अमृत है पहाड़ी गाय का दूध

By: Aug 14th, 2019 12:06 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

वर्ष 1970 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने ऑपरेशन फ्लड की भारत में शुरुआत की थी ताकि भारत की बढ़ती आबादी की दूध जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यूरोपीय प्रजातियों की विदेशी संकर नस्लों की गउओं के आयात के साथ क्रास प्रजनन के चलते जर्सी गउओं की मांग बढ़ गई और भारत में देसी गउओं की मांग में कमी आ गई…

दूध को संपूर्ण पौष्टिक आहार माना गया है।  इसमें कैल्शियम और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा दूध में लेक्टोज फैट तथा अन्य विटामिंस और मिनरल्स भी पाए जाते हैं। दूध में दो तरह के प्रोटीन होते हैं। वे प्रोटीन और कैसीन प्रोटीन। कैसीन प्रोटीन भी दो प्रकार का होता है ,अल्फा कैसीन और बीटा कैसीन। बीटा कैसीन भी दो रूपों में पाया जाता है एक ए.1 और दूसरा ए.2 भारत और दुनिया भर में ए.1 दूध की खपत ज्यादा है। ए.वन दूध फारेन ब्रीड गाय या मिक्स्ड रेस की गउओं से प्राप्त होता है।

वर्ष 1970 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड ने ऑपरेशन फ्लड की भारत में शुरुआत की थी ताकि भारत की बढ़ती आबादी की दूध जरूरतों को पूरा किया जा सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यूरोपीय प्रजातियों की विदेशी संकर नस्लों की गउओं के आयात के साथ क्रास प्रजनन के चलते जर्सी गउओं की मांग बढ़ गई और भारत में देसी गउओं की मांग में कमी आ गई। ए.2 दूध प्राचीन ब्रीड की गायों अथवा देसी गाय से प्राप्त होता है और इस दूध में बीमारियों से लड़ने की शक्ति होती है और देसी गउओं के दूध के सेवन से रोग होने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। इस गाय का दूध बच्चों और सभी आयु वर्गों के लोगों के लिए अमृत के समान है। यह बेहद आश्चर्यजनक है कि भारत में दूध का उत्पादन प्रतिदिन 1468 करोड़ लीटर है और खपत 64 करोड़ लीटर है। स्पष्ट है कि उत्पादन और खपत में भारी अंतर है। लोग फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा तय मानकों के विपरीत मिलावटी दूध का इस्तेमाल करने के लिए अभिशप्त हैं। आमतौर पर पर्वतीय क्षेत्रों में उपलब्ध ज्यादातर काले रंग की देसी गाय मौजूद हैं जो छोटे कद की हैं और ऊंचाई-निचाई से युक्त दुर्गम पहाडि़यों में आसानी से चढ़-उतर लेती हैं और प्राकृतिक चारा जिसमें प्राकृतिक वन औषधियां भी शामिल रहती हैं का भक्षण करती हैं। जिन क्षेत्रों में पहाड़ी गाय मौजूद है वहां स्थानीय कृषि उत्पादन न्यूट्रीशन और स्थानीय लाइवलीहुड में इनका योगदान महत्वपूर्ण आंका गया है। देसी पहाड़ी गाय प्रतिदिन तीन से चार लीटर और पीक सीजन में अधिकतम सात लीटर दूध देती है। कृषि कर्म से जुड़े किसानों द्वारा इन गउओं के गोमूत्र और इनके गोबर से बनी खाद का प्रचुरता से इस्तेमाल करने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। हाल ही में राज्य में एक शोध में प्राकृतिक खेती में इन गायों के गोबर के इस्तेमाल की जरूरत पर बल दिया गया है। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण होगा कि हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी नस्ल की गाय की प्रजाति को बचाने के लिए इन्हें आश्रय तथा पालने वाले पशुपालकों को शिक्षित किया जाए। इन गायों की अधिकता वाले गांव को देसी गाय वाला गांव घोषित किया जाए। दुग्ध उत्पादन की प्रतिस्पर्धा और पुरस्कारों द्वारा पहाड़ी गाय की नस्ल का संरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इन गायों की नई नस्ल तैयार की जाए। मध्यम ऊंचाई और निचले क्षेत्रों वाले पहाड़ी इलाकों में भी इस नस्ल की गाय के पालन पोषण को बढ़ावा दिया जाए ताकि देसी पशुधन में बढ़ोतरी हो सके। उन किसानों की पहचान भी की जाए जो केवल पहाड़ी गाय-बैल रखने की चाहत रखते हों, उन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाए। गांव में ऐसे परिवारों को भी सम्मानित किया जाए जो पहाड़ी गाय का पालन पोषण करते हों। आठ से ज्यादा पहाड़ी गउओं का पालन पोषण करने वाले किसानों को राज्य स्तरीय सम्मान समारोह में सम्मानित किया जाना चाहिए। हिमाचल में पशुधन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने एक प्रोजेक्ट स्वीकृत किया है। इसके तहत प्रदेश में जल्दी ही 4750 करोड़ रुपए की लागत से सेक्स सार्टिड सीमन फेसेलिटी सेंटर कुटलेहड़ के लमलेहड़ी गांव में 740 कनाल भूमि पर स्थापित किया जाएगा। यहां देसी नस्ल की गाय के ऐसे इंजेक्शन तैयार किए जाएंगे जिससे केवल मादा बछड़े ही पैदा होंगे। इससे सड़क पर बेसहारा पशुओं की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिलेगा तथा किसान पशुधन गतिविधियों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश सरकार शीघ्र ही केंद्र की मंजूरी के बाद प्रदेश में 4412 करोड़ की लागत से डेयरी फार्मिंग उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने जा रही है। संभावित डेयरी फार्म में 400 दुधारू पशुओं को रखने की व्यवस्था होगी और यहां पर आधुनिक मशीनों के प्रयोग एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था भी होगी। अभी यह केंद्र कहां स्थापित होगा इस पर फैसला होना बाकी है। यह खुशी की बात है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने पहाड़ी गाय को अब नए गौरी नाम से पंजीकृत करवाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। पशुपालन विभाग लोगों से पहाड़ी गाय खरीदेगा और उसके संरक्षण और नस्ल सुधार पर कार्य करेगा। पहाड़ी नस्ल की गाय तैयार करने के लिए सरकार ने 11 करोड़ का ब्रीडिंग प्रोजेक्ट भी शुरू किया है जहां गाय पर रिसर्च वर्क होगा। पहाड़ी गाय का नाम मां पार्वती के नाम को ध्यान में रखकर किया गया है। सरकार शीघ्र ही पहाड़ी गाय का शुद्ध देसी दूध  हिमगौरी ् नामक ब्रांड के अंतर्गत बाजार में उपलब्ध करवाने जा रही है जिसको मुख्यमंत्री के कर कमलों से शीघ्र ही लांच किया जाएगा। आशा है आने वाले समय में देसी पहाड़ी गाय  गौरी के संरक्षण और संवर्धन से प्रदेशवासियों को भी ए.1 टू बीटा केसीन दूध प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होगा जिससे स्वस्थ नागरिक और स्वस्थ हिमाचल का सपना भी साकार होगा। वैसे भी कई विशेषज्ञों के अनुसार गाय का दूध सर्वोत्तम माना जाता है। खासकर बच्चों के लिए गाय का दूध गुणकारी माना जाता है। गायों के पालन में पशुपालकों को भी ज्यादा दिक्कतें नहीं आती हैं। उन्हें चारा आदि का प्रबंध करना भी आसान होता है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि गाय का दूध भैंस के दूध से ज्यादा बढि़या होता है। हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में दुरूह स्थिति होने के कारण जहां भैंस जैसी भारी-भरकम जानवरों का पालन बहुत मुश्किल है, वहां गौ पालन को अपनाकर पशुपालक सहज सुविधा में भी रहेंगे और साथ ही गाय का गुणकारी दूध बेचकर वे अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बना सकते हैं।    

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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