बागबानों को अवैध आढ़तियों से बचाओ

By: Sep 30th, 2019 12:07 am

वीरेंद्र सिंह वर्मा

 लेखक, शिमला  से हैं

 

प्रशासन को चाहिए कि इन अस्थायी आढ़तियों के लाइसेंस रिन्यू करते समय इनसे पार्किंग की व्यवस्था का ब्यौरा लिया जाना चाहिए ताकि सेब सीजन के दौरान इस वजह से कम से कम अन्य हजारों लोगों को यातायात अव्यवस्था न हो। साथ ही बाहर से आने वाली गाडि़यों के स्टाफ  और बागबानों के चलते इन जगहों पर गंदगी न फैले, इसलिए आवश्यक रूप से प्रसाधन की व्यवस्था भी हो, इसके अतिरिक्त सेब बहुल क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है…

सेब सीजन के दौरान एनएच पर जगह-जगह कुकुरमुत्तों की भांति आढ़ती अस्थायी तौर पर डेरा डालते हैं। इनमें से अनेक आढ़ती अपंजीकृत होते हैं। बागबानों को अच्छे दाम का झांसा देकर ये लोग रफू चक्कर हो जाते हैं। बागबान भी थोड़े से लालच में आकर ठगी का शिकार बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त इन अस्थायी आढ़तियों का डेरा एनएच पर स्थित निर्माणाधीन भवनों में होता है। इन भवनों का एक या दो लेनटिल यह आढ़ती तीन से चार महीनों के लिए किराए पर ले लेते हैं। यहीं पर बागबानों से सेब खरीदकर लदानियों के ट्रालों और ट्रकों में लोड किया जाता है। पार्किंग की व्यवस्था न होने के चलते आए दिन इसी  वजह से नरकंडा से लेकर फागू तक ट्रैफिक जाम लगते हैं।

प्रशासन को चाहिए कि इन अस्थायी आढ़तियों के लाइसेंस रिन्यू करते समय इनसे पार्किंग की व्यवस्था का ब्यौरा लिया जाना चाहिए ताकि सेब सीजन के दौरान इस वजह से कम से कम अन्य हजारों लोगों को यातायात अव्यवस्था न हो, साथ ही बाहर से आने वाली गाडि़यों के स्टाफ  और बागबानों के चलते इन जगहों पर गंदगी न फैले, इसलिए आवश्यक रूप से प्रसाधन की व्यवस्था भी हो, इसके अतिरिक्त सेब बहुल क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। अधपक्की, कच्ची तथा पीडब्ल्यूडी द्वारा अस्वीकृत सड़कों का प्रतिशत भी काफी है। सड़कों की दुर्दशा के चलते ट्रांसपोर्टर्स ढुलाई के अधिक दाम मांगते हैं। ऊपरी शिमला का 90 प्रतिशत सेब लोग ढली से होते हुए मंडी पहुंचाते हैं। सीजन के दौरान इस एनएच 5 पर यातायात बहुत अधिक हो जाने से यातायात अव्यवस्था और जाम लगना आम बात है।

बीते आठ अगस्त को ढली से कुफरी तक 10 किलोमीटर लंबा जाम लग चुका है जिसमें यात्रियों सहित सेब से लदी गाडि़यां 12 घंटों तक फंसी रही। सेब सीजन के दौरान ट्रैफिक में अप्रत्याशित वृद्धि और यातायात अव्यवस्था के चलते राहगीरों और बागवानों द्वारा झेली जा रही परेशानियों को ध्यान में रखते हुए भेखलटी-माशोबरा बाबा भल्कू सड़क और छैला राजगढ़ सड़क को डबल लेन सड़कों में स्तरोनत करने की अत्यंत आवश्यकता है। बाबा भल्कू सड़क को तो एक दशक पहले बागबानी सड़क का दर्जा भी दिया जा चुका है, परंतु किन राजनीतिक विवशताओं के कारण हमारे नुमाइंदे ऐसा करने की इच्छाशक्ति नहीं रखते और इस संदर्भ में सामूहिक प्रयास नहीं करते। बदलते अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दौर में बाहरी देशों से आयात होने वाले सेब पर आयात शुल्क को कम करना यदि सरकार के लिए संभव नहीं है तो कम से कम देश के बागबानों को तो इस स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए। बागबानों को सेब उत्पादन के नए प्रयोगों, तकनीक और बागवानी से परिचित करवाया जाए, उच्च गुणवत्ता युक्त, वायरस मुक्त और नवीनतम वैरायटी के सीडलिंग और रूट स्टाक पौधे उपलब्ध करवाए जाएं और सघन बागबानी की तरफ सेब उत्पादन को मोड़ा जाना चाहिए। नए क्षेत्रों को बागबानी के अंतर्गत लाया जाए परंतु प्रदेश की वर्तमान बागवानी को उसके हाल पर ही तो न छोड़ा जाए। उत्पादन के पश्चात बिक्री तक की विभिन्न प्रक्रियाओं से संबंधित कानूनों का सख्ती से पालन करवाना सरकार को सुनिश्चित करवाना चाहिए। वर्तमान में इन प्रक्रियाओं में सरकार का हस्तक्षेप, पर्यवेक्षण और भागीदारी बहुत कम है और बागबान ही व्यापार प्रधान सिस्टम का भुक्तभोगी है, साथ ही अपनी समस्याओं और चुनौतियों को सरकार तक पहुंचाने के लिए बागबानों को सामूहिक रूप से भी प्रयासरत रहना होगा।

एक रोचक तथ्य यह है कि पहले से स्थापित सिस्टम को ही यदि दुरुस्त किया जाए जिसका व्यापारी और आढ़ती दुरुपयोग करते हैं, सख्ती से नियमों का कानून का पालन किया  जाए, तो बागबान का जितना आय रिसाव रूकेगा उतना उसकी दोगुनी आय का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है जो कि भारत सरकार की भी मंशा है। बागवानों द्वारा अलग-अलग स्तर पर झेली जा रही समस्याओं और चुनौतियों से स्पष्ट है कि सेब उत्पादन से लेकर उनकी फसल की उचित कीमत मिलने तक भिन्न-भिन्न प्रकार की अनिश्चितताएं हैं और सिस्टम्स हैं, जिनका एक नेटवर्क  या तंत्र बनता है। फसल का मूल्य नेटवर्क की सफलता पर निर्भर करता है और नेटवर्क की सफलता हर सिस्टम की सफलता पर निर्भर करता है। एक  भी सिस्टम का फेलियर पूरे नेटवर्क को फेल कर देता है। इतना नाजुक यह तंत्र है और बागबान को उपहास  स्वरूप कहा जाता है कि तुम्हारे पैसे तो पेड़ पर उगते हैं। इतने नाजुक नेटवर्क के सभी सिस्टम्स पर बागबान का नियंत्रण नहीं होता है। कुछ चीजें उसके बस में हैं और अधिकांश उसके बस से बाहर हैं। अनिश्चितताओं को सहज ही स्वीकार करने का जोखिम यदि कोई उठा सके तो उसके लिए कहा जा सकता है कि पैसे पेड़ पर ही उगते हैं।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।            -संपादक


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