विश्व सरकार का यथार्थ

By: Sep 25th, 2019 12:05 am

भारत डोगरा

स्वतंत्र लेखक

विश्व के पांच सबसे शक्तिशाली देश ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की ‘सुरक्षा परिषद’ के वीटो अधिकार वाले स्थायी सदस्य हैं, लेकिन इन्हीं पांच देशों के पास सबसे अधिक परमाणु हथियार हैं। ये ही स्वचालित रोबोट हथियारों में आगे हैं। इनकी जलवायु परिवर्तन व अन्य पर्यावरणीय विनाश में भी बड़ी भूमिका है। जब इस बात की जरूरत थी कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तत्काल भारी कमी हो, उस दौर में इसके उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई है। जिस समय जरूरत परमाणु हथियारों में तेजी से कमी लाने की थी, उस दौर में इनकी मारक क्षमता बढ़ाने पर करोड़ों डालर का निवेश हुआ…

अब यह भली-भांति स्पष्ट हो चुका है कि विश्व में ऐसे गंभीर संकट हैं जिनमें धरती की जीवन दायिनी क्षमता ही खतरे में पड़ सकती है। जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी हुई कुछ पर्यावरणीय समस्याएं ऐसा एक अति गंभीर संकट उपस्थित करती हैं। एक अन्य अति गंभीर संकट लगभग 15,000 परमाणु हथियारों व अन्य महाविनाशक हथियारों की उपस्थिति के कारण उत्पन्न हुआ है। हालांकि ये संकट विश्व नेतृत्व के सामने काफी समय से हैं, पर इनका कोई संतोषजनक समाधान संभव नहीं हो पाया है। विश्व के पांच सबसे शक्तिशाली देश ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की ‘सुरक्षा परिषद’ के वीटो अधिकार वाले स्थायी सदस्य हैं, लेकिन इन्हीं पांच देशों के पास सबसे अधिक परमाणु हथियार हैं। ये ही स्वचालित रोबोट हथियारों में आगे हैं। इनकी जलवायु परिवर्तन व अन्य पर्यावरणीय विनाश में भी बड़ी भूमिका है। जब इस बात की जरूरत थी कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तत्काल भारी कमी हो, उस दौर में इसके उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई है।

जिस समय जरूरत परमाणु हथियारों में तेजी से कमी लाने की थी, उस दौर में इनकी मारक क्षमता बढ़ाने पर करोड़ों डालर का निवेश हुआ। सवाल है कि आखिर इन गंभीर संकटों को समय रहते कैसे कम किया जाए? समय सीमा का सवाल इसलिए भी बहुत बड़ा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के साथ ‘टिपिंग प्वाइंट’ भी जुड़े हैं जहां से एक बार पार हुए तो फिर स्थितियां हमारे नियंत्रण से बाहर निकल सकती हैं। विश्व के शीर्ष विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए अब केवल एक दशक ही हमारे पास बचा है। इस स्थिति में आखिर उम्मीद की किरण कहीं तो खोजनी पड़ेगी। यदि मौजूदा व्यवस्था में समाधान नहीं मिल रहे हैं तो मौजूदा व्यवस्था में बड़े बदलाव लाने की तैयारी करनी होगी।  इस ‘विश्व सरकार’ का आरंभिक कार्य-क्षेत्र बहुत सीमित पर अति महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

उसे तत्काल दो बातें सही ढंग से क्रियान्वित करनी होंगी। एक-परमाणु व महाविनाशक हथियारों को शीघ्र-से-शीघ्र समाप्त कर दिया जाए व दूसरी ग्रीनहाउस गैसों में इतनी कमी लाई जाए ताकि औसत तापमान में डेढ़ डिग्री सेंटीग्रेड तक वृद्धि को सीमित किया जा सके। इन दोनों  उद्देश्यों को पहले तुरत-फुर्त क्रियान्वित करना होगा और बाद में यह सुनिश्चित करना होगा कि ये उपलब्धियां भविष्य में भी बनी रहें। यदि ये कार्य सफलतापूर्वक हो जाते हैं तो फिर ‘विश्व सरकार’ के कार्यक्षेत्र को और आगे बढ़ाने या उसका विस्तार करने के बारे में सोचा जा सकता है। ‘विश्व सरकार’ का गठन कैसे होगा? इसके लिए राष्ट्र-राज्यों की मौजूदा भौगोलिक- राजनीतिक सीमाओं से अलग हटकर एक निश्चित जनसंख्या के ‘विश्व सरकार निर्वाचन क्षेत्र’ बनाने चाहिए जहां से उसके लिए प्रतिनिधियों का चुनाव हो सके। इन प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम योग्यताएं भी तय की जा सकती हैं। इन निर्वाचित प्रतिनिधियों के सहयोग के लिए विश्व के सबसे योग्य निशस्त्रीकरण व जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञों का एक परामर्श मंडल बनाया जाए। ये निर्वाचित प्रतिनिधि व विशेषज्ञ मिलकर इन दो विषयों (महाविनाशक हथियार व जलवायु परिवर्तन) पर ऐसे जरूरी निर्णय लेंगे जो विश्व के सभी देशों को मान्य होंगे। ‘विश्व सरकार’ के पास मौजूदा महाविनाशक हथियारों का मात्र एक प्रतिशत भंडार बना रहेगा। यह ‘विश्व सरकार’ की एक परिकल्पना है जो केवल कुछ बड़े संकटों पर निर्णय लेने तक सीमित है, लेकिन इससे एक कदम आगे जाते हुए एक अन्य सोच विकसित की जा सकती है जिसमें विश्व के सभी देशों का सीमा नियंत्रण ‘विश्व सरकार’ को सौंप दिया जाए। इस स्थिति में सभी देशों को अपनी जल, स्थल व वायु सेनाओं के साथ सभी तरह की सैन्य सामग्री के उत्पादन को भंग कर देना होगा या इसके एक सीमित (5 से 10 प्रतिशत) हिस्से को ‘विश्व सरकार’ को सौंप देना पड़ेगा।

 इस स्थिति में किसी भी देश के पास न तो सेना होगी और न वह कोई युद्ध करेगा। ‘विश्व सरकार’ की तीसरी परिकल्पना इससे भी आगे जाती है जिसमें राष्ट्रीय सीमाएं भी समाप्त हो जाती हैं। यह सोच इस सिद्धांत पर आधारित है कि विश्व के सभी लोग एक हैं व उनमें राष्ट्रीयता, क्षेत्रीयता, धर्म, जाति, नस्ल, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस तीसरी परिकल्पना के विश्व में सुशासन बेहद विकेंद्रित ढंग से चलेगा। पूरा विश्व छोटी-छोटी विकेंद्रित इकाइयों में बंटा होगा जो व्यापक जन-भागीदारी और लोकतांत्रिक व विकेंद्रित तौर-तरीकों से बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति के सभी मामलों को सुलझाएंगी। इसमें पूरे विश्व के लिए कुछ मार्गदर्शी सिद्धांत होंगे, जैसे-समता, सादगी, न्याय, लोकतंत्र, पर्यावरण व अन्य जीवों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता। ‘विश्व सरकार’ इन सिद्धांतों का निरंतर प्रसार करेगी।

विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों में कोई मतभेद होने पर वह अन्य पड़ोसी इकाइयों व ‘विश्व सरकार’ के सहयोग से इन मतभेदों को शांतिपूर्ण, सौहार्दपूर्ण माहौल में हल करेगी। विभिन्न इकाइयों में आपस में व्यापार संबंध रहेंगे पर बुनियादी जरूरतों की निकट से आपूर्ति का अधिक प्रयास किया जाएगा, ताकि पर्यावरण पर कम-से-कम बोझ हो।  ‘विश्व सरकार’ की यह परिकल्पना किसी सरकार की परिकल्पना से कहीं आगे जाकर ‘एक विश्व’ की सोच है। जैसे-जैसे धरती पर जीवन का संकट बढ़ रहा है, मौजूदा व्यवस्था से अलग हट कर नई व्यवस्थाओं के बारे में सोचना जरूरी होता जा रहा है।  इतना स्पष्ट है कि ऐसा कोई बड़ा बदलाव अपने आप ही अचानक नहीं आ जाएगा। इसके अनुकूल जीवन-मूल्यों का प्रचार-प्रसार बहुत निष्ठा से कुछ वर्षों तक करना पड़ेगा। विश्व नागरिकता की सोच को फैलाना होगा। साथ में यह भी स्पष्ट है कि दैनिक जीवन के संदर्भ में बेहद विकेंद्रित सोच को ही अपनाना होगा। छोटी, विकेंद्रित इकाई हो या ‘विश्व सरकार,’ लोकतांत्रिक सोच को हर जगह सही भावना से अपनाकर ही मौजूदा संकट से बचा जा सकता है। 


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