मंत्रिमंडल के मंसूबे
मंत्रिमंडलीय फैसलों के लड्डू यूं तो खूब बांटे जाते हैं, लेकिन तथ्य की तारीख में प्रश्नों को छूने की हिम्मत भी देखी जाती है। हमें हिमाचल सरकार के फैसलों में लड्डू ढूंढने हैं, तो करीब बारह सौ पटवारियों के पद भरने की सूचना सराही जाएगी। दूसरी ओर मसलों और मंसूबों का हाल भी बयां है और गौर से देखें तो हाल ही में गैरहिमाचलियों की नियुक्तियों पर उठे बवाल के सामने सरकार ने नीति रख दी है, क्योंकि भविष्य में बारहवीं तक हिमाचल स्कूल शिक्षा बोर्ड से उत्तीर्ण ही पात्र होंगे। मंसूबों की जिद पर जयराम सरकार, आग बुझाते मारे गए डिप्टी रेंजर के बेटे को मानवीय आधार पर नौकरी का पैगाम सुना रही है। इस तरह करुणामूलक आधार पर नौकरी देने का फैसला नई परिपाटी का श्रीगणेश करेगा जहां मृतक अधिकारी के परिवार को मिलने वाले लाभों की कोई सीमा नहीं मापी जाएगी। सरकार के फैसलों में ऐसी बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें सुनकर कर्मचारी वर्ग अपना सीना फुलाएगा या क्षेत्रीय राजनीति की क्षुधा शांत होगी। कहीं मानदेय बढ़ रहा है, तो कहीं मदर टेरेसा मातृ संबल योजना की अनुदान राशि में इजाफा हो रहा है। कुछ स्कूलों में विज्ञान-वाणिज्य की कक्षाएं शुरू होंगी, तो कुछ कालेजों में स्नातकोत्तर शिक्षा का बोर्ड लगेगा। यह दीगर है कि पहले से जारी शिक्षा के क्रमों में गुणवत्ता के कमजोर हालात तथा विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रमों में शैक्षणिक उत्थान से निराश छात्रों ने प्रवेश लेने से मुंह मोड़ लिया है, इसलिए बार-बार रिक्त स्थानों के लिए शर्तें घटा कर भी शिक्षा की कोई संतोषजनक पैरवी नहीं हुई। अदालती आदेशों में फंसे एसएमसी शिक्षकों के लिए राहत यह कि सरकार ने इन्हें बरकरार रखने के लिए साल भर की सेवा एक्सटेंशन दे दी है। सरकार के लड्डू प्रतीक्षारत बेरोजगारों को अपनी क्षमता और संभावना के तहत नए पदों में देखने को मिलेंगे, तो किसान-बागबान के लिए जमीन की बाड़बंदी में अनुदान का अंशदान बढ़ रहा है। सरकार के सबसे अधिक साहसिक कदमों की प्रतीक्षा में निवेशक हैं और कमोबेश हर मंत्रिमंडलीय बैठक में इन्हीं सुरों को सुना जाता है। गुरुवार की बैठक में निवेश प्रोत्साहन की एक और व्याख्या हुई है। खास तौर पर देश में आर्थिक मंदी जैसी स्थिति और राजनीतिक वातावरण में एक देश-एक कानून का वातावरण पनप रहा है, तो हिमाचल में धारा 118 की समीक्षा भी हो रही है। ऐसे में इन्वेस्टर मीट से पहले प्रोत्साहन, प्रेरणा और प्रयत्न के हर पहलू में हिमाचल सरकार की स्पष्टता तथा पारदर्शिता देखी जाएगी। जाहिर है जयराम सरकार नए निवेश के प्रति अपनी वचनबद्धता को नीतिगत अंजाम तक पहुंचाने में मेहनत कर रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में मंत्रिमंडल की बैठक जमीन लीज के नियमों में सुधारक की भूमिका निभाते हुए 95 साल का वादा कर रही है। विद्युत और ट्रांसपोर्ट सबसिडी के साथ-साथ टैक्स की गणना में निवेशक को राहत देती हुई प्रतीत हो रही है। हिमाचल में निजी औद्योगिक परिसरों की स्थापना में पच्चीस करोड़ तक की सहायता से बड़े औद्योगिक घरानों के आगमन की हलचल सुनी जा सकती है, फिर भी क्षेत्रवार निवेश के लिए नीतियों का और खुलासा चाहिए। प्रदेश में निवेश के कई क्षेत्र सुस्त रहे हैं, जबकि जिनमें बाहरी आकर्षण बढ़ा वहां भूमि के मसले चिंताएं पैदा करते हैं। प्रदेश में रोजगार की दृष्टि से ऐसा निवेश जरूरी है जो क्वालिटी नौकरियां पैदा करें। यह इसलिए क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र बसाने तथा अस्सी फीसदी हिमाचलियों को नौकरी प्रदान करने की शर्तों के बावजूद पढ़े-लिखे नौजवान बीबीएन के बजाय राज्य से बाहर जा रहे हैं। जाहिर है हिमाचली युवा आईटी, फूड, जैविक या नोलेज पार्कों की स्थापना में अपना भविष्य देखता है, जबकि इस दिशा में राज्य अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाया।
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