नमक का रोटी से रिश्ता

By: Sep 9th, 2019 12:03 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

भूख का अपना कॉकटेल है, स्वाद का अपना शृंगार है। नमक की अपनी भाषा है, तो रोटी का अपना चक्र है। खैर अब रोटी से कहीं आगे निकल गया नमक और इसलिए अपनी रोटी के लिए किसी न किसी का नमक खाना जरूरी है। नमक खाने वालों की तादाद यूं तो खूब बढ़ गई, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के नमक को हजम करना-हलाल करने से भी कठिन है। मिर्जापुर के एक ग्रामीण स्कूल में बच्चों में बंटते मिड-डे-मिल की नमक हलाली में अगर मीडिया का खलल रहेगा, तो प्रशासन और शासन के लिए यह जरूरी है कि उसे अपने नमक की प्रयोगशाला में ले जाएं। हुआ भी यही और जिस पत्रकार को मिड-डे मील के तौर पर सकूली बच्चों का रोटी के साथ नमक चाटना पसंद नहीं आया, उसे नमक यात्रा पर ले जाने की जरूरत पैदा हो गई, लिहाजा हिरासत का नमक चाट रहे हैं। पवन जसवाल नामक पत्रकार को उत्तर-प्रदेश सरकार नमक का रोटी से रिश्ता समझा रही है। वैसे मीडिया अब सरकार का नमक चाटना बाखूबी जान गया है, बल्कि यह साबित भी कर रहा है कि उसकी रगों में भी सत्ता की वफादारी और कृतज्ञता का नमक बहता है। हम तो यह कहेंगे कि देश को चलाने के लिए हर जगह ऐसी नमक चटाई चाहिए। बाकायदा सरकारी नमक चटाने की राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा परीक्षा और परीक्षण हो, ताकि नमक खाए देशभक्त ही देश में मुख्य पदों पर रहें। भारत के नागरिकों को जीवन पूरी तरह सुरक्षित जीने के लिए, अपने रक्त में सरकारी नमक की जांच कर लेनी चाहिए। इसके फायदे घर से बाजार और हर राष्ट्रीय त्योहार तक हैं। न जाने कब आपके भीतर के सरकारी नमक को अपनी प्रतिशोधक क्षमता से देश के दुश्मनों का मुकाबला करना पड़ जाए। यह मुकाबला हर उस मोर्च पर होगा, जहां सत्ता को सत्य का सामना करना है या जहां किसी के भी स्वतंत्र या विरोधी विचारों को समर्थक बनाना है, वहां नमक के प्रयोग व प्रयोगशाला जरूरी है। इसलिए अगर उत्तर प्रदेश के स्कूल में मिड-डे मील में नमक का दामन पकड़कर रोटी मिल रही है , तो यह कतार देशभक्तों की थी। आज के बच्चे अगर रोटी का महत्त्व नमक चाट कर जान जाएं तो कल जिंदा रहने का जज्बा तैयार होगा। नमक के कारण हमारे आजादी के आंदोलन को अगर गांधी के समय में बल मिला , तो अब उत्तर-प्रदेश सरकार की मंशा पर शक क्यों। शक तो उस मीडिया या इसके उन पत्रकारों पर करना होगा जो सरकार के नमक पर शक करते हैं। हमें मालूम है कि जो पत्रकार भारत में सरकार का नमक नहीं खाता , उसे विदेशी पुरस्कार क्यों मिलता है, जबकि हकीकत में देश की सरकार का नमक खा लें तो हर पत्रकार में राष्ट्रवाद पनपता है। किसी ने ठीक ही कहा कि रवीश कुमार द्वारा  नमक न खाने की वजह से ही सत्ता के प्रवक्ता उसके पास नहीं जाते। रवीश कुमार की पत्रकारिता में इन्फेक्शन भी इसी वजह से है क्योंकि वह सरकार का नमक नहीं चाटते। हो सकता है कल इसका भी कोई समाधान सरकार निकाले ले, जो सीधे नहीं चाटते, उन्हें ‘नमकीन’ इंजेक्शन लगा दिया जाए। हमें रवीश कुमार से क्या लेनाः- हमें तो उससे आगे निकलने के लिए सरकार का नमक चाहिए ताकि ऐसे विचारों की इन्फेक्शन आगे न बढ़े।


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