संसार चंद ने अपने छोटे भाई को बनाया था अपना वजीर

By: Sep 25th, 2019 12:15 am

संसार चंद ने अपने छोटे भाई चमना को अपना वजीर बनाया। उसने प्रत्येक परगना में एक-एक मेहता तथा एक-एक प्यादा कायम किए। उन्हें अपने-अपने परगने के प्रबंध, वहां  के अच्छे-बुरे कार्य के लिए जिम्मेदार बनाया गया।  हर तीसरे मास अपने-अपने क्षेत्र के समाचार ठाकुर को भेजने, दंड आदि का हिसाब ठकुराई के पास देने का नियम कायम किया गया…

गतांक से आगे …

संसार चंद:

 गोरखों ने जब पश्चिमी हिमालय की पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया जो महलोग  के अधीन हो गया। ठाकुर संसार चंद भागकर हिंदूर के राजा रामसरन सिंह के पास जाकर रहने लगा। गोरखा महलोग से 3000/ रुपए वार्षिक कर वसूल करते थे। 1815 ई. में अंग्रेजी ने पहाड़ी राजाओं के सहयोग से गोरखों को हरा कर दस क्षेत्र को छोड़ने के लिए बाध्य किया। इसके फलस्वरूप यह क्षेत्र अंग्रेजों  के अधीन हो गया। उन्होंने अपने किए गए वायदों के अनुसार पहाड़ी राजाओं , राणा तथा ठाकुरों को उनके राज्य वापस लौटा दिए। इसमें सरकार ने महलोग को भी 4 सितंबर, 1815 को दी गई सनद द्वारा महलोग की ठकुराई संसार चंद को पुश्त दर पुश्त के लिए लौटा दी गई। उस पर यह शर्त लगा दी गई कि वह आवश्यकता पड़ने पर सरकार को 40 बेगारी तथा वार्षिक नजराना दे। वह अपनी प्रजा की भलाई और कृषि  की तरक्की के लिए कार्य करे। वह सड़कों की मुरम्मत करके अच्छी स्थिति में रखे। 1815 ई में महलोग की आय 8000 रुपए आंकी गई। संसार चंद ने अपने छोटे भाई चमना को अपना वजीर बनाया। उसने प्रत्येक परगना में एक-एक मेहता तथा एक-एक प्यादा कायम किए।  उन्हें अपने-अपने परगने के प्रबंध, वहां  के अच्छे-बुरे कार्य के लिए जिम्मेदार बनाया गया। उनका हर तीसरे मास अपने-अपने क्षेत्र के समाचार ठाकुर को भेजने, दंड आदि का हिसाब ठाकुराई के पास देने का नियम कायम किया। 1849 ई. में संसार चंद की मृत्यु हो गई।

दलीप चंद (1849-1880)

दलीप चंद के समय में मियां गणेशु उसका वजीर था। इसने मेहतों की महत्ता को बहुत कम किया। उसने जनराना तथा दंड को और  कठिन कर दिया। ठकुराई के खर्च में भी बढ़ोत्तरी हो नई। हिसाब-किताब के लिए बहियों खोली गईं। उसके उपरोत उसका पुत्र गद्दी पर बैठा।

रघुनाथ चंद (1880-1902)

रघुनाथ के राजकाल में भी उसका में भी उसका चाचा गणेशु वजीर रहा। परंतु रघुनाथ चंद प्रशासन के प्रत्येक काम को स्वयं देखता था। ठाकुर के कुशल प्रशासन से प्रसन्न होकर सरकार ने 1898 ई. में रघुनाथ चंद को राणा की उपाधि से सम्मानित किया। उसने अपनी राजधानी पट्टा में तथा कई भवन भी बनाए। एक अस्पताल बनाया। पुलिस विभाग को सुदृढ़ किया।                      – क्रमशः    


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