सिद्धि का ज्ञाता था दामोदर दास

By: Aug 21st, 2019 12:14 am

दामोदर दास गटका सिद्धि का ज्ञाता था। अतः वह अयोध्या पहुंच गया तथा वहां पुजारियों के साथ घुल मिलकर रहने लगा तथा एक दिन उसने रघुनाथ जी द्वारा बनाई मूर्तियों को चुरा लिया और कुल्लू के लिए रवाना हो गया, लेकिन पता लगने पर पुजारियों ने उसका पीछा किया और वह रास्ते में पकड़ा गया…

गतांक से आगे …

राजा ने अपने कष्ट निवारण के लिए अनेक प्रार्थनाएं कीं। उन दिनों नगर के समीप बाबा कृष्ण पयहारी रहते थे। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि राजा अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से उस प्रतिमा को लाए, जो भगवान राम ने अपने जीवन काल में स्वयं बनाई है और उसकी प्रतिष्ठा अपनी राजधानी में करें, तो उसका चर्णामृत पीने से राजा कुष्ट मुक्त हो सकता है। इस कार्य के लिए दामोदर दास को बुलाया गया। दामोदर दास गटका सिद्धि का ज्ञाता था। अतः वह अयोध्या पहुंच गया तथा वहां पुजारियों के साथ घुल मिलकर रहने लगा तथा एक दिन उसने रघुनाथ जी द्वारा बनाई मूर्तियों को चुरा लिया और कुल्लू के लिए रवाना हो गया, लेकिन पता लगने पर पुजारियों ने उसका पीछा किया और वह रास्ते में पकड़ा गया। जब दामोदर दास को मूर्ति की चोरी के लिए प्रताडि़त किया गया, तो उसने वास्तविकता से पुजारियों को अवगत करवाया, लेकिन पुजारियों ने मूर्ति को ले जाने से मना कर दिया। वह मूर्ति को अयोध्या ले जाने लगा, तो उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। जब वह कुल्लू की ओर जाने लगा उसकी दृष्टि स्पष्ट होने लगी। पुजारी ने इस घटनाक्रम को प्रभु की इच्छा समझा और उसने मूर्ति दामोदर को सौंप दी। प्रतिमा को लेकर दामोदर दास वर्ष 1651 में मकड़ाहर पहुंचा, उसके बाद 1653 में मणिकर्ण  मंदिर में रखने के बाद सन् 1660 में कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में विधि विधान से मूर्तियों को स्थापित किया। उसके पश्चात राजा राजपाट इन्हें सौंप कर स्वयं प्रतिनिधि सेवक के रूप में कार्य करने लगा तथा राजा रोग मुक्त हो गया।

रघुनाथ जी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह द्वारा वर्ष 1660 में दशहरे की परंपरा आरंभ हुई तथा कुल्लू में 365 देवी-देवता भी रघुनाथ जी को इष्ट मानकर दशहरा उत्सव में शामिल होने लगे। पूरे राज्य की भागीदारी में दशहरा उत्सव को ढालपुर मैदान में मनाया जाने लगा, जिस दिन भारत भर में आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को दशहरा का समापन होता है उस दिन कुल्लू का दशहरा आरंभ होता है। दशहरे के प्रथम दिन भगवान रघुनाथ जी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें देवी हडिंबा सहित सैकड़ों देवी-देवता भाग लेते हैं। उत्सव का पहला दिन ‘ठाकुर निकलने’ के नाम से जाना जाता है। छठे दिन को ‘मुहक्का’ कहते हैं। इस दिन दशहरे में उपस्थित देवी-देवता भगवान रघुनाथ जी के पास अपनी हाजरी लगाते हैं।                   -क्रमशः

 


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