कृषि उपज विपणन विधेयक रुका

By: Sep 1st, 2019 12:01 am

शिमला – हिमाचल प्रदेश कृषि उपविपणन विधेयक फिलहाल रुक गया है। सदन में इस विधेयक को पारित नहीं किया जा सका। विपक्ष के साथ सत्तापक्ष के विधायकों ने भी इसमें कुछ कमियां बताते हुए इसे सिलेक्ट कमेटी को भेजने की सिफारिश की, जिस पर मुख्यमंत्री ने इसे कमेटी को भेज दिया। अब यह विधेयक शीतकालीन सत्र में आएगा। कृषि मंत्री डा. रामलाल मारकंडा ने शुक्रवार को यह विधेयक पेश किया था, जिस पर शनिवार को चर्चा हुई। विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि यह विधेयक अर्थव्यवस्था से ताल्लुक रखता है, क्योंकि यहां पर सेब की एक बड़ी आर्थिकी है। वर्ष 2005 में बिल आया था, लेकिन पुराने अनुभव से सीखा नहीं गया और नवउदारवाद के रास्ते पर चलकर सरकार निजी कंपनियों को शक्तियां देने की सोच रही है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से बागबानों को समय पर उसके उत्पाद का पैसा नहीं मिलेगा, क्योंकि आढ़ती मनमर्जी से पैसा देंगे। लेन-देन की अवधि  इसमें शामिल नहीं, जिसे एक महीने रखा जाना चाहिए।  इसके साथ जो आढ़ती बागबान का पैसा नहीं देते उनके खिलाफ गैरजमानती अफेंस का प्रावधान होना चाहिए, जो कि नहीं है। उन्होंने कहा कि कारपोरेट सेक्टर को हैंडओवर नहीं किया जा सकता है। विधायक सुखविंदर सुक्खू ने विधेयक में कमियां बताते हुए इसे सिलेक्ट कमेटी को भेजने की सिफारिश की और कहा कि इस बारे में बागबानों से चर्चा होनी चाहिए। विधायक राकेश पठानिया ने भी इस पर अपनी सहमति जताई और कहा कि इस विधेयक से बागबानों का उतना हित नहीं दिख रहा है। कमियां हैं, इसलिए इसे सिलेक्ट कमेटी को भेजें। कृषि मंत्री ने विधायकों की शंकाओं को दूर करते हुए कहा कि यह विधेयक बागबानों के हित में है। इससे यूनिफॉर्म मार्केट मिलेगी और बागबान डायरेक्ट ट्रेडिंग कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती करने वाला सबसे पहला राज्य बनने की ओर अग्रसर है। जैविक व रसायनिक खेती को यहां पर बंद किया जा रहा है। बागबानों ने यहां पर 56 हजार सॉयल हैल्थ कॉर्ड बनाए हैं। इस पर मुख्यमंत्री ने विधायकों की सिफारिश पर बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजकर अवलोकन करने व शीतकालीन सत्र में इसे लाने को कहा।


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