विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Sep 21st, 2019 12:15 am

हम जानते हैं कि पदार्थ परमाणुओं से बने हैं। परमाणु भी अंतिम स्थिति न होकर उनमें भी इलेक्ट्रान तथा प्रोटॉन आवेश होते हैं। प्रोटॉन परमाणु का केंद्र है और इलेक्ट्रान उस केंद्र के चारों ओर घूमते रहते हैं। यह दोनों अंश छोटे-छोटे टुकड़े नहीं हैं वरन यह धन और ऋण आवेश (इलेक्ट्रिसिटी) हैं, दोनों की सम्मिलित प्रक्रिया का नाम ही परमाणु है। इस दृष्टि से देखें तो यह पता चलेगा कि संसार में जड़ कुछ है ही नहीं…

-गतांक से आगे….

हम जानते हैं कि पदार्थ परमाणुओं से बने हैं। परमाणु भी अंतिम स्थिति न होकर उनमें भी इलेक्ट्रान तथा प्रोटॉन आवेश होते हैं। प्रोटॉन परमाणु का केंद्र है और इलेक्ट्रान उस केंद्र के चारों ओर घूमते रहते हैं। यह दोनों अंश छोटे-छोटे टुकड़े नहीं हैं वरन यह धन और ऋण आवेश (इलेक्ट्रिसिटी) हैं, दोनों की सम्मिलित प्रक्रिया का नाम ही परमाणु है। इस दृष्टि से देखें तो यह पता चलेगा कि संसार में जड़ कुछ है ही नहीं। जगत का मूल तत्त्व विद्युत है और उसी के प्रकंपन (वाइब्रेशन्स) के जरिए स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों का अनुभव होता है। छोटे-छोटे पौधों, वृक्ष एवं वनस्पति से लेकर पहाड़, समुद्र, पशु-पक्षी रंग-रूप और अग्नि-वायु, शीत-ग्रीष्म आदि सब विद्युत चेतना के ही कार्य हैं। एक ही शक्ति सब पदार्थों के मूल में है। सृष्टि के आविर्भाव से पूर्व एक ही तत्त्व था, यह बात इतने से ही साबित हो जाती है। कृषि विज्ञान के बहुत-से पंडितों ने पदार्थों के अंदर पाए जाने वाले गुण सूत्रों (क्रोमोसोम) में परिवर्तन करके, उनकी नस्लों में भारी परिवर्तन करने में सफलता पाई है। दिल्ली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. जीआर राव ने मकोय के गुण सूत्रों पर कोल्चीसाइन क्रिया के द्वारा प्रभाव डालकर, उसे टमाटर की-सी नस्ल में परिवर्तित कर दिया। संकर से हीरा बनाया गया है, पर वह वास्तविक हीरे से महंगा पड़ता है। इससे भी यही जान पड़ता है कि स्वार्थ की मौलिक चेतना विघटित और संगठित होकर नए-नए पदार्थों का निर्माण कर लेती है। यहां वह लगेगा कि यह प्रयोग मानवकृत है, फिर मूल तत्त्व की अपनी इच्छा का क्या महत्त्व रहा? वैज्ञानिक यह बताते हैं कि परमाणु में इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते-लगाते एकाएक अपना स्थान बदल देता है, जिसका कोई कारण नहीं होता, उसका यह स्थान परित्याग कार्यकरण सिद्धांत (लॉ आफ काजेशन) से परे होता है, अर्थात विद्युत जहां एक बद्ध-तत्त्व है, वहां उसकी अपनी इच्छा और चेतनता भी है, भले ही वह विद्युत तत्त्व से कोई सूक्ष्मतर स्थिति हो और अभी उसका अध्ययन एवं जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं हो पाई हो। इस मौलिक स्वाधीनता को लॉ आफ इनडिटरमिनेसी के नाम से पुकारा जाता है और उसी के आधार पर अब वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं कि विश्व की सभी वस्तुएं एक-दूसरे से संबद्ध-परस्पर अवलंबित और एक ही संगठन में पिरोई हुई हैं। प्रकृति में पूर्ण व्यवस्था और नियमबद्धता है और सब किसी विश्वव्यापी, स्वेच्छाचारी शक्ति के ही अधीन है।  

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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