बड़ा महत्त्व है कांगड़ा में रली पूजन का

By: Jul 17th, 2019 12:05 am

हिमाचल प्रदेश भगवान शंकर की क्रीड़ा और पार्वती की जन्मस्थली है, इसलिए हिमाचल को देवभूमि कहा गया है। यहां की धरती के कण-कण से सैकड़ों धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाएं जुड़ी हैं। भोले-भाले लोगों की यह आस्थाएं यहां के मेलों, व्रतों, पूजनों व त्योहारों से प्रकट होती हैं। हिमाचल प्रदेश मेलों व उत्सवों का ही प्रदेश नहीं है, यह अपनी सुंदरता, अपनी संस्कृति को भी मेलों द्वारा व्यक्त करता है..

गतांक से आगे …

कांगड़ा में रली पूजन परंपरा ः

हिमाचल प्रदेश का यह त्योहार व पर्व देवी-देवताओं से जुड़ा है, विशेषकर शिवजी व शक्ति से। हिमाचल प्रदेश भगवान शंकर की क्रीड़ा और पार्वती की जन्मस्थली है, इसलिए हिमाचल को देवभूमि कहा गया है। यहां की धरती के कण-कण से सैकड़ों धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाएं जुड़ी हैं। भोले-भाले लोगों की यह आस्थाएं यहां के मेलों, व्रतों, पूजनों व त्योहारों से प्रकट होती है। हिमाचल प्रदेश मेलों व उत्सवों का ही प्रदेश नहीं है, यह अपनी सुंदरता, अपनी संस्कृति को भी मेलों द्वारा व्यक्त करता है। विवाह के पूर्वाभ्यास के रूप में मनाया जाने वाला ‘रलियां दा ब्याह’ पूरे कांगड़ा क्षेत्र में अत्यंत लोकप्रिय त्योहार है। युवा कन्याएं इस मेले में शिव और पार्वती की मूर्तियों की पूजा करती हैं। रली का पूजन चैत्र संक्रांति से शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है। इस पर्व के पीछे एक किंवदंती प्रचलित है कि कांगड़ा जनपद के किसी गांव में एक ब्राह्मण ने अपनी नौजवान कन्या रली का विवाह उससे आयु से बहुत छोटे लड़के से कर दिया।  कन्या ने इस संबंध में विरोध भी किया, लेकिन अंततः मां-बाप की इच्छा के आगे उसे झुकना पड़ा। उस समय रिश्ते मां-बाप द्वारा तय किए जाते थे। कन्या का विवाह शंकर नामक लड़के से हो गया। कन्या को विदा करके उसके पति के घर रवाना कर दिया गया। परंपरानुसार उसका छोटा भाई, जिसका नाम वस्तु था, को उसे छोड़ने के लिए उसके साथ भेज दिया गया। रली को जब डोली में बिठा कर ले जा रहे थे, तो रास्ते में एक नदी पड़ती थी। उसने डोली नदी के किनारे रखने को कहा। रली ने अपने भाई को बुलाया और कहा भैया भाग्य में जो लिखा था, वह तो हो ही गया। अब मैं पूरा जीवन इसे छोटी आयु के पति के साथ नहीं गुजार सकती। मैं इस रिश्ते के लिए किसी को भी दोष नहीं देती, लेकिन आज के उपरांत जो भी अविवाहित कन्या हर वर्ष चैत्र मास में श्रद्धापूर्वक शिव-पार्वती की पूजा करके उनका विवाह रचाएगा, उसे योग्य और मनचाहे वर की प्राप्ति होगी। यह कह कर रली ने गहरे पानी में अपने आपको आत्मसात कर लिया। उसके दूल्हे ने जब यह देखा तो उससे भी रहा नहीं गया और उसने भी नदी में छलांग लगा दी।                        –


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