विकास के लिए नई औद्योगिक नीति

By: Sep 2nd, 2019 12:05 am

संजय शर्मा

लेखक, शिमला से हैं

प्रदेश सरकार का औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए यह एक बहुत बड़ा प्रयास है परंतु आवश्यकता महसूस की जा रही थी एक ऐसी औद्योगिक नीति की, जो कि आज के बदले परिदृश्य के अनुसार हिमाचल को एक ‘‘निवेशक प्रिय औद्योगिक प्रदेश’’ बनाने में सफल हो…

कृषि, बागबानी, पशुपालन व खनन गतिविधियां प्रदेश के ‘‘प्राइमरी सेक्टर’’ के ऐसे क्षेत्र रहे हैं जो कि प्रदेश की आर्थिकी को बल देते हैं। 1971 में जब प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला उसके पश्चात ही ‘‘सेकेंडरी सेक्टर’’ यानी औद्योगिक विकास की ओर ध्यान दिया गया। उस समय उद्योगों के नाम पर नाहन में नाहन फाउंडरी, जिला सोलन में मोहन मिकिंस, नाहन व बिलासपुर की बिरोजा इकाइयां, मंडी की चार छोटी बंदूक बनाने की इकाइयां व द्रंग में नमक पर आधारित खनन गतिविधियां शामिल थीं। प्रदेश सरकार द्वारा इस बात को समझा गया कि आने वाले समय में उद्योग एक ऐसा क्षेत्र उभर कर आएगा जिसकी प्रदेश की अर्थव्यवस्था व रोजगार सृजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।

इसी बात के दृष्टिगत 1971 में प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा की गई ताकि नीति में दर्शाए गए प्रावधानों व नियमों के आधार पर औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया को सुचारू रूप से प्रारंभ किया जा सके। आने वाले वर्षों में समय व परिस्थितियों को देखते हुए वर्ष 1980, 1984, 1991, 1996, 1999 व 2004 में संशोधित औद्योगिक नीतियां सरकार द्वारा जारी की गई। 2004 में जारी औद्योगिक नीति का भी वर्ष 2009, 2015 व 2017 में संशोधन किया गया। आज प्रदेश के विनिर्माण व सेवा क्षेत्र का राज्य घरेलू उत्पाद में क्रमशः योगदान 29.2 प्रतिशत व 43.3 प्रतिशत का है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्रदेश सरकार इस वर्ष सात व आठ नवंबर को धर्मशाला के पुलिस मैदान में एक ‘‘वैश्विक निवेशक सम्मेलन’’ आयोजित करने जा रही है।

इसमें उद्योग, पर्यटन, ढांचा विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य क्षेत्र आदि में 85 हजार करोड़ के निवेश का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश सरकार के औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए यह एक बहुत बड़ा प्रयास है, परंतु आवश्यकता महसूस की जा रही थी एक ऐसी औद्योगिक नीति की, जो कि आज के बदले परिदृश्य के अनुसार हिमाचल को एक ‘‘निवेशक प्रिय औद्योगिक प्रदेश’’ बनाने में सफल हो। इसी कड़ी में इस वर्ष के बजट में भी मुख्यमंत्री द्वारा एक नई औद्योगिक नीति लाने की घोषणा की गई। पिछले एक वर्ष से नीति को बनाने के लिए जोर-शोर से कार्य किया जा रहा था, जिसके परिणामस्वरूप 16 अगस्त 2019 को प्रदेश की ‘‘नई औद्योगिक निवेश नीति 2019’’ की घोषणा की गई। इस नीति का उद्देश्य उन सब मुद्दों को संबोधित करना है जो कि प्रदेश के औद्योगिक विकास में बाधक हैं। ‘‘व्यापार में सुगमता’’ लाना व सारी प्रक्रियाओं को स्व – प्रमाणीकरण आधार पर ऑनलाइन करना, खाद्य विधायन व हथकरघा/ हस्तशिल्प उद्योग पर विशेष बल देना, स्टार्ट-अप उद्यमों को बढ़ावा देना तथा प्रदेश में औद्योगिक विकास हेतु बडे़े निवेश की भूमिका को स्वीकार करना आदि प्रमुख हैं। आज प्रदेश में लगभग 50 हजार उद्यम लगे हैं, इनमें से लगभग 98 प्रतिशत सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम की श्रेणी में आते हैं। इस क्षेत्र की भूमिका को पहचानते हुए सबसे अधिक ध्यान सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों के विकास की ओर दिया गया है। क्योंकि उद्योग आज रोजगार सृजन के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उभर कर आया है, इसलिए हिमाचली रोजगार का प्रतिशत जो पहले 70 था अब उसे बढ़ाकर इस नई नीति में 80 प्रतिशत कर दिया गया है। यह नई औद्योगिक नीति केवल नए उद्यमों के लिए ही नहीं है। प्रोत्साहनों के दृटिगत पूरे प्रदेश को ए, बी व सी श्रेणियों में बांटा गया है। ए श्रेणी में औद्योगिक रूप से विकसित क्षेत्र, बी श्रेणी में विकासशील व सी श्रेणी में जनजातीय क्षेत्र व औद्योगिक दृष्टि सें पिछड़े विकास खंड व पंचायतें शामिल की गई हैं। सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों, जिनमें विनिर्माण के लिए मशीनरी में दस करोड़ तक का निवेश है व सेवा क्षेत्र के संयंत्रों में पांच करोड़ तक का निवेश है। विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहनों/ सुविधाओं के पात्र होंगें।

जैसेः-परियोजना रिपोर्ट निर्माण हेतु एक लाख रुपए तक की सहायता, सरकार द्वारा विकसित किए जा रहे औद्योगिक क्षेत्रों में रियायती प्रीमियम पर भूमि व शैड का आबंटन, खाली पड़े अतिरिक्त कार्यशाला क्षेत्र को किराए पर देने का प्रावधान, स्टांप ड्यूटी व पंजीकरण शुल्क में रियायत, लैंड यूज बदलने पर शुल्क माफी, तीन साल के लिए छह लाख प्रतिवर्ष तक ब्याज में छूट, मशीनरी व संयंत्र की ढुलाई पर तीन लाख रुपए तक की प्रतिपूर्ति, बी व सी श्रेणी में स्थापित उद्यमों के लिए क्रमशः तीन व पांच वर्ष के लिए वार्षिक बिक्री के आधार पर दस लाख प्रतिवर्ष तक कच्चे माल व तैयार माल की ढुलाई पर अनुदान दिए जाने का प्रावधान है।

 इसके अतिरिक्त जो उद्यम पर्यावरण मित्र प्रक्रियाओं को अपनाते हैं उन्हें भी तकनीक की खरीद के लिए व विद्युत खपत में छूट की सुविधा दी गई है। ऐसे उद्यमों द्वारा  तैयार माल को सरकार द्वारा ‘‘परचेज प्रैफरेंस’’ के अंतर्गत खरीदे जाने की व्यवस्था भी की गई है। निजी क्षेत्र के उद्यमियों द्वारा ढांचागत व्यवस्था के निर्माण हेतु सरकार द्वारा विशेष प्रोत्साहन दिए जाने, निर्यातोन्मुख उद्यमों व हथकरघा तथा हस्तशिल्प के समग्र विकास हेतु भी विशेष प्रावधानों की व्यवस्था इस नीति में की गई है। आशा की जानी चाहिए कि प्रदेश की यह नई औद्योगिक नीति हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक विकास में नए आयाम स्थापित करेगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App