शांत हिमाचल नाले पागल

By: Aug 26th, 2019 12:10 am

चंद दिन में शांत हिमाचल को छह सौ करोड़ के जख्म देने वाली बरसात को जानलेवा बनाने के सबसे बड़े दोषी वे नाले हैं, जो साल भर पानी को तरसते हैं, लेकिन सावन आते ही ये गिरगिट की तरह रंग बदलने लगते हैं। भुंतर का कांगड़ी नाला हो या फिर शिमला का शालवी दरिया, चंबा की कलम खड्ड हो या फिर हमीरपुर की कुणाह, ये सब कुछ दिन में करोड़ों निगल जाते हैं। कुछ दिन हो हल्ला होता है, चैनेलाइजेशन की बातें होती हैं, लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात। आखिर क्यों प्रदेश सरकार समय रहते इन बेलगाम नालों पर लगाम नहीं कसती, प्रस्तुत है इस बार का दखल…

सूत्रधार : शकील कुरैशी, जितेंद्र कंवर, अश्वनी पंडित, सूरत पुंडीर दीपक शर्मा, पवन कुमार शर्मा, सुरेंद्र ममटा, मंगलेश कुमार, टेकचंद वर्मा, आशीष भरमोरिया, मोहर सिंह पुजारी, तनुज सैणी

चंबा की खड्डें ज़मीन जान, दोनों पर भारी

चंबा जिला के विभिन्न उपमंडलों में दर्जनों ऐसे नाले हैं, जो बरसात में उफान पर आकर तबाही का मंजर पेश करते हैं। इन नालों के उफान पर आने से जहां लाखों रुपए की वनसंपदा व उपजाऊ जमीन को नुकसान होता है, वहीं इनसानी जिंदगी के लिए भी आफत बन जाते हैं। चंबा के चुराह में पंगोला नाला डेंजर प्वाइंट के तौर पर उभरा है। बारिश का दौर आरंभ होते ही नाले के उफान पर आने से उपमंडल का संपर्क शेष विश्व से कटकर रह जाता है। नाले के पानी से भू-स्खलन व भूमि कटाव होने से तीसा मार्ग का काफी हिस्सा धंस भी गया है। इसके अलावा भटियात उपमंडल की कलम व चक्की खड्ड के उफान पर आने से मचने वाली तबाही से भी हर कोई वाकिफ है। सलूणी का घराटनाला भी बारिश के दिनों में उफान पर आने से भारी तबाही मचाता है। इससे जहां वाहनों की रफ्तार रुक जाती है, वहीं आसपास के इलाकों में तबाही का सैलाब आ जाता है। भरमौर एनएच पर बग्गा के समीप रूंगडी नाले के उफान पर आने से अकसर यातायात ठप हो जाता है। चंबा उपमंडल का भट्ठी नाला भी तबाही लाकर कहर बरपा देता है।

जिला कांगड़ा के नाले डराने वाले

कांगड़ा घाटी की अधिकतर खड्डें व नाले गहरे हैं, बरसात के दिनों में इन नालों का लोगों में खौफ रहता है। भारी बरसात के दौरान जब यह अपना रौद्र रूप दिखाते हैं, तो आसपास बसे लोगों के लिए मुसीबत बन जाती है। जिला की प्रत्येक खड्ड व नाले दर्जनों गांवों से होकर गुजरती हैं। मांझी, मनूणी, चरान, बनेर, गज्ज, खौली, चंबी सहित दर्जनों खड्डें ऐसी हैं, जो बरसात में जब अपना रौद्र रूप दिखाती हैं, तो लोगों को खूब डराती हैं। इन खड्डों का जलस्तर पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ रहा है। अब ये खड्डें नजदीक बने मंदिरों, पार्क एवं अन्य संस्थानों के लिए परेशानी का सबब बनने लगी हैं। जिला कांगड़ा के विभिन्न उपमंडलों के तहत भी बरसात में अचानक रौद्र रुप धरकर नुकसान पहुंचाने वाले खड्ड-नालों की सूची भी लंबी है। नूरपुर क्षेत्र में चक्की खड्ड का नाम भी इसी सूची में शामिल है। अवैध खनन के चलते चक्की खड्ड अब नुकसान पहुंचाने को भी अमादा हो चुकी है। वहीं, देहरा में आठ से 11 खड्डे-नाले ऐसे हैं, जो हर बरसात में नुकसान पहुंचाते हैं। इस क्षेत्र में नकेड़ खड्ड, ढलियारा खड्ड, नक्की खड्ड तथा खप्पर नाला प्रमुख हैं। अचानक से इनमें आने वाले पानी के तेज बहाव के चलते जानमाल का भी नुकसान होता है। इसी तरह पालमपुर की न्यूगल खड्ड पिछले साल से अपने रौद्र रुप में आने के बाद करोड़ों रुपए की राशि को नुकसान पहुंचा चुकी है। इस खड्ड के समीप बना सौरभ वन विहार इस खड्ड के रौद्र रूप की भेंट चढ़ चुका है। इसी तरह क्षेत्र में मौल खड्ड भी कई बार अपनी सीमा से बाहर निकलकर लोगों को डराती है। जिला के जयसिंहपुर क्षेत्र में मुख्य रूप से ब्यास नदी बरसात में अपने तटों के समीप बने रिहायशी क्षेत्रों को दहशत में डाल देती है। इसके अलावा इस क्षेत्र में सकाड़ खड्ड, मंद खड्ड तथा हड़ोटी खड्ड भी बरसात के दिनों में लोगों को डराती है। नूरपुर की जब्बर खड्ड भी खूब कहर बरपाती है।

2014 में हुई बर्बादी नहीं भूला हमीरपुर

हमीरपुर जिला में करीब एक दर्जन से अधिक ऐसी खड्डें और नाले हैं, जो बरसात के मौसम में काफी रौद्र रूप दिखाते हैं। वर्ष 2014 की अगस्त माह की रात को हुई भारी बारिश को लोग अब तक नहीं भूल पाए हैं। कुणाह, बाकर, पुंग, सीर और मान खड्ड ने जिला भर में काफी तबाही मचाई थी। भोरंज उपमंडल के जाहू में सीर खड्ड ने वर्ष 2014 में जहां ब्रिज बैली पुल बहा दिया था, वहीं, तीन लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा नादौन में बहने वाली कुनाह खड्ड उसी वर्ष एक डेयरी फार्म को बहाकर ले गई थी। फार्म में बंधी आधा दर्जन से अधिक भैंसें मौत का ग्रास बन गई थीं। नादौन में ही बहने वाली मान खड्ड ने भी काफी उपद्रव मचाते हुए गौना करौर में एक दर्जन से अधिक दुकानों को नुकसान पहुंचाया था। हाल ही में हुई भारी बारिश से मान खड्ड में जहां हड़ेटा स्कूल का एक छात्र व दो अध्यापक पानी के तेज बहाव में फंस गए थे। सालों से बंद पड़ी निजी कालेज की बिल्डिंग का आधा हिस्सा भी पानी के तेज बहाव में कागज की तरह बह गया। जिला भर में नजर दौड़ाई जाए, तो भोरंज उपमंडल में सीर, चैंथ, कुणाह, सुनैहल, लिंडी इत्यादि खड्डें बरसात में खूब कहर बरपाती हैं। खासकर सीर, चैंथ और सुनैहल खड्ड आगे जाकर एक जगह इकट्ठा होती हैं और यह क्षेत्र में हर वर्ष काफी तबाही मचाती हैं। इसके अलावा सीर व चैंथ खड्ड किनारे बसे नगरोटा गाजियां, खड्ड बाजार, बधानी व चंदरुही बाजार में वर्ष 2014 में बाढ़ से कई लोगों के घरों व दुकानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। सुजानपुर के वार्ड नंबर आठ में बहने वाला ब्रह्मपुरी महौला नाला बरसात में लोगों की दिक्कतें बढ़ा देता है। पिछले वर्ष भी नाले का मलबा करीब 100 घरों में घुस आया था, जबकि दो वाहन पानी के बहाव में बह गए थे। बड़सर में शुक्कर, गवारड़ व सरहयाली खड्डें भी बरसात में उफान पर रहती हैं। हालांकि सरहयाली खड्ड जब रौद्र रूप में होती है, तो झंझियाणी, नारा, दरकोटी व जजल गांव के लोगों का कनेक्शन हमीरपुर जिला से कट जाता है।

राजधानी की खड्डें भी न मानीं

शिमला में इस मानसून चौपाल-नेरवा व ठियोग में पागल हुए नालों ने पांच लोगों के प्राण हरे हैं। ठियोग के चिखड़ खड्ड में चार लोग पानी की चपेट में आ गए थे। हालांकि दो लोगों को बचा लिया गया था, लेकिन दो लोगों की पानी में डूबने से मौत हो गई थी। वहीं, चौपाल-नेरवा की सैंज खड्ड में एक और शकराना नाले में दो बच्चों की मौत हो गई थी।

11 अगस्त, 1997 में आंद्रा ने ली थी 250 की जान

रोहडू में आंद्रा खड्ड में बाढ़ आने से अब तक का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था। साल 1997 में 11 अगस्त का आंद्रा खड्ड में भारी बरसात के दौरान बाढ़ आ गई थी, जिससे कई गांव बाढ़ की चपेट में आ गए थे। स्थानीय लोगों के मुताबिक बाढ़ में एक ही दिन ने करीब 250 लोगों के प्राण छीन लिए थे।

चौपाल-नेरवा: शाल्वी, हमल्टी, तंरा, काटली, खगरोटी नाला, शकराना नाला, सैंज खड्ड, दयाली नाला, भारड , शिला, भालू नाला व कुपवी खड्ड शामिल हैं।

ठियोगः चिखड़ खड्ड, क्यार खड्ड, मौहरी खड्ड, क्यारा खड्ड, गिरि गंगा नदी

रोहडूः पब्बर नदी, जीवाशल नाला, आंद्रा व पेजा खड्ड।

उल्टी दिशा में बहने वाले नालेः जिला में उल्टी दिशा में बहने वाले नाला नेरवा का दयाली नाला।

मंडी में मंजर कुछ और ही छोटी काशी

सीर-बरच्छवाड़ खड्ड

सरकाघाट की सीर खड्ड बरसात में रौद्र रूप धारण कर लेती है। सीर खड्ड में दो साल पहले सैण गांव में दो साल पहले एक स्कूल का बच्चा बह गया था। वह खड्ड पार कर रहा था। इसी तरह सरकाघाट में रिस्सा खड्ड बरसात के दौरान काफी उफान पर रहती है।

कटौला का बागी नाला

पराशर के लिए जाने वाले रास्ते में कटौला से आगे नाले का नाम भी बागी नाला रखा गया है।

बल्ह पर सुकेती का कहर

बल्ह घाटी से गुजरती हुई सुकेती खड्ड मंडी में पंचवक्त्र मंदिर में ब्यास से मिलती है। यह खड्ड बरसात में बल्हवासियों की खेती पर कहर बनकर टूटती है।

उमली खड्ड बहती है उल्टी

उमली खड्ड कोटली से साई गलू होते हुए नेरचौक में सुकेती से मिलती है, यह खड्ड उल्टी दिशा में बहती है।

मंडी शहर का गरुड़ नाला

मंडी शहर का गरुड़ नाला कुछ साल पहले बहुत तबाही मचा चुका है। कई साल पहले बादल फटने के बाद यह नाला अपने साथ चार लोगों को बहा ले गया था, जिनकी मौत हो गई।

ज्यूणी खड्ड का खौफ

देवीदहड़ की पहाड़ी से उफनती हुई चलती ज्यूणी खड्ड पंडोह में ब्यास से मिलती है। ब्यास में संगम से पहले यह खड्ड कई इलाकों में सेंधमारी करती हुई बहती है।

स्नोर खड्ड में डूबा था धर्मपुर बस स्टैंड

धर्मपुर की स्नोर खड्ड ने 2015 में अगस्त में भयंकर तबाही मचाई थी। खड्ड किनारे बना बस स्डैंट पूरी तरह जलमग्न हो गया था, जबकि एचआरटीसी की भी कई बसें पानी में डूब गई थीं।

ऊहल-लंबाडग नदी बहा ले जाती है मुल्थान-बरोट

बरोट में ऊहल और लंबाडग नदी 2018 की बरसात में बरोट और मुल्थान बाजार में तबाही मचा चुकी है। किनार बसने वाले लोगों को अपने घर और दुकानें खाली करनी पड़ी थीं, जबकि प्रोजेक्ट को भी इससे नुकसान हुआ था।

खानी नाला बंद कर देता है एनएच

गुम्मा में खानी नाला हर दूसरी बरसात में कहर बरपाता है। इससे मंडी-पठानकोट एनएच-154 कई घंटों तक ठप पड़ जाता है।  चौहार घाटी में भी स्वाड़ नाला 1993 में भारी तबाही मचा चुका है। इसमें 22 लोगों की मौत हो गई थी।

बिलासपुर के लिए सीर खड्ड ही काफी

हर साल बरसाती मौसम में बाढ़ के दौरान सबसे अधिक तबाही मचाने वाली एकमात्र सीर खड्ड ही है। सीर खड्ड में 12 अगस्त, 2007 को आई भयंकर बाढ़ ने तबाही मचाई थी, जिसमें एक व्यक्ति की बाढ़ की चपेट में आने से मौत हो गई थी, जबकि कई गोशालाएं सहित सैकड़ों बीघा भूमि बाढ़ की चपेट में आ गई थी। वह काली रात आज भी लोगों के जहन में है। जब भी बारिश का मौसम शुरू होता है, तो लोग उस तबाही के मंजर की याद से कांप उठते हैं। इसके बाद हालांकि हर साल बरसात में भू-कटान की वजह से बंजर व उपजाऊ जमीन को नुकसान हो जाता है, लेकिन इस साल अगस्त में शनिवार की रात हुई भयावह बारिश ने बिलासपुर में करोड़ों का नुकसान किया। करयालग गांव के सात परिवार बेघर हुए हैं और पहाड़ी दरकने से अन्य मकानों को भी खतरा बना हुआ है।

जिंदगी पर बन आते हैं सोलन के नाले

परवाणू की कौशल्या में बह गई थी बच्ची

जिला सोलन में अनेकों नदियां एवं नाले ऐसे हैं, जो बरसात में लोगों की ज़िंदगी मुश्किल में डाल देते हैं, लेकिन इनमें से कई ऐसे हैं। इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक परवाणू के साथ बहती कौशल्या खड्ड है। यह न केवल बरसात के दिनों में उफान पर होती है, बल्कि गर्मी के मौसम में भी कई जिंदगियां दफन करती है। पिछले साल हुई बरसात में हालांकि इस खड्ड ने एक सात वर्षीय बालक को अपनी आगोश में ले लिया था। स्कूल जाते वक्त दादा के हाथ से फिसलकर बालक नाले से बहते हुए कौशल्या खड्ड में जा समाया था। शिमला जिला से बहती हुई सोलन में पहुंचती अश्वनी खड्ड भी बरसात में बेहद खतरनाक हो जाती है। हालांकि इसमें अभी तक जानी नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन लोगों की करोड़ों की फसलें यह अपने साथ उखाड़ कर ले जाती है। साधुपुल से लेकर गौड़ा तक बहने वाले इस खड्ड के किनारे कई लोग रहते हैं। सुबाथू एवं कुनिहार के बीच बहने वाली गंभर नदी बरसात के मौसम में बेहद खतरनाक होती है। आबादी वाले क्षेत्र से दूर होने के कारण हालांकि अभी तक किसी के जान जाने की बात सामने नहीं आई है, लेकिन हर बरसात में पशुओं को जरूर बहाकर ले जाती है।

नाहन में खड़कों का कहर देखो

जिला सिरमौर के नाहन क्षेत्र में सबसे खतरनाक उत्तर भारत की प्रमुख शक्तिपीठ माता बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर के साथ बहने वाला खड़कों खड्ड प्रतिवर्ष जहां आसपास के लोगों को लाखों रुपए का नुकसान करता है, वहीं जानमाल को भी क्षति पहुंचाता है। मात्र एक सप्ताह पूर्व ही इस खड़कों खड्ड में अचानक बरसात का जलजला ऐसा आया कि इसमें दो गाडि़यां व तीन मोटरसाइकिल बह गई। इससे पूर्व भी खड़कों नाले में नवरात्र मेले के दौरान पार्क की गई करीब आधा दर्जन गाडि़यां सैकड़ों मीटर दूर तक बह गई थी तथा व्यापारियों की दुकानें भी इसकी चपेट में आ गई थीं। नाहन की सलानी खड्ड भी आसपास के लोगों के लिए खतरा बन जाती है। सुंकर खड्ड में भी बरसात के दौरान सैकड़ों बीघा जमीन प्रतिवर्ष बारिश की भेंट चढ़ती है। पांवटा साहिब के जंबूखाला, जोगर खाला आसपास के लोगों के लिए खतरा पैदा करते हैं। भले ही इन पागल नालों में अभी तक किसी की जान नहीं गई है, परंतु प्रतिवर्ष ये पागल खड्डें नींद उड़ा देती हैं। पांवटा की चांदनी खड्ड भी उफान पर आ जाती है। शिलाई के नेड़ा खड्ड व रोनहाट के साथ पागल खड्ड लोगों के लिए खतरा पैदा करती है। नेड़ा खड्ड में इस वर्ष भी मकानों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ है। इसके अलावा रेणुकाजी में जलाल खड्ड भी बरसात के दौरान लोगों के लिए जी का जंजाल बन जाती है।

पांच साल पहले बह गई थी बारात

सिरमौर में यमुना, गिरि, बाता नदी, मारकंडा नदी व जलाल नदी बहती हैं। इसके अलावा बरसाती नाले व खड्ड प्रतिवर्ष खतरा बन जाते हैं। पांच वर्ष पूर्व कोलर से हरिपुरखोल मार्ग पर भी एक बरसाती खड्ड की चपेट में एक बारात आ गई थी और इसमें आधा दर्जन गाडि़यां बह गई थी।

ऊना में स्वां और सोमभद्रा का खौफ

बरसाती मौसम में जिला के दर्जनों नाले व खड्डें तबाही मचाने के लिए हर समय तैयार रहते हैं। सूबे की सबसे बड़ी स्वां नदी व इसकी सहायक खड्डों में अचानक उफनता पानी कई बार जानलेवा साबित होता है। यूं तो स्वां नदी में अमूमन बहुत कम पानी बहता है, लेकिन यकायक आने वाले बरसाती पानी से शांत रेगिस्तान प्रतीत होती स्वां नदी अचानक जलजले का रूप धारण कर लेती है। जिन-जिन क्षेत्रों में स्वां नदी व खड्डों में तटीकरण पूरा हो गया है, वहां जल सैलाब बिना किसी नुकसान के आगे निकल जाता है, लेकिन पंजाब सीमा में पड़ने वाले क्षेत्रों में स्वां नदी हर साल भारी तबाही मचाती है। स्वां नदी में 73 छोटी-बड़ी खड्डें आकर मिलती हैं। बंगाणा में तेज बारिश से ऊना की चौरासी पौडि़यां, रामपुर खड्ड पूरे उफान पर रहती है, वहीं समूर, कोटला खुर्द व लालसिंगी खड्डें भी कहर बरपाती हैं। ऊना जिला की प्रलयकारी सोमभद्रा नदी अब तक कई लोगों की जाने ले चुकी है।

खनिज निकाल दें, तभी रुकेगी तबाही

बरसात के दिनों में नदियां, खड्डें व नाले लगातार तबाही मचा रहे हैं। हर साल बरसात के जख्म भर नहीं पाते हैं। सरकार जब बरसात से मिले जख्म भरने लगती है, उतने में बर्फबारी तांडव मचा देती है। ऐसे में हिमाचल जैसा पहाड़ी राज्य बुरी तरह से फंस चुका है। खुद सरकार मानती है कि हम इससे उभर नहीं पा रहे हैं। आखिर इससे उभरेंगे कैसे, इस पर मंथन तो किया गया, लेकिन कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका है। बताया जाता है कि वर्ष 1952 में वन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी की, जिसके तहत कोई भी जमीन, जो सरकार के मालिकाना हक में है, वह वन भूमि है। यही कानून आज गले की फांस बन चुका है, क्योंकि इसके चलते खड्डों का खनिज नहीं निकाला जा सकता, जिसके लिए वन मंत्रालय की मंजूरी चाहिए, जो आसानी से नहीं मिलती। अत्यधिक नुकसान रोकने के लिए नदियों-खड्डों की चैनेलाइजेशन करवाना जरूरी है, लेकिन इसके लिए बहुत ज्यादा पैसा चाहिए। प्रदेश सरकार को केंद्र की मदद से स्वां नदी के चैनेलाजेशन को पैसा मिला है, जिस पर काफी ज्यादा काम किया गया है। सीर खड्ड के चैनेलाइजेशन का प्रोपोजल है और पब्बर नदी का भी तटीकरण किया जाना है। फ्लड प्रोटेक्शन के लिए भी केंद्र सरकार ने 4751 करोड़ का एक प्रोजेक्ट केंद्र सरकार से मंजूर करवाया है।

बड़े मकान भी कर रहे नुकसान

स्टेट जियोलॉजिस्ट पुनीत गुलेरिया की मानें तो खड्डों का खनिज पानी का रास्ता बदल रहा है और यह पानी तबाही मचा रहा है। यदि खड्डों में मौजूद इस खनिज को वैज्ञानिक तरीके से निकाल दिया जाए और पानी को सही रास्ता मिले, तो तबाही रोकी जा सकती है। इसके लिए खनिज निकालने के लिए सरकारी मंजूरी देना जरूरी है, जिसके लिए कई औपचारिकताएं हैं। इतना ही नहीं बरसाती नाले तबाही का एक बड़ा कारण है, जो कि मानवीय गलती है। लोगों ने नालों के ऊपर या उनके किनारों पर बड़े-बडे़ आलीशान मकान बना डाले हैं। इन पर रोक के बावजूद निर्माण कार्य नहीं रुक रहा है। ऐसी परिस्थितियों में नुकसान ज्यादा हो रहा है। नालों की चौड़ाई लगातार कम हो रही है।

जब उफान पर आते हैं कुल्लू के नाले

वर्ष 1992 से शुरू हुआ बाढ़, बादल फटना और भू-स्खलन का दौर जिला कुल्लू के लोगों के लिए खतरा बनता जा रहा है। पिछले 27 वर्षों से बरसात रौद्र रूप धारण करती जा रही है। कुल्लू जिला के शाटनाले में 1992 में पहली बादल फटा था और यहां तबाही मचाई थी। इसके बाद से क्रम जारी है। हाल ही में हुई बारिश से कुल्लू के नदी-नालों ने तबाही मचा दी है। पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं। कई संपर्क मार्ग टूट गए हैं…

मणिकर्ण का कटागला नाला, पतलीकूहल में बड़ाग्रां नाला, फोजल नाला, सैंज में पागल नाला, आनी का कोटनाला, सैंज की न्यूली खड्ड, काइस नाला आदि शामिल हैं। ब्रह्मगंगा, मलाणा नाला, गड़सा नाला, पुंथल का खनौड़नाला सहित अन्य नालों में बाढ़ आने से लगातार तबाही मच रही है। 2018 में कुल्लू में बाढ़ आने से 160 करोड़ से अधिक का नुकसान आंका गया है। इस तबाही को लगभग एक साल बीत गया और वर्ष 2019 के इस अगस्त माह के चार दिनों में दस करोड़ का नुकसान हुआ है। पतलीकूहल में बड़ाग्रां नाले ने भी खूब तबाही मचाई। मणिकर्ण घाटी के कटागला नाले से ग्रामीण सहमे हुए हैं। बादल फटने से कटागला जलमग्न हो रहा है। हाल ही में भी यहां पर आई बाढ़ से भारी नुकसान हो गया है। सितंबर 2018 की बारिश ने तो यहां गांव को खड्ड की तरह रूप दे दिया है। उस दौरान यहां तीन विदेशी पर्यटक तक फंस गए थे।

भुंतर का कांगड़ी नाला

2018 से पारला भुंतर क्षेत्र में कांगड़ी नाला भी लोगों को खूब डरा रहा है। इस बार जुलाई और चालू इस अगस्त में कांगड़ी नाले में तीन बार बाढ़ आई। भुंतर क्षेत्र के अंबेडकर नगर में भारी बारिश के कारण आए कांगड़ी नाले ने तबाही मचाई थी। बाढ़ आने से नाले का मलबा स्थानीय लोगों के घरों, दुकानों व अनार के बगीचों में घुस गया था, तो प्राथमिक स्कूल बड़ा भुईन के प्रांगण व भवन में भी नाले का मलबा जा घुसा था।

सैंज का पागल नाला

सैंज घाटी का पागल नाला लोगों को तीन दशकों से लगातार परेशान कर रही है। साल में करीब बीस से अधिक बार पागल नाले में बाढ़ आ जाती है। हैरानी की बात यह है कि बारिश के दौरान इस नाले से किस तरह निपटा जाए, इसका हल नहीं मिल पाया है। इसी वर्ष फरवरी माह में बाढ़ आने से एक जीप भी बह गई है। सडक़ 100 मीटर दायरे में दलदल बनती है।


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