ड्ढकुंडलिनी साधनाएं : कुंडलिनी क्या है

By: Sep 21st, 2019 12:15 am
  1. गरिमा : इसका अर्थ है गौरवशाली व्यक्तित्व। इस सिद्धि को प्राप्त करके मनुष्य इतना भारी हो जाता है, अर्थात प्रभावशाली हो जाता है कि कोई उसके पद या स्थान से उसे तिलमात्र हटा नहीं सकता। इसी सिद्धि के द्वारा वीर अंगद ने रावण की सभा में चुनौती देते हुए कहा था कि मेरा पांव कोई हटा नहीं सकता। गरिमा से व्यक्तित्व तेजस्वी बनता है और दूसरे लोग आज्ञा मानने और पीछे चलने में शान समझते हैं। 5. ईशित्व : इसका अर्थ है कि इतना मोहक रूप धारण कर लेना कि जिसे देखते ही मनुष्य मोहित हो जाएं। राम ने जब जनकपुरी में प्रवेश किया था, तब ऐसी मोहिनी डाल दी कि जिस रूप को देखते ही सारा नगर मोहित हो गया था…

-गतांक से आगे…

खाए हुए आहार से मेद अधिक बनता है, अतएव धातु क्षीण रहते हैं। अतएव, शारीरिक शक्ति की पूर्ति की उसे आवश्यकता प्रतीत होती है और अधिक भूख और अधिक प्यास लगती है। अति स्थूल मनुष्य को निद्रा भी अधिक आती है। उसकी आवा भारी हो जाती है। उसके मुख से निकले हुए शब्द की प्रबलता के कारण और भी दोष बढ़ते हैं। वायु-विकार बढ़ जाते हैं। ये बढ़े हुए दोष उसके जीवन-क्रम का क्रमशः ह्रास करते हैं। मेद वृद्धि के कारण वायु कुपित होता है और ऐसे रोगों को उत्पन्न करता है, जिनका दूर होना कठिन होता है। अति स्थूल लोगों को प्रमेह और मधुमेह अधिक सताता रहता है। फोड़े-फुंसी और भगंदर का विकास ऐसे लोगों को अधिक होता है। कैंसर जैसे विकार का खतरा होता है। शरीर थुलथुला, ढीला और बेडौल होता है। ऐसे में उत्साह की कमी होती है और उन्हें जीवन भार-रूप होने लगता है।’ इस तरह पता चलता है कि लघिमा का कितना अधिक महत्त्व है।

  1. गरिमा : इसका अर्थ है गौरवशाली व्यक्तित्व। इस सिद्धि को प्राप्त करके मनुष्य इतना भारी हो जाता है, अर्थात प्रभावशाली हो जाता है कि कोई उसके पद या स्थान से उसे तिलमात्र हटा नहीं सकता। इसी सिद्धि के द्वारा वीर अंगद ने रावण की सभा में चुनौती देते हुए कहा था कि मेरा पांव कोई हटा नहीं सकता। गरिमा से व्यक्तित्व तेजस्वी बनता है और दूसरे लोग आज्ञा मानने और पीछे चलने में शान समझते हैं।
  2. ईशित्व : इसका अर्थ है कि इतना मोहक रूप धारण कर लेना कि जिसे देखते ही मनुष्य मोहित हो जाएं। राम ने जब जनकपुरी में प्रवेश किया था, तब ऐसी मोहिनी डाल दी कि जिस रूप को देखते ही सारा नगर मोहित हो गया था और सीता ने मन में संकल्प लिया था कि इन्हीं के गले में वरमाला डालूंगी।

 जिन जिन रूप में मोहिनी डारी।

कीन्हे सुबस सकल नर-नारी।।

जिसे ईशित्व प्राप्त हो जाता है, उसे देखते-देखते लोगों के नयन नहीं थकते। उनसे अलग होने को जी नहीं चाहता। बालक-बालिका, युवक-युवतियां, बूढ़े नर-नारी सब पीछे-पीछे फिरने लगते हैं। भावार्थ यह है कि जिस सिद्धि द्वारा मनुष्य संसार को मोहित कर ले, उसे ईशित्व कहते हैं। ईशित्व का एक रूप और भी है कि हाथ नीचे (मांगने के लिए) न हों, बल्कि ऊंचे (दान के लिए) उठें।                                     


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App