विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Sep 14th, 2019 12:22 am

सृष्टि के आरंभ में परमात्मा ने अपनी इच्छा शक्ति से मन (जीवों) को उत्पन्न किया। सृष्टि की हलचल की ओर ध्यान जमाकर देखें तो यह सत्य ही प्रतीत होगा कि इच्छाओं के कारण ही लोग या जीव क्रियाशील हैं, यह इच्छाएं अनेक भागों में बंटी हुई हैं : 1. दीर्घ जीवन की इच्छा, 2. कामेच्छा, 3. धन की इच्छा, 4. मान की इच्छा, 5. ज्ञान की इच्छा, 6. न्याय की इच्छा और 7. अमरत्व या आनंद प्राप्ति की चिर तृप्ति या मोक्ष…

-गतांक से आगे….

सबमें सर्वत्र एक ही परमात्म सत्ता की झांकी करने पर, सर्वत्र एक ही चेतना व्याप्त दिखाई देने पर स्वाभाविक ही व्यक्ति का हृदय विकसित होगा। वह सबको अपना और स्वयं को सबका मानेगा, समझेगा। ऐसी स्थिति में कोई संकीर्ण स्वार्थों के लिए क्यों कर कोई अनुचित आचरण करेगा और क्यों संकीर्ण स्वार्थ की परिधियों में अपने को संकुचित सीमित करने के लिए तैयार होगा? आस्तिकवाद का ईश्वरवाद का यही वास्तविक और असली परिणाम तथा आवश्यकता है। इसके बिना शांति, सुव्यवस्था और सच्ची प्रगति संभव नहीं हो सकती।

ईश्वरीय सत्ता के प्रमाण व विधान

भगवान मनु ने कहा है :

मनः सृष्टिं विकुरुते चोद्यमानसिसृष्टया।

सृष्टि के आरंभ में परमात्मा ने अपनी इच्छा शक्ति से मन (जीवों) को उत्पन्न किया। सृष्टि की हलचल की ओर ध्यान जमाकर देखें तो यह सत्य ही प्रतीत होगा कि इच्छाओं के कारण ही लोग या जीव क्रियाशील हैं, यह इच्छाएं अनेक भागों में बंटी हुई हैं : 1. दीर्घ जीवन की इच्छा, 2. कामेच्छा, 3. धन की इच्छा, 4. मान की इच्छा, 5. ज्ञान की इच्छा, 6. न्याय की इच्छा और 7. अमरत्व या आनंद प्राप्ति की चिर तृप्ति या मोक्ष। इन सात जीवन धाराओं में ही संसार का अविरल प्रवाह चलता चला आ रहा है। इन्हीं की खटपट, दौड़-धूप, ऊहापोह में दुनिया भर की हलचल मची हुई है, इच्छाएं न हों तो संसार में कुछ भी न रहे। इन इच्छाओं की शक्ति से ही सूर्य, अग्नि और आकाश की रचना हुई है। देखने और सुनने में यह बात कुछ अटपटी-सी लगती है, किंतु वस्तुस्थिति यह है कि जब हम शोक, क्रोध, काम या प्रेम आदि किसी भी स्थिति में होते हैं, तो शारीरिक परमाणुओं में अपनी-अपनी विशेषता वाली गति उत्पन्न होती है। परमाणु जो एक ही पदार्थ या चेतना की अविभाज्य स्थिति में होते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार से स्पंदित होते रहते हैं, इससे स्पष्ट है कि शरीर की हलचल इच्छाओं पर आधारित है। अभी यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या मूल चेतना में अपने आप इच्छाएं व्यक्त करने की शक्ति है। इस बात को वर्तमान वैज्ञानिक उपलब्धियों से भली प्रकार सिद्ध किया जा सकता है। जिन्होंने विज्ञान का थोड़ा भी अध्ययन किया होगा, उन्हें ज्ञात होगा कि जड़ पदार्थ (मैटर) को शक्ति (एनर्जी) अथवा विद्युत (इलेक्ट्रिसिटी) में बदल दिया जाता है। इस बात का पता पदार्थ की अति सूक्ष्म अवस्था में पहुंचकर हुआ।   

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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