गीता रहस्य

By: Aug 17th, 2019 12:12 am

स्वामी रामस्वरूप

गतांक से आगे…

ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद भी ईश्वर से ही उत्पन्न ज्ञान है अन्य किसी से नहीं। परमेश्वर में अनंत गुण है तथा अनंत गुणों एवं सामर्थ्य वाले उस एक सर्वव्यापक परमेश्वर की सामर्थ्य में ही सब गुण है। श्रीकृष्ण महाराज ने भगवदगीता में जितने भी ईश्वर के अलौकिक गुण कहे हैं वह सब वेदों से ही लेकर कहे अर्थात श्रीकृष्ण महाराज स्वयं वेद विद्या में पारंगत और योगाभ्यास कहते हुए ब्रह्मलीन विभूति हुए हैं। वह स्वयं परमेश्वर नहीं थे, अपितु ब्रह्मलीन होकर परमेश्वर के समान हो गए थे और उन्होंने ब्रह्मलीन अवस्था में परमेश्वर के गुणों का व्याख्यान किया है तथा ऐसी अलौकिक विभूति सदा पूजनीय और वंदनीय थी, है और रहेगी। क्योंकि श्रीकृष्ण महाराज ने संपूर्ण भगवदगीता में वेदानुकूल उस निराकार, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ही पूजा का आह्वान किया है। अतः हमें वेदों में कहे ‘अजः एकपात’ अर्थात अविनाशी जन्म-मरण से रहित और सदा एक रस रहने वाले अर्थात कभी न बदलने वाले उस परमेश्वर की ही वेदविद्या में कहे मार्ग के अनुसार पूजा करनी है। इसके लिए हमें पुनः वेदों की ओर लौटना होगा। श्लोक 9/17 में श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन से कह रहे हैं कि इस जगत का मैं पिता, माता, धारण, पालन-पोषण करने वाला और पितामह हूं और मैं ही जानने योग्य पवित्र ओंकार हूं। ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद मैं ही हूं।

भावार्थ- यहां भी श्रीकृष्ण परमेश्वर के प्रेम में लीन अपने आपको परमेश्वर कह कर उस निराकार परमेश्वर की स्तुति कर रहे हैं। अब हम ऊपर कहे सब गुणों को वेदों से प्रमाणित करते हैं जिन वेदों का अध्ययन योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज ने ऋषि-मुनियों की शरण में रहकर किया है और भगवदगीता के रूप में उन वेदों के ही अनुसार धर्मयुद्ध करने की प्रेरणा दी। अथर्ववेद मंत्र 4/35/1 में कहा ‘ऋतस्य प्रथमजाः’ ऋत-अर्थात सब सत्य विद्याओं रूप चारों वेदों को ही उत्पन्न करने वाले प्रजापति प्रजा के रक्षक, परमेश्वर ने ब्रह्मणे सब मनुष्यों को ज्ञान देने के लिए अपचत पकाया अर्थात उत्पन्न करके दिया। मंत्र में प्रजापति का अर्थ प्रजा का पालन एवं रक्षा करने वाला परमेश्वर है। अतः हम वेदों को सदा ईश्वर से उत्पन्न अलौकिक ज्ञान समझें और इसी ज्ञान को पाकर मनुष्य विद्वान होते हैं। – क्रमशः


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