मेरी मजबूरी है दोस्त

By: Sep 25th, 2019 12:05 am

अशोक गौतम

साहित्यकार

जब उनका पूरे स्वाभिमान से फर्राटेदार झूठ सुनते-सुनते मुझे उल्टियां आने लगीं तो एक दिन मैंने उनसे कह ही दिया, मित्र! खुदा के लिए अब मुझसे झूठ बोलना बंद कर दो। अब तुम्हारा झूठ, झूठ के सारे रिकार्ड तोड़ने लगा है। सच पूछूं तो दिल से कहना कि तुम्हें अपने इस झूठ पर तनिक भी शर्म महसूस नहीं होती क्या? मेरे मुंह से ये सुन वे पानी-पानी होने के बदले मेरे आगे दोनों हाथ जोड़े बोले, माफ करना दोस्त! आज तुमने मेरी दुखती रग पर टांग रख ही दी। डियर! मैं भी पहले सच बोला करता था, झूठ सुना करता था। पर बीच में बात ही कुछ ऐसी घटी कि…. कह वे सिसकने लगे तो मैंने उन्हें उनकी नाक साफ  करने के लिए उनकी जेब से उनका रूमाल निकाल उनकी ओर धर दिया, ऐसी क्या विवशता है तुम्हारी सीना चौड़ा कर झूठ बोलने की दोस्त कि… औरों को तो औरों को, अपने तक को झूठ अपने झूठ बोलने पर उल्टियां आने लगें। मित्र! मैं बरसों पहले डाक्टर के पास गया था। तो उसके पास तो लोग मरने के बाद भी जाते रहते हैं। यह कौन सी नई बात है, नहीं! मेरा केस जरा और सा है। धीरे-धीरे सच बोलने पर मुझे डिप्रेशन होने लगा है।…. फाइनली जब मुझे लगा कि मैं सच बोलने के रोग से पल-पल ग्रसित होता जा रहा हूं तो… मुझे बचना था शायद तभी, एकदिन मैं हमारे मोहल्ले में फ्री चैकअप कैंप लगे डाक्टर से मिला तो उसने बहुत देर तक अपना दिमाग खुजलाने के बाद मेरे दिमाग में झांकते पूछा। क्या बीमारी है तुम्हें? सर! समाज में कटा-कटा सा रहने लगा हूं। चौबीसों घंटे अवसाद में रहता हूं। मुझे पल-पल इंफीरिआरिटी कांप्लेक्स आ रहा है। सच बोलते होंगे, बुरा मत मानो दोस्त! कैंसर से भी खराब बीमारी सच बोलने की होती है। जिसे एक बार लग जाए उसे….. तो सर! कमाल के डाक्टर थे वे। बिन नब्ज के ही मेरी बीमारी पकड़ गए। वरना आज के डाक्टर तो जेब पकड़ने के सिवाय और कुछ करते ही नहीं। तो उन्होंने सलाह दी कि हेल्दी रहने के लिए मैं मौका मिलते ही झूठ बोलने की अपनी ही बनाई सीमाएं लांघता रहूं। कह उन्होंने मुझे सच से बचाने के लिए झूठ की तीन-तीन गोलियां दिन में तीन टाइम बिन नागा खाने की सलाह दी। कब तक? अब तो लाइफ  टाइम ही समझ लो। जरूरत पड़ी तो ऊपर भी मरने के बाद लेता रहूंगा दोस्त! क्योंकि जान है तो जहान है, कह वे तनिक रुके मेरा चेहरा देखते देखते। मतलब, तुम चरित्र के झूठे नहीं हो, डाक्टर की सलाह के चलते स्वस्थ रहने के लिए झूठ बोलने के लिए विवश हो, हां मित्र!  मैं तुमसे इस बात को कहना तो नहीं चाहता था पर…. आज तुमने मेरा मुंह खुलवा ही दिया तो….. सच कहूं तो अब जब मुझे उनके बारे में यह सच पता चला है कि वे जान बूझकर झूठ नहीं बोलते, वे डाक्टर की सलाह पर ही झूठ बोलने को विवश हैं। यारो! कितना गलत था मैं उनके बारे में अंट-शंट सोच, उफ! कभी-कभी हम दोस्तों के बारे में भी कितना गलत सोच लेते हैं गधे कहीं के! भोले-भाले दोस्तों के बारे में ये सब सोचते-सोचते हमें मौत क्यों नहीं आ जाती।


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