शिक्षक सम्मान की गरिमा

By: Sep 6th, 2019 12:05 am

जगदीश बाली

लेखक, शिमला से हैं

शिक्षक दिवस पर इस समाचार पत्र के पन्ने एक ओर पीटरहॉफ  में सम्मानित होने वाले अध्यापकों की सूची थी, तो इस सूची के बगल में इन इनामों के चयन में मैरिट सूची में गड़बड़ी की खबर थी। इसे देख और पढ़ कर हैरानी हुई, मगर उससे ज्यादा दुख हुआ। मन में सवाल उठा आखिर इन इनामों से सम्मान कैसा। जहां पीटरहॉफ  की तड़क-भड़क व चौंधियाती रोशनी के बीच 5 सितंबर को शिक्षक सम्मानित हो रहे थे, वहीं पुरस्कार चयन की मैरिट को लेकर उठते सवालों की खबर के बीच शिक्षक सम्मान की गरिमा धूमिल होती प्रतीत हो रही थी। जब पुरस्कार वितरण की चकाचौंध वाले समारोह से ये शिक्षक बाहर आए होंगे तो इनामों पर उठते विवाद के धुएं को देख एक पल के लिए खुद को विवादित जरूर महसूस किया होगा। शिक्षक दिवस पर सम्मानित होना हर शिक्षक के लिए एक गर्व का विषय होता है और यह उसके जीवन की एक मुबारक घड़ी होती है। परंतु जब इन इनामों को लेकर सवाल खड़े हो जाएं, तो अध्यापक के सम्मान को ठेस जरूर पहुंचती है। ऐसे में योग्य एवं उपयुक्त पात्र सम्मान पाकर भी निराश जरूर होते हैं। वैसे तो एक आदर्श शिक्षक किसी इनाम का मोहताज नहीं होता क्योंकि उसकी शख्सियत की छवि शिष्यों के दिलो-दिमाग पर छाई रहती है और वह अपने उत्कृष्ट शिक्षण से समाज में बिना इनाम के भी सम्मानित ही रहता है। परंतु उन्हें इनाम से नवाजना इस बात का द्योतक है कि समाज, सरकार व विभाग उनके उत्कृष्ट कार्यों को तरजीह और सम्मान दे रहे हैं। इसलिए हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षकों को इनाम देकर सम्मानित करने की परिपाटी चली आ रही है। परिपाटी बुरी नहीं है और बनी रहनी चाहिए। परंतु पिछले कई वर्षों से प्रदेश में शिक्षक सम्मान विवादों में घिरता रहा है। कभी सामान्य छवि वाले सम्मानित हो गए, तो कोई उत्कृष्ट कार्य करने के बाद भी दरकिनार हो गया। किसी बेहतरीन शिक्षक के इनाम पाने की हसरत पूरी न हो सकी। कुछ वर्ष पहले तत्कालीन राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने भी इनाम के लिए शिक्षकों के चुने जाने की प्रक्रिया पर पुरस्कार वितरण समारोह में ही नाराजगी जाहिर की थी। तब भी शिक्षक सम्मान के लिए अपनाई जा रही प्रक्रिया को बदलने की जोर-शोर से बातें हुइर्ं। हर वर्ष प्रक्रिया बदलने की बातें होती हैं, पर सिर्फ बातें होती हैं और बातों के अलावा कुछ नहीं होता। सिर्फ बातों से कुछ नहीं बदलता और शिक्षकों के इनाम के लिए चयन में कुछ खास नहीं बदला। नतीजा हर वर्ष इनामों को लेकर किचकिच हो ही जाती है। पिछले वर्ष भी विवाद हुआ, उससे पिछले वर्ष भी हुआ और इस वर्ष भी इन इनामों को लेकर किचकिच शुरू हो गई है। धीरे-धीरे शिक्षक सम्मान की विश्वसनीयता भी कम होती जा रही है। विश्वसनीयता तो घटेगी ही जब चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी। यही कारण है कि बहुत से शिक्षक पात्र होते हुए भी इनाम के लिए आवेदन ही नहीं करते। उन्हें नहीं मालूम कि इनाम पाने के लिए सत्ता के किस दरवाजे को खटखटाना है। व्यवस्था ऐसी है कि सत्ता या विभाग की नजर उनके उत्कृष्ट कार्यों को नहीं देख पाती है। या यूं कहिए कि वे नजरअंदाज हो जाते हैं। देखने का चश्मा ही कुछ ऐसा है कि ऐसे शिक्षक सही-सही दिखाई नहीं देते। उस चश्मे से जो दिखाई देते हैं उन्हें नवाज दिया जाता है। लिहाजा चश्मा बदलने की जरूरत है। वैसे ऐसे अध्यापकों को इस बात का कोई मलाल भी नहीं होता। वे तो इनामी शोरगुल से दूर ईमानदारी व कर्मठता से अपना कार्य कर रहे हैं। परंतु इनाम पर होने वाले विवादों से इनामों की गरिमा को धक्का जरूर पहुंचता है। इस वर्ष कम शिक्षकों ने इनाम के लिए आवेदन किया था। अंततः सम्मानित होने वाले शिक्षकों की संख्या 12 रह गई। बाकी मानकों पर खरे नहीं उतर पाए। जो खरे उतरे उनका भी मालूम नहीं कितने खरे उतरे और कैसे उतरे। उन्होंने इनाम के भवसागर को तैर कर पार किया या कोई कश्ती मिली, कह नहीं सकते। 24 की जगह केवल 12 ही इनाम की विभागीय सीमा रेखा को पार कर पाए। पिछले वर्ष ये संख्या 16 थी। उधर राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी उपयुक्त दावेदार नहीं मिल पाए। केवल एक शिक्षक ही इस इनाम के भवसागर को पार कर पाया। सवाल ये भी उठता है कि क्या हमारे प्रदेश में इनाम योग्य अध्यापक ही नहीं हैं क्या? जरूर हैं, परंतु आवेदन कर इनाम पाने का तरीका कहीं न कहीं उन्हें रास नहीं आता। उधर विभाग के पास दूसरा कोई तरीका ही नहीं। सवाल ये भी है कि चयन समिति के सदस्य कितनी स्वायत्तता से चयन कर पाते हैं। सुना है शिक्षक दिवस पर सम्मानित होने वाले शिक्षकों का चयन समिति के सदस्यों पर काफी दबाव रहता है। स्वतंत्र चयन करना मुश्किल हो जाता है। मेरा मकसद इनाम पाने वाले शिक्षकों की सेवाओं को कमतर आंकना नहीं। मैं ये भी नहीं कह रहा हूं कि जिसे इनाम मिला वो उपयुक्त चयन नहीं था। ये अध्यापक तो वास्तव में मुबारकबाद व सम्मान के हकदार हैं। मैं तो पारदर्शिता की बात कर रहा हूं। सम्मानित शिक्षकों के प्रोफाइल उपलब्धियों सहित सार्वजनिक किए जाने चाहिए। एक तो इससे अन्य अध्यापक प्रेरित होंगे, दूसरे पता भी चल जाएगा कि किसे किस कार्य के कितने अंक मिले। इनामों पर उठ रही अंगुलियां भी कम हो जाएंगी और पारदर्शिता होने से विश्वसनीयता बढ़ेगी। हमें भी पता चले कि आखिर इनाम पाने की बला व कला क्या है। ये जरूरी नहीं कि शिक्षकों को इनाम के लिए आवेदन करना पड़े। विभाग को चाहिए कि कोई ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाए जिससे इनाम के लिए उपयुक्त अध्यापकों की खोज कर सके। इनाम की इच्छा रखने वाले शिक्षकों को भी चाहिए कि शौहरत व सेवा विस्तार के लालच में शिक्षक सम्मान की गरिमा को बनाए रखें। इनाम न मिले तो क्या, बेहतर शिक्षण भी अपने आप में बड़ा सम्मान है।


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