बुजुर्गों के जीने की हाजिरी

By: Aug 26th, 2019 12:06 am

बुजुर्गों की मानसिक व शारीरिक जरूरतों के हिसाब से, डे केयर केंद्रों की शुरुआत को सामाजिक विकल्प और सरकारी पहल के रूप में देख सकते हैं। हिमाचल के मंडी, शिमला और धर्मशाला से इनकी शुरुआत और सुविधाओं को देखते हुए यह उम्मीद कर सकते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों की हिफाजत में, कहीं दिन की रोशनी खड़ी है या अकेलेपन से मजबूर लोग इस बहाने अपने वैचारिक साथी पा लेंगे। ऐसे केंद्रों में नागरिक संवाद और मनोरंजन अवसरों के अलावा, हल्की-फुल्की कसरतों के माध्यम से जीवन के दीप जले रहेंगे। वरिष्ठ नागरिकों के चरित्र में सामाजिक खामियों को देखते हुए, इनके लिए ये केयर सेंटर वास्तव में जीवन के क्लब बनें तो साझा करने के लिए यादें, अनुभव और मूल्यांकन करने की विधियां आसान हो जाएंगी। प्रदेश में नागरिक तरक्की ने घरों के भीतर कई अंधेरे कोने पैदा करने शुरू किए हैं और जहां बुजुर्गों के लिए अकेलेपन की घुटन बढ़ रही है। डे केयर सेंटर को सामाजिक बिखराव का उपचार तो नहीं मान सकते, अलबत्ता वहां जीने की हाजिरी जरूर लग सकती है। हिमाचल में सेवानिवृत्ति के बाद या बुढ़ापे की सीमा में प्रवेश करते लोगों के लिए अब जीने की हाजिरी लगाना जरूरी है। इसके लिए पहले से ही कई सामाजिक व धार्मिक संगठन काम कर रहे हैं, जबकि सरकारी छत के नीचे बुढ़ापे को मिल रहा आश्रय जीवन के मकसद को आगे बढ़ा सकता है। प्रदेश के माहौल में वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सरकार की चिंताएं पहले से रही हैं, लेकिन इस वर्ग की उपयोगिता को समर्थन नहीं मिला। सेवानिवृत्ति के बाद कुछ खास तरह के लोग सेवा विस्तार पा जाते हैं, जबकि एक नीति के तहत रिटायर लोगों के अनुभव को सरकारी सेवाओं के माध्यम से बांटा जा सकता है। स्कूल शिक्षा बोर्ड तथा संबंधित  महकमा एक कार्ययोजना के तहत सेवानिवृत्त अध्यापकों के मार्फत छात्रों के पठन-पाठन व ज्ञान को परिमार्जित करा सकते हैं। इसी तरह विभिन्न विभागों की परिपक्वता तथा निरंतरता को आगे बढ़ाने के लिए रिटायर लोगों का सहयोग लिया जा सकता है। सरकार की सहयोगी संस्थाओं के प्रारूप में वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की हाजिरी लगे, तो कर्म की संस्कृति नए सिरे से परिभाषित हो सकती है। बहरहाल डे केयर केंद्र की परिधि में हम बढ़ती उम्र के सुकून और दर्द का बंटवारा चाहते हैं, जो चंद सुविधाओं और आपसी भाईचारे से बुजुर्गों के कई विराम तोड़ सकता है। इसी के साथ यह भी तय करना होगा कि हमारे सुशासन का ढांचा, सुविधाओं का खाका और स्थानीय निकायों का वादा इस वर्ग को कितनी राहत दे रहा है। जमीनी विवादों की फेहरिस्त में अदालती मामले अगर उम्र नहीं देखेंगे, तो न्याय को तरसती वृद्धावस्था को डे केयर केंद्र भी क्या देगा। अस्पतालों में बुजुर्गों के जीवन संघर्ष को समझा ही न जाए या व्यवस्था इनकी अंगुली पकड़ कर इलाज न करे, तो सारी कवायद केवल एक पहलू बनकर रह जाएगी।  बुजुर्गों को चलने के लिए केवल लाठी नहीं, चलने को सुरक्षित फुटपाथ व टहलने को पार्क चाहिए। हिमाचल के गांव और शहर इस काबिल नहीं रहे कि उम्र दराज लोग बदलते समय चक्र को अपना लें। किसी भी शहर का सार्वजनिक परिवहन बुजुर्गों की चिंता नहीं कर रहा और न ही मुख्य बाजार वाहन वर्जित माल रोड बनाए जा रहे हैं। आखिर डे केयर सेंटर तक पहुंचने के लिए भी तो सुरक्षित व सस्ती परिवहन तथा घर तक सस्ते राशन पहुंचाने की व्यवस्था चाहिए। किसी भी सभ्य समाज का भविष्य अगर बच्चे व युवा हैं, तो दौलत बुजुर्गों की जिंदगी से हासिल अनुभव तथा उनकी खुशी है। ऐसे में हिमाचल सरकार ने प्रारंभिक तौर पर तीन डे केयर सेंटर खोलकर समाज के कई विराम तोड़ते हुए वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान किया है।


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