ड्ढकुंडलिनी साधनाएं : कुंडलिनी क्या है

By: Sep 7th, 2019 12:15 am
  1. कुंडलिनी साधना एक कठिन साधना है। योगीगण इसकी सिद्धि में बीस-तीस वर्ष व्यतीत कर देते हैं। इसलिए इसकी साधना का प्रयत्न उन्हीं लोगों को करना चाहिए, जो धैर्य के साथ अभ्यास कर सकें। 2. ऊर्जा की धारा को सहस्रार चक्र में पहुंचाने में समय लगता है, लेकिन ऐसा नहीं कि इस साधना से पूर्व में लाभ नहीं होता। तीन-चार महीने के अभ्यास के बाद ही इसका लाभ नजर आने लगता है। जैसे-जैसे यह धारा ऊपर चढ़ती जाती है, साधक की शक्ति, चेतना, सोच, अनुभूति में परिवर्तन होने लगता है…

-गतांक से आगे…

जब आप बैठें, तो आपकी कमर, रीढ़, गर्दन और सिर एकदम सीधे होने चाहिएं। अब आप आंखों से नाक की नोक को देखें। आंखें बंद करें और अपना पूर्ण ध्यान रीढ़ की निचली नोक पर लगा दें। जब ध्यान पूर्ण रूपेण उस पर केंद्रित हो जाए, तो ध्यान की पूरी शक्ति प्राण-चेतना को वहां से ऊपर की ओर खींचने में लगा दें। वह ऊपर खिंचने लगेगा। प्रतिदिन 15 मिनट अभ्यास करें।

कुंडलिनी साधना

  1. कुंडलिनी साधना एक कठिन साधना है। योगीगण इसकी सिद्धि में बीस-तीस वर्ष व्यतीत कर देते हैं। इसलिए इसकी साधना का प्रयत्न उन्हीं लोगों को करना चाहिए, जो धैर्य के साथ अभ्यास कर सकें।
  2. ऊर्जा की धारा को सहस्रार चक्र में पहुंचाने में समय लगता है, लेकिन ऐसा नहीं कि इस साधना से पूर्व में लाभ नहीं होता।

तीन-चार महीने के अभ्यास के बाद ही इसका लाभ नजर आने लगता है। जैसे-जैसे यह धारा ऊपर चढ़ती जाती है, साधक की शक्ति, चेतना, सोच, अनुभूति में परिवर्तन होने लगता है।

शरीर की शक्ति और कांति विकसित होने लगती है। चार-पांच वर्ष के अभ्यास के बाद उसे अनेक ऐसी विलक्षण अनुभूतियां होने लगती हैं, जो सामान्य लोगों में नहीं होतीं। उसमें दिव्य गुणों का उद्भव होने लगता है।

  1. छल, प्रपंच, कामना, तृष्णा, लोभ, अहंकार आदि के भाव साधना के समय (कम से कम) सुप्त होने चाहिए। अन्यथा कोई लाभ नहीं होगा। ये भावनाएं, ध्यान को एकाग्र होने ही नहीं देतीं।
  2. इसकी साधना स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं।
  3. आज के युग में, जबकि चिंता, तनाव आदि बढ़ गया है, प्रत्येक 15 वर्ष के ऊपर के लोगों को इसके लिए आधे घंटे का समय निकालना चाहिए।
  4. कुंडलिनी-साधना से स्वास्थ्य एवं सौंदर्य में अप्रत्याशित लाभ होता है।

शरीर एवं चेहरे पर कृत्रिम प्रसाधनों का लेप चढ़ाने की आवश्यकता नहीं रहती।

मंत्र : मन ही मन ‘ओउम’ के साथ अपने इष्टदेव का नाम लेते हुए ‘नमः’ करें। विभिन्न धर्मों के साधक अपने-अपने इष्ट का नाम अपनी प्रचलित प्रार्थना-प्रकार के अनुरूप लें। लेकिन मंत्र को मन ही मन जपें। ध्यान संपूर्ण रूप से ऊर्जा खींचने में लगा हो। 


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