छोटे प्रदेश से बड़े राजनेता शांता कुमार

By: Sep 12th, 2019 12:06 am

डा. सुशील कुमार फुल्ल

लेखक, साहित्यकार हैं

12 सितंबर,1934 को गढ़ के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्म ले कर अपने संघर्षों के बल पर जूझते हुए दो बार हिमाचल का मुख्यमंत्री और एक बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में काबीना मंत्री बनने का श्रेय अर्जित किया तथा नई-नई योजनाओं को जन्म दिया। काम भी अपना, गांव भी अपना के लिए 15ः85 लाभ की योजना, स्वजलधारा, काम नहीं तो दाम नहीं, वन लगाओ रोजी कमाओ आदि अनेक मौलिक योजनाओं का अवतरण किया। हिमाचल में पेय जल संकट से मुक्ति दिलाने के लिए बोरिंग करवा कर जगह-जगह नल लगवा दिए और फिर जल वाला मुख्यमंत्री कहलवाया…

उन्नीस मास के नाहन जेल में कारावास के बाद जब बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ संन्यासी सा दिखाई देने वाला शांता कुमार पालमपुर के बाजार में जननायक के रूप में अवतरित हुआ तो जन सैलाब ने उसे अपनी आंखों पर बिठाया और पालमपुर उसकी जय-जय कार से गूंज उठा। पुरानी पीढ़ी के राजनेताओं की यह विशेषता रही है कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए वे कभी भी अपनी पार्टी को नहीं छोड़ते। कभी पार्टी में अपने अस्तित्व का संकट भी आया तो भी शांता कुमार ने पार्टी नहीं छोड़ी। इतना अवश्य है कि ऐसे समय में वे मौनधारण करते रहे हैं और जब अवसर आता है तो जम कर बोलते हैं। अपनी ही पार्टी की त्रुटियों को भी उजागर करने में वे कभी संकोच नहीं करते। गुजरात के संदर्भ में जब वहां के मुख्यमंत्री की आलोचना हुई तो भी शांता कुमार ने तपाक से कह दिया था ‘ मैं होता तो त्याग पत्र दे देता, अपनी वाकपटुता एवं स्पष्टवादिता के कारण नेता जी को सम्मान भी मिला है और कभी-कभी लोगों ने, खास कर शुरू के दिनों में उन्हें हठी एवं अडि़यल कहने में भी संकोच नहीं किया है। जो भी हो अपनी सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, लग्न एवं मौलिक दृष्टि के कारण अनेक नई परिकल्पनाओं को कार्यान्वित कर के राष्टीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। 12 सितंबर,1934 को गढ़ के एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्म लेकर अपने संघर्षों के बल पर जूझते हुए दो बार हिमाचल का मुख्यमंत्री और एक बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में काबीना मंत्री बनने का श्रेय अर्जित किया तथा नई-नई योजनाओं को जन्म दिया। काम भी अपना, गांव भी अपना के लिए 15ः85 लाभ की योजना, स्वजलधारा, काम नही तो दाम नहीं, वन लगाओ रोजी कमाओ आदि अनेक मौलिक योजनाओं का अवतरण किया।

हिमाचल में पेय जल संकट से मुक्ति दिलाने के लिए बोरिंग करवा कर जगह-जगह नल लगवा दिए और फिर जल वाला मुख्यमंत्री कहलवाया। जिन समस्याओं से शांता कुमार परिचित थे, उन की ओर सब से पहले ध्यान दिया गया। हिमाचल के जल का दोहन दूसरे प्रदेशों के लिए होता था। उन्होंने सर्वप्रथम मोरारजी देसाई से रायल्टी के बारे में बात उठाई और अब तो सब स्वीकार करते हैं कि हिमाचल को रायल्टी मिलनी ही चाहिए। फिर हिमाचल में सीमेंट के कारखाने लगवाए ताकि हिमाचल के संसाधनों का प्रदेश वासियों को लाभ मिले। पहली बार मुख्यमंत्री बने तो पालमपुर में सन 1978 में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की जिस का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी ने किया और आज इसी की वजह से जहां हिमाचल में कृषि शिक्षा के द्वार खुले, वहीं हजारों लोगों को रोजगार भी मिला । पहाड़ी खेती में भी क्रांति का संचार हुआ। शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए भी छोटे शहर का बड़ा राजनेता बराबर सक्रिय रहा है। सो पालमपुर में वीएमआरटी टेस्ट बनाया और इसके लिए जी तोड़ मेहनत की। झोली फैला कर पैसा इकट्ठा किया और अब यह क्षेत्र में एमर्जेंसी सुविधा देने में सक्षम है, लेकिन इसमें और सुपरस्पेशियलिटी सुविधाएं जुटाने के लिए शांता कुमार लगे हुए हैं। इसी परिसर में नेता जी ने कायाकल्प आयुर्विज्ञान संस्थान की भी स्थापना की है, जिसमें आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। कायाकल्प अपने में एक अद्भुत कल्पना है। यह टिकाऊ मेडिकल संस्थान है, जो अपनी आमदन से चलता है । इसमें रहने की भव्य व्यवस्था है। हर प्रकार का काया प्रेमी , यहां पेशेंट्स को रोगी नहीं कहा जाता , अपनी जेब के अनुसार निलय, बसेरा में रह सकता है। यहां योग की व्यवस्था भी है और खाना डाक्टर की सलाह से ही मिलता है। अपनी गोशाला है। नवग्रह वाटिका है। अपनी-अपनी पूजा पद्धति के अनुसार व्यक्ति वहां जल चढ़ा सकते हैं।

एक ध्यान केंद्र भी है जहां सामूहिक ढंग से या एकल रूप में ध्यान लगाया जा सकता है। कायाकल्प के निदेशक डा. आशुतोष गुलेरी बड़े उत्साह से शांता कुमार के निदेशन में स्वाथ्य सेवाओं को चार चांद लगाने में लगे हुए हैं। शांता कुमार शहीदों के प्रति भी बहुत ही संवेदनशील हैं। हिमाचल प्रदेश वन विभाग के तत्त्वावधान में न्यूगल में बना सौरभ वन विहार वस्तुतः शांता कुमार के प्रयत्नों का ही फल है। कुशल राजनेता होने के साथ-साथ शांता कुमार  लेखक भी हिमालय पर लाल छाया उन की बहुचर्चित वैचारिक पुस्तक है परंतु उनका कथा साहित्य भी बड़ा प्रौढ़ है। उनके उपन्यासों में जनता का दुख दर्द भावुकता के साथ चित्रित हुआ है। उनकी पच्चीस से अधिक किताबें छप चुकी हैं जो अपनी विषय वस्तु एवं शैली के कारण खूब चर्चित हुई हैं।

‘हिमालय पर लाल छाया’ उनकी सन 1966 में छपी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जिसका पुनर्मुद्रण गत वर्ष हुआ है। नाहन जेल में उन्होंने पांच उपन्यास लिखे जिनमें मनके मीत, कैदी आदि प्रमुख हैं। वैसे लाजो, मृगतृष्णा आदि उपन्यास उनके जीवन दर्शन को रेखांकित करते हैं। मृगतृष्णा में राजनेताओं का काला चरित्र बड़ी बेरहमी से चित्रित किया गया है। संतोष शैलजा के साथ मिल कर इन्होंने कविताएं एवं कहानियां भी लिखी हैं। 12 सितंबर को उनका 86वां जन्म दिन है। उन्हों ने कहा है कि वह अब सक्रिय राजनीति छोड़ देंगे, लेकिन यह हो नहीं सकेगा क्योंकि जनता ऐसा होने नहीं देगी। वैसे भी राजनीति उनके जीवन का पर्याय बन चुकी है। यह ठीक है कि वह अब अपनी आत्म कथा या संस्मरणों को लिखने के लिए समय निकालना चाहते हैं । अच्छी बात है परंतु जो समय जनता का है वह तो जनता को देना ही पड़ेगा। नेता जी कम से कम सौ वर्ष जिएं और जनता की सेवा करें।


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