गरीबों के लिए अभिशाप है महंगी शिक्षा

By: Sep 9th, 2019 12:08 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

 

80 फीसदी से अधिक छात्र-छात्राएं मध्यम वर्गीय अथवा निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं और इन सब पर जल्दी नौकरी पाने का भारी दबाव रहता है तो वहीं इनके अभिभावकों के समक्ष इनकी महंगी फीस उठाने की चुनौती भी रहती है। सच कहें तो जिनके दो या तीन बच्चे पढ़ाई और उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, उनकी तो कमर ही टूट गई है…

हिमाचल प्रदेश की कुल साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार 82.80 प्रतिशत थी और निश्चित रूप से बीते एक दशक में इसमें बेहतरीन इजाफा हुआ होगा। वास्तविक आंकड़ों की तस्वीर तो बहरहाल 2021 की जनगणना के बाद ही साफ  होगी। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से प्रदेश और यहां के नागरिकों ने शिक्षा के क्षेत्र में भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले एक लंबी छलांग लगाई है। वैश्वीकरण के इस दौर में सभी राष्ट्र शिक्षा को केंद्र में रखकर अपनी युवा पीढ़ी के लिए शिक्षा संबंधी आधुनिक व्यवस्थाओं को जुटाने पर जोर दे रहे हैं। आधुनिक जमाने में युवाओं के लिए तकनीकी शिक्षा, राष्ट्र के विकास में आधुनिक शिक्षा और कौशल विकास का महत्त्व बढ़ा है।

केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने नागरिकों को कौशल युक्त तकनीकी रूप से सक्षम और हुनरमंद बनाने की दिशा में प्रयत्नशील हैं। समय के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली में बदलाव आते रहे हैं। वर्तमान समय सूचना एवं तकनीकी क्रांति का युग है। भारत जैसे देश में 80 फीसदी से अधिक छात्र-छात्राएं मध्यम वर्गीय अथवा निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं और इन सब पर जल्दी नौकरी पाने का भारी दबाव रहता है तो वहीं इनके अभिभावकों के समक्ष इनकी महंगी फीस, खान-पान का खर्चा उठाने की चुनौती भी रहती है। सच कहें तो जिनके दो या तीन बच्चे पढ़ाई और उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उनकी तो कमर ही शिक्षा खर्चों के भारी बोझ के वहन से टेढ़ी होती जा रही है।

आज के दौर में जितना खाना-पीना महंगा नहीं है उससे कई गुना ज्यादा महंगा बच्चों की पढ़ाई का खर्चा है। ऊपर से तुर्रा यह है कि बच्चों और अभिभावकों द्वारा इतना खर्चा करने के बाद भी रोजगार की कोई पुख्ता गारंटी नहीं है। प्राइवेट सेक्टर में जहां कुछ कालेज और विश्वविद्यालयों अथवा बड़े नामी-गिरामी इंजीनियरिंग कालेजों में सीमित संख्या के प्रतिभाशाली बच्चों के लिए मोटी कमाई वाली नौकरियां तो जरूर उपलब्ध हैं लेकिन बहुतायत में बाकी बच्चों के हिस्से में 20-30 हजार रुपए की मासिक सैलरी वाली नौकरी ही आती है। इतनी कम सैलरी में चंडीगढ़, हैदराबाद, बेंगलुरू, नोएडा और चेन्नई जैसे शहरों में अपना खुद का खर्चा चलाना बच्चों के भीतर मानसिक अवसाद और तनाव को बढ़ावा देता है  तो वहीं अभिभावकों द्वारा बच्चों की शादी की चिंता पूरे परिवार का माहौल और संतुलन बिगाड़ कर रख देती है। हिमाचल प्रदेश के भीतर राष्ट्रीय महत्त्व के विभिन्न कोर्सों से संबंधित आईआईटी मंडी, एनआईटी हमीरपुर, एनआईएफटी कांगड़ा, सीएसआईआर पालमपुर और सीआरआई कसौली संस्थान मौजूद हैं तो उच्च शिक्षा एवं इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए 25 प्राइवेट एवं सरकारी विश्वविद्यालय मौजूद हैं। आठ मेडिकल कालेज पांच संस्कृत और 138 सरकारी महाविद्यालयों के अतिरिक्त नर्सिंग, वोकेशनल शिक्षा, बीएड, फार्मेसी, पशुपालन, बागबानी, पालिटेक्निक कालेज, आयुर्वेदिक शिक्षा, डेंटल आदि लगभग सभी विषयों की पढ़ाई से संबंधित 355 से ज्यादा शिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश में अपनी सेवाएं छात्र हित में दे रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में हिमाचली छात्र-छात्राएं कोचिंग और उच्च शिक्षा हेतु चंडीगढ़, पंजाब सहित भारत के दूसरे राज्यों के निजी एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिनकी भारी-भरकम फीस और रहने-खाने पर उनके अभिभावक खर्चा कर रहे हैं। भारत एवं राज्यों में शिक्षा प्राप्ति महंगी होने के कारण गरीब परिवारों के कई प्रतिभाशाली बच्चे अच्छे शिक्षण संस्थानों में  गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह  रहे हैं।

एक बात और जो देखने में आ रही है कि जहां विभिन्न प्राइवेट और सरकारी शिक्षण संस्थानों की ट्यूशन फीस में भारी अंतर है वहीं प्रत्येक कालेज-यूनिवर्सिटी के होस्टल की फीस की दरें भी अलग हैं तो मेस की फीस में भी अंतर है। किसी-किसी सरकारी शिक्षण संस्थान के होस्टल की फीस 10-12 हजार सालाना है तो किसी की हास्टल फीस सालाना 65 हजार है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि एक छोटे से कमरे में 3 विद्यार्थियों को ठहराकर ही ऐसे संस्थान दो लाख रुपए वार्षिक कमा ले रहे हैं, ऊपर से खाने का बिल अलग से है। महंगी ट्यूशन फीस और होस्टल फीस में असमानता, ऊपर से मामूली सी सुविधाएं और अव्यवस्थित खाने की व्यवस्था, कहीं न कहीं छात्रों और अभिभावकों को कचोटती है लेकिन अपने बच्चों की शिक्षा की बेहतरी के सोच के चलते अभिभावक और छात्र आवाज भी नहीं उठा पाते हैं।

हिमाचल प्रदेश सरकार के अलावा अधिकारियों और मुख्यमंत्री को हिमाचली छात्रों के हित में भारत के दूसरे राज्य में पढ़ रहे हिमाचली छात्रों की समस्याओं के बारे में वहां की सरकारों और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ पत्राचार करने की तत्काल आवश्यकता है और उनके समक्ष ट्यूशन फीस और होस्टल फीस में भारी असमानताएं, सुविधाओं में कमी, पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक भोजन की व्यवस्था को सुधारने का मामला उठाने की भी जरूरत है तथा सारे भारत में एकसमान सस्ती ट्यूशन फीस और छात्रावास फीस की व्यवस्था हो, इसकी भी पुरजोर मांग की जानी चाहिए ताकि अत्यधिक महंगे शिक्षा खर्चे का बोझ उठा रहे मां-बाप को कुछ राहत मिल सके।


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