राम मंदिर पर नवंबर में फैसला

By: Sep 19th, 2019 12:08 am

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी करने के लिए तय की 18 अक्तूबर की डेडलाइन

नई दिल्ली – अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलीलें पूरी करने के लिए डेडलाइन तय किए जाने से नवंबर तक फैसला आने की उम्मीद बढ़ गई है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को 18 अक्तूबर तक दलीलें पूरी करने की डेडलाइन तय कर दी। मध्यस्थता की कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि इसे समानांतर रूप से जारी रखा जा सकता है, पर इसके लिए सुनवाई को रोका नहीं जाएगा। दोनों पक्षों के वकीलों राजीव धवन और सीएस वैद्यनाथ के द्वारा दिए गए टेंटेटिव अवधि को देखने के बाद सीजेआई ने कहा कि ऐसा लगता है कि अयोध्या मामले की सुनवाई 18 अक्टूबर, 2019 तक पूरी हो जाएगी। सभी पक्ष अपनी दलीलें 18 अक्टूबर तक पूरी कर लें। उन्होंने संकेत दिया कि अगर समय कम रहा तो हम शनिवार को भी मामले की सुनवाई कर सकते हैं। दरअसल, अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई अगर 18 अक्तूबर तक पूरी हो जाती है तो सुप्रीम कोर्ट को जजमेंट लिखने में चार हफ्ते का समय लगेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि नवंबर महीने में कभी भी देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के लिहाज से संवेदनशील इस मामले पर फैसला आ सकता है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में उनकी रिटायरमेंट से पहले फैसला आने की संभावना बढ़ गई है। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने हर दिन सुनवाई को एक घंटा बढ़ाने और यदि जरूरत हो तो शनिवार को भी सुनवाई किए जाने का सुझाव दिया है।

मामले में मध्यस्थता चाहे जारी रखें, पर अब नहीं रुकेगी सुनवाई

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें मध्यस्थता के लिए पत्र मिला है। इन कोशिशों को सुनवाई से अलग समानान्तर तौर पर जारी रखा जा सकता है। गौर हो कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने पत्र लिखकर मध्यस्थता पैनल से एक बार फिर से बातचीत के जरिए मसले को हल करने की कोशिशें करने की बात कही थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोशिशें करने वाले फ्री हैं, लेकिन सुनवाई जारी रहेगी।

आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव दुर्भाग्यपूर्ण

नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने देश में सीवर नालों की हाथ से सफाई के दौरान लोगों की मौत होने पर बुधवार को गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया में कहीं भी लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में नहीं भेजा जाता है। कोर्ट ने इसे असभ्य और अमानवीय स्थिति बताया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी एजेंसियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी जातिगत भेदभाव अब भी समाज में जारी है। मैनहोल, नालियों, सीवर की सफाई करने वाले लोग मास्क, ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं पहनने के कारण मर रहे हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता और जस्टिस एमआर शाह व जस्टिस बीआर गवई की सदस्यता वाली बैंच ने यह टिप्पणी केंद्र की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। दरअसल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से 2018 के अपने एक फैसले को वापस लेने की मांग की है, जिसमें एससी/एसटी अधिनियम के तहत दायर एक शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी के कठोर प्रावधानों और आरोपियों के लिए कोई अग्रिम जमानत नहीं दी थी। बैंच ने केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।


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