बालिका शिक्षा और सुरक्षा की दरकार

By: Aug 5th, 2019 12:06 am

अदित कंसल

लेखक, नालागढ़ से हैं

2016 में फोरेंसिक लैब धर्मशाला की अध्ययन रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सबसे अधिक कम उम्र की लड़कियां बलात्कार का शिकार हुई हैं। छात्राओं के साथ दुराचार का ग्राफ 48.57 फीसदी रहा। साल दर साल यह ग्राफ बढ़ रहा है। बेटियां अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं। आरोपियों में पिता, दादा व चाचा भी सम्मिलित हैं। बालिका की सुरक्षा केवल सरकार व प्रशासन के हवाले नहीं की जा सकती, अपितु यह सबका सामूहिक दायित्व है। सरकार, प्रशासन, समाज, समाजसेवी संगठन, समुदाय, महिला मंडल, पंचायतें, स्थानीय निकाय, राज्य महिला आयोग, बाल कल्याण समिति, सभी को मिलकर सोचना होगा…

बालिका सशक्तिकरण की प्रथम सीढ़ी बालिका शिक्षा है। बालिका शिक्षा से ही एक बेहतर समाज का निर्माण संभव है। बढ़ती जनसंख्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की निदेशक पूनम मुतरेजा ने कहा कि शिक्षा सर्वश्रेष्ठ गर्भनिरोधक है। बेटियां जितना अधिक पढ़ेंगी, जनसंख्या का बोझ उतना कम होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बालिका सशक्तिकरण के लिए हरियाणा के पानीपत  से 22 जनवरी, 2015 को ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की। फरवरी 2018 में नीति आयोग की ओर से जारी  ‘हेल्दी स्टेट्स  प्रोग्रेसिव इंडिया’ रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में जन्म लिंग अनुपात (एसआरबी) में 14 प्वाइंट गिरावट दर्ज की गई है। इसलिए प्रदेश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान को धरातली बनाना होगा, ताकि 2021 की जनगणना में बाल लिंगानुपात में आमूलचूल सुधार हो सकें। बेटी को पढ़ाना तो बाद की बात है, इससे पहले बेटी को बचाना है। बेटी बचाने से हमारा तात्पर्य यह है कि समाज में व्यापक लिंग भेद समाप्त किया जाए तथा भू्रण हत्या पर नकेल कसी जाए। बालिकाओं के प्रति छेड़छाड़ व ईव टीजिंग के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले वर्ष मंडी जिले के बल्ह क्षेत्र में कालेज छात्रा ने छेड़छाड से तंग आकर फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। आरोपी एक वर्ष से छात्रा को तंग कर रहा था।  नगरोटा सूरियां में जमा दो की छात्रा ने खुद को आग लगाकर जान दे दी। मरने से पूर्व छात्रा ने बयान दिया कि एक युवक उससे स्कूल आते-जाते छेड़छाड़ करता था तथा फब्तियां कसता था।

प्रदेश में बाल आश्रमों में बच्चियों से छेड़छाड़ व यौन शोषण के मामले समाचार पत्रों की सुर्खियां रहे हैं। प्रदेश में बढ़ते बाल विवाह भी बालिका व शिक्षा के बीच दूरी बढ़ा रहे हैं।  संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। पिछले एक वर्ष में प्रदेश में 12 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं। सर्वाधिक मामले सिरमौर से तथा उसके बाद चंबा से हैं। प्रदेश के दुर्गम और पिछड़े क्षेत्रों से बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं। चाइल्ड लाइन की मदद से ये मामले सामने आए, कई बाल विवाह तो चोरी-छिपे, आड़ में हो रहे हैं। बच्चियों के प्रति यौन शोषण मामलों में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। मां-बाप लड़कियों को अपमानित होने के भय से विद्यालय या कालेज नहीं भेजना चाहते, अपितु शीघ्र विवाह कर स्वयं को भारमुक्त करना चाहते हैं। गगरेट में 80 वर्षीय बुजुर्ग ने सात वर्षीय छात्रा, जो कि स्कूल से छुट्टी होने के बाद घर आ रही थी, के साथ दुराचार किया। बिलासपुर में नौ वर्षीय भतीजी, जिसने पांचवीं कक्षा की परीक्षा दी थी, को चाचा ने हवस की भेंट चढ़ा दिया। जिला सिरमौर में 14 वर्षीय बच्ची का सौतेला पिता उससे अश्लीलता करता था, कारणवश वह मानसिक रूप से असंतुलित हो गई तथा मजबूरी में स्कूल छोड़ना पड़ा। शिक्षण संस्थानों में भी बच्चियों के साथ छेड़छाड़ व दुराचार के मामलों में इजाफा हुआ है। देहरा के सरकारी कालेज में कर्मचारी द्वारा छात्रा को पास करवाने की एवज में शारीरिक संबंध बनाने का दबाव डालना शर्मनाक है। हाल ही में बिलासपुर के निजी स्कूल में तीन साल की बच्ची के साथ हुए दुराचार ने शिक्षाविदों की नींदें उड़ा दीं। दुराचारी उसी विद्यालय में पढ़ने वाला छात्र है। कई अध्यापक भी यौन शोषण की घटनाओं में संलिप्त होकर गुरु-शिष्य परंपरा को कलंकित कर रहे हैं। 2016 में फोरेंसिक लैब धर्मशाला की अध्ययन रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सबसे अधिक कम उम्र की लड़कियां बलात्कार का शिकार हुई हैं। छात्राओं के साथ दुराचार का ग्राफ 48.57 फीसदी रहा। साल दर साल यह ग्राफ बढ़ रहा है। बेटियां अपने ही घर में सुरक्षित नहीं हैं। आरोपियों में पिता, दादा व चाचा भी सम्मिलित हैं।

बालिका की सुरक्षा केवल सरकार व प्रशासन के हवाले नहीं की जा सकती, अपितु यह सबका सामूहिक दायित्व है। सरकार, प्रशासन, समाज, समाजसेवी संगठन, समुदाय, महिला मंडल, पंचायतें, स्थानीय निकाय, राज्य महिला आयोग, बाल कल्याण समिति सभी को मिलकर सोचना होगा। सकारात्मक सोच ही भ्रूण हत्या को रोक सकेगी। बाल विवाह को रोकने के लिए चाइल्ड लाइन के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग व शिक्षा विभाग की भूमिका सुनिश्चित की जानी चाहिए। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट-2012 (पॉक्सो) के प्रति विद्यालयों व सार्वजनिक स्थानों पर व्यापक प्रचार होना चाहिए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, शिक्षा बोर्ड जैसी संस्थाएं ‘बालिका शिक्षा और सुरक्षा’ पर रिसर्च प्रोजेक्ट व स्टडी करवा सकती हैं। शिक्षा विभाग द्वारा यौन प्रकरणों की रोकथाम के लिए शिक्षण संस्थानों में जेंडर सेंसटाइजेशन कार्यक्रम आरंभ किया जा रहा है। आशा है कि इससे छेड़खानी के मामलों में कमी आएगी। पोक्सो एक्ट के मामले सुलझाने के लिए प्रदेश में फास्ट टै्रक कोर्ट गठित की जानी चाहिए। ईव टीजिंग रोकने के लिए सादे कपड़ों में पुलिस शिक्षण संस्थानों के आसपास तैनात होनी चाहिए। स्कूल प्रबंधन को बस्तामुक्त दिवस वाले दिन समिति, पंचायत व मौजीस लोगों की बैठक आमंत्रित कर लिंग भेद, बाल विवाह, छेड़खानी, यौन समस्याओं पर विद्यार्थियों व अध्यापकों सहित विस्तृत चर्चा करनी चाहिए। समस्या हमारी है, समाधान भी हम हैं। बालिका सुरक्षा व शिक्षा ही स्वस्थ प्रदेश व स्वस्थ भारत का निर्माण करेगी। बेहतर होगा कि प्रदेश सरकार बालिका हित में खंड स्तर पर काउंसलर की नियुक्ति कर दे, ताकि वह समय-समय पर विद्यालय व कालजों में जाकर छात्र व छात्राओं की काउंसिलिंग कर सके। सरकार का यह कदम शिक्षा क्षेत्र में क्रांति लाने में सहायक होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App