जीवन में दुखों का कारण

By: Sep 7th, 2019 12:15 am

श्रीराम शर्मा

कई बार हमें जीवन में इतनी तकलीफ  और कष्टों का सामना करना पड़ता है कि हम समझ नहीं पाते हैं कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है और इन सबसे कैसे निपटा जाए। समस्त दुःखों का कारण है, अज्ञान, अशक्ति व अभाव। जो व्यक्ति इन तीनों कारणों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह व्यक्ति उतना ही सुखी बन सकेगा। अज्ञान के कारण मनुष्य का दृष्टिकोण दूषित हो जाता है। वह तत्त्वज्ञान से अपरिचित होने के कारण उल्टा-सीधा सोचता और करता है। तदुनुरूप उलझनों में फंसता जाता है और हमेशा दुःखी बनता है। स्वार्थ, लोभ, अहंकार और क्रोध की भावनाएं मनुष्य को कर्त्तव्यच्युत करती हैं और वह दूरदर्शिता को छोड़कर क्षणिक लाभ वाली बातें ही सोचता है तथा वैसे ही करता है। फलस्वरूप उसके विचार और कार्य पापमय होने लगते हैं, जिन्हें वह अपनी रूह में महसूस नहीं कर पाता और लगातार करता ही जाता है। पापों का निश्चित परिणाम दुःख ही है और इससे कोई बच भी नहीं सकता। अज्ञान के कारण वह अपने और दूसरी सांसारिक गतिविधियों के मूल हेतुओं को नहीं समझ पाता और असंभव आशाएं रखता है। इस उल्टे दृष्टिकोण के कारण साधारण सी बातें उसे बड़ी दुःखमय दिखाई देती हैं, जिसके कारण वह रोता-चिल्लाता रहता है। अपने करीबियों की मृत्यु, साथियों की भिन्न रुचि, परिस्थितियों का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। पर अज्ञानी सोचता है कि मैं जो चाहता हूं, वही होता रहे और इसी भाव में वह गोते लगाता रहता है। अज्ञान के कारण भूलें भी अनेक प्रकार की होती हैं। समीपस्थ सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, यह भी दुःख का हेतु है। अशक्ति का अर्थ है निर्बलता। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक, आत्मिक निर्बलता के कारण मनुष्य अपने स्वाभाविक अधिकारों का भार अपने कंधों पर उठाने में समर्थ नहीं होता। फलस्वरूप उसे वंचित रहना पड़ता है। शरीर को बीमारी ने घेर रखा हो तो स्वादिष्ट भोजन, मधुर संगीत आदि निरर्थक हैं। धन-दौलत का कोई कहने लायक सुख उसे नहीं मिल सकता। बौद्धिक निर्बलता हो तो साहित्य, मनन, चिंतन का रस प्राप्त नहीं हो सकता   आत्मिक निर्बलता हो तो सत्संग, प्रेम, भक्ति आदि का आनंद दुर्लभ है। सर्दी जो बलवानों को बल बुद्धि प्रदान करती है, रसिकों को रस देती है, वह कमजोरों को निमोनिया, गठिया आदि का कारण बन जाती है। जो तत्त्व निर्बलों के लिए प्राणघातक हैं, वे ही बलवानों के लिए सहायक सिद्ध होते हैं। कहना न होगा कि कमजोर को सताने और मिटाने के लिए अनेकों तथ्य प्रकट हो जाते हैं।  निर्दोष, भले और सीधे तत्त्व भी उसके प्रतिकूल पड़ते हैं। अज्ञानता के कारण हम अपने दुःखों से कभी उबर नहीं सकते। अपने अंदर से लोभ, अहंकार जैसे  भाव मिटाकर ही हम सच्चे साधक की तरह बन सकते हैं।


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