे के बाद फिर से दुर्घटनाओं को लेकर वही घिसी-पिटी बातें दोहराई जाने लगी हैं, जो अकसर किसी भी बड़ी दुर्घटना के बाद होती हैं। कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जाएगा और चार दर्जन घरों में जो इस हादसे से अंधेरा छा गया है, जिन्हें आगे जीवन जीने में दुनियाभर की दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है, वह अपने ही दम पर सिस्टम से जूझेंगे। चार दर्जन घरों में अंधेरे के साथ-साथ तीन दर्जन घायल लोगों को जीवनभर अपंगता का दंश झेलना पड़ेगा और वे भी 65766 के उस आंकड़े  में जुड़ जाएंगे, जो दुर्घटनाओं का शिकार होने के बाद सिस्टम से लड़ाई लड़ते-लड़ते थक जाते हैं। सरकार का भी करोड़ों अरबों रुपया मुआवजे में चला जाता है और सरकार भी स्वयं को मुआवजे तक ही सीमित रख पाती है। कुल्लू हादसे की जांच रिपोर्ट बताती है कि इसके लिए बस को फिटनेस प्रमाण-पत्र देने वाले परिवहन अधिकारी जिम्मेदार हैं, क्योंकि बस काफी पुरानी थी। बार-बार खराबी इसमें आ रही थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। इन बढ़ते हादसों के पीछे पूरे सिस्टम का लचरपन साफ झलक रहा है। पहाड़ी प्रदेश में सड़कें तंग हैं, तीखे मोड़ हैं, गहरी ढांकें हैं, नीचे नदी-नाले हैं और ऐसे में जब भी कोई हादसा होता है, तो एक साथ कई जानें चली जाती हैं। हादसों के लिए किसी एक विभाग या व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं होगा, इसमें सरकार, लोग, विभाग सब जिम्मेदार हैं। लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली, सड़कों की दुर्दशा, पानी की निकासी, खतरनाक जगहों पर क्रैश बैरियर नहीं हैं। आधुनिक बीम रेलिंग भी ऐसी-ऐसी जगहों पर लगी है, जहां पर इसकी जरूरत कम है, मगर जहां होनी चाहिए, वहां पर नहीं है। अधिकारी कार्यालयों का मोह छोड़ कर फील्ड में जाकर स्वयं देखें, तो बात बने। अधिकांश दुर्घटनाएं मानवीय लापरवाही से हो रही हैं। बस दो बार खराब हुई, मगर चालक दोगुनी सवारियां भर कर निकल पड़ा, क्योंकि मालिक को सिर्फ पैसा चाहिए, जिंदगियां जाएं तो जाएं। मालिक पर सरकार का हाथ रहता है, क्योंकि निजी बस मालिकों की पहुंच ऊपर तक ही रहती है। यह एक बड़ा कारण है। मानवीय भूल की पराकाष्ठा देखें कि मंडी के पराशर में चालक 15 सवारियों से भरी गाड़ी को उतराई में खड़ा करके चला गया और एक बच्चे ने गेयर हिला दिया, जिससे गाड़ी ढांक में जा गिरी। शिमला बस दुर्घटना में अवैध पार्किंग से सड़क तंग करके बस को कच्चे डंगे से होकर निकाला, तो बस बच्चों सहित नीचे जा पहुंची। चंबा जोत पर चालक बस को लापरवाही से खड़ा करके चला गया, तो बस खुद ही खिसकते हुए नीचे जा गिरी। क्या ऐसी लापरवाही की कोई बड़ी सजा नहीं होनी चाहिए? कांगड़ा के नूरपुर में हुए स्कूली बस हादसे में भी साफ  तौर पर चालक की लापरवाही व गाड़ी का खटारापन सामने आ चुका है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? बिना हेल्मेट तीन-तीन सवार सड़कों पर फर्राटे भरते हुए निकलते हैं। हर रोज युवा बाइक दुर्घटनाओं में मर रहे हैं, तो उन्हें रोकने वाला कोई नहीं, जबकि पुलिस हर मोड़ पर आम चालकों व पर्यटकों को तंग करने व चालान करने के लिए मुस्तैद खड़ी नजर आती है। क्या ऐसे पुलिस कर्मियों को ओवरलोडिंग नजर नहीं आती, दुर्घटना के बाद ही एक्शन क्यों? ये लोग अपनी ड्यूटी ईमानदारी से नहीं निभा रहे हैं, अगर निभाते तो भला 42 सीटर बस में 84 सवारियां क्यों बैठी होतीं, इतने लोग क्यों मरते? ऐसे में दुर्घटनाओं की इस हमाम में सब नंगे हैं। लचर सिस्टम को बदलने से ही यह सब कम हो सकता है। हिमाचल पथ परिवहन निगम की बसों की बात हो या फिर निजी बसों की, इनकी फिटनेस प्रमाण पत्र में जब तक भाईबंदी चलती रहेगी, दुर्घटनाएं बढ़ेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली की तर्ज पर प्रदेश में इन संवेदनशील महकमों में बैठे नकारा अफसरों को जबरन रिटायर करने की जरूरत है। ओवरलोडिंग, चालक दक्ष है कि नहीं, बस खटारा थी कि सही, सड़क सही थी कि खराब, इसे कौन देखेगा? क्या कभी किसी अधिकारी ने इसे लेकर गंभीरता दिखाई है। कागजी आंकड़े कुछ भी हों, मगर इस दुर्घटना के लिए लोक निर्माण विभाग, परिवहन महकमा, पुलिस, जिला व उपमंडल प्रशासन सब सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। प्रदेश के कई बस अड्डों पर नीली बसें (आम आदमी की भाषा में इन्हें नीली बसें ही कहा जाता है) बिना चालकों के जंग खा रही हैं, मगर निजी बसें ओवरलोडिड होकर रोजाना ग्रामीण क्षेत्रों में मौत को दावत देते हुए लोगों को ढो रही हैं।

लोक निर्माण विभाग बस वहीं पर क्रैश बैरियर लगाता है, जहां कुछ लोग दुर्घटना में मौत का शिकार हो जाएं या फिर ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए मैदानी क्षेत्रों में भी यह क्रैश बैरियर खूब दिखते हैं। परिवहन महकमा वाहनों की पासिंग करता है और कैसे करता है, यह सब जानते हैं। हर कदम पर चालान करने की किताब हाथ में थामने की बजाय यदि इन बातों पर गौर हो, तो दुर्घटनाएं रुक सकती हैं। लोग बच सकते हैं, सरकार का करोड़ों अरबों रुपया जो मुआवजे में जाता है, उससे क्रैश बैरियर लग सकते हैं, उससे सड़कें ठीक हो सकती हैं, उससे एचआरटीसी खड़ी बसों को चलाने के लिए चालक रख सकती है, मगर इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। क्या एसी कार्यालयों में बैठे ऐसे सभी जिम्मेदार अधिकारियों को समय से पहले रिटायर करने का एक सख्त निर्णय प्रदेश की जयराम ठाकुर सरकार ले सकती है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App