चंबा में गूंजा बंटवारे का दर्द

By: Sep 2nd, 2019 12:01 am

हजारी प्रसाद द्विवेदी की जयंती पर कार्यक्रम में कलमवरों ने बांधा समां

चंबा -कला सृजन पाठशाला के सौजन्य से हजारी प्रसाद द्विवेदी जयंती के उपलक्ष्य पर सांस्कृतिक विरासत विषयक सत्र- 13 द्वितीय वर्ष पर रचना और लेख पाठ का आयोजन किया गया। इस मौके पर जिला लोक संपर्क अधिकारी अनिल  गोमा ने मुख्यातिथि के तौर पर उपस्थिति दर्ज करवाई। विषय प्रवर्तन के तौर पर जिला भाषा अधिकारी तुकेश कुमार शर्मा ने शिरकत की। कला सृजन पाठशाला के संरक्षक बालकृष्ण पराशर ने दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का शुभारंभ किया।  इस दौरान मंच संचालन कवि भूपिंद्र जसरोटिया ने किया। कला मंच के अध्यक्ष शरत शर्मा ने बैल और बोटन की चीख कविताएं सुनाई, जो प्राकृतिक और मानवीय शोषण और श्रम को रेखांकित करती हैं। संरक्षक बालकृष्ण पराशर ने पुरानी परंपराओं को रेखांकित करते हुए उनके महत्व को उजागर किया और कहा कि इनसे सामाजिक जीवन सरलता और सहजता के साथ परिचालित व नियंत्रित होता है। वहीं, मनोज पांडे ने मेरा बचपन मुझे लौटा दो कविता का पाठ करके बचपन की निर्मल शरारतों से सभी का ध्यान आकर्षित किया। संजय ने अधीर और नीरस कविता पढ़ कर इशारा किया कि हम अपने जीवन में कितने बेसब्र हैं। शिल्पा ने हजारी प्रसाद द्विवेदी के जीवन परिचय पर विस्तृत लेख का पाठ कर विभिन्न पहलुओं को लेकर अपनी बात रखी। हेमराज ने मन का दरवाजा कविता पढ़ी।  विकास ने उत्सव एक सांस्कृतिक विरासत पर निबंध पढ़ा, जिसमें त्योहारों के सामाजिक महत्व को रेखांकित किया गया। वहीं, राजेंद्र ने हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचनात्मक एवं साहित्यिक दृष्टि को उजागर किया। अजय यादव ने स्नो कविता का पाठ किया। उषा ने मां और बंटवारा कविता पढ़ी। भारत के विभाजन की त्रासदी को उषा ने क्रांतिकारी अंदाज में पेश किया। भूपिंद्र जसरोटिया ने कवि की दहशत कविता का पाठ किया। परवेश ने हजारी प्रसाद द्विवेदी के रचना कर्म पर लेख पढ़कर उनकी कृतियों की महत्ता को स्पष्ट करते हुए रेखांकित किया। कविता व खुशबू शांडिल ने उत्सव एक सांस्कृतिक विरासत लेख पेश कर अलग-अलग मौसमों पर आधारित त्योहारों को रेखांकित किया है।  परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए धर्मवीर शर्मा ने साहित्यिक विकास को लेकर कहा कि राजनीतिक इच्छा शक्ति की बड़ी जरूरत है। राजकीय महाविद्यालय चंबा के सहायक प्रोफेसर डा. उज्ज्वल कटोच ने समाज में गिरते मूल्यों को उठाने की बात पर बल दिया। सहायक प्रोफेसर डा. संतोष कुमार ने कहा कि कला सृजन पाठशाला के आयोजन को समय-समय पर स्कूलों और महाविद्यालयों में भी करवाया जाएगा, जिससे नई प्रतिभाएं सामने आएंगी। जिला लोक संपर्क अधिकारी अनिल गोमा ने कहा कि सरकारी आयोजनों के साथ-साथ कला सृजन पाठशाला जैसे मंचों को भी साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहने की जरूरत है।


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