सेना में ‘आवा’

By: Sep 28th, 2019 12:05 am

कर्नल मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

‘आवा’ यानी आर्मी वाइफ  वेलफेयर एसोसिएशन, शायद ही कोई सैनिक होगा जो इस नाम से परिचित न हो। वर्तमान में किसी सिपाही सूबेदार या जूनियर रैंक के अधिकारी से आवा के बारे में बात करेंगे तो उनका मत इस आर्गेनाइजेशन के बारे में ज्यादा अच्छा नहीं होगा, इसके कुछ कारण हैं। 23 अगस्त 1966 में सृजित इस एसोसिएशन का आधारभूत लक्ष्य फौजी के परिवार में पत्नी एवं बच्चों का सोशल इम्पावरमेंट व स्किल डिवेलपमेंट और विधवा व डिफरेंटली एवलड  का रिहेबिलिटेशन करना है। पांच दशक पूर्व सेना में सिपाही की पारिवारिक पृष्ठ भूमि एवं शैक्षणिक योग्यता के आधार पर बनाए गए नियम वर्तमान में तर्कसंगत नहीं लगते। पहले जब सिपाही एवं अधिकारी टे्रनिंग या युद्ध अभ्यास में व्यस्त होते थे तो ‘आवा’ मनोरंजन के लिए नाच-गाना व योग्यता के लिए सिलाई, कढ़ाई करवाती थी जिसमें हर औरत स्वेच्छा से हिस्सा लेती थी। आज बदले संदर्भ में अकसर देखने को मिलता है कि सिपाही की पत्नी की शैक्षणिक योग्यता अधिकारी की पत्नी से अधिक है और उसकी प्रियोरिटीस जबरदस्ती नाच-गाने व सिलाई, कढ़ाई न होकर अपने परिवार के साथ समय बिताना व बच्चों की पढ़ाई है। सेना में किसी टुकड़ी को कमांड करने हेतु निर्धारित रैंक पाने के लिए अधिकारी कड़ी समीक्षा और परीक्षा से गुजरते हैं, पर कमांड अधिकारी बनते ही उसकी धर्मपत्नी उसी टुकड़ी की आवा प्रेजिडेंट बन जाती है। सेना हमेशा युद्ध के तौर पर तैयार हो, इसलिए अलग-अलग स्तर के कमान अधिकारियों को ओवरलैप के साथ बदला जाता है। ये अधिकारी कमांड लेते व छोड़ते वक्त हर यूनिट का दौरा करते हैं। इस दौरान हर यूनिट अच्छे प्रदर्शन के लिए रात-दिन ट्रेनिंग में व्यस्त रहती है। इसी समय नई बनी आवा प्रेजिडेंट के वेलकम और  फेयरवेल की तैयारियां, मोबाइल, टीवी के जमाने में भी जबरदस्ती नाच-गाने के साथ पैरलल शुरू हो जाती हैं। इसका  नुकसान सैनिक परिवारों के बच्चों की पढ़ाई पर पड़ता है। अगर कोई औरत किसी कारणवश आवा मीट मिस कर देती है तो उसे सूबेदार मेजर फौजी तरीके से हैंडल करने की कोशिश करता है जिससे जूनियर रैंक में आवा की गलत छवि बन गई है। इसमें दो राय नहीं कि आवा देश में डिफरेंटली एवलड बच्चों के लिए आशा, कैंसर पेशेंट के लिए प्रेरणा, सैनिक विधवाओं के लिए वीर नारी कमेटी, नारी सशक्तिकरण के लिए आह्वान आदि बना अपने लक्ष्य की तरफ  अग्रसर है पर यूनिट लेवल पर इसमें आधारभूत बदलाव की आवश्यकता है। औरतों को जबरदस्ती इसमें हिस्सा लेने के लिए दबाव बनाने और मसले को फौजी तरीके से हैंडल करने के बजाय स्वेच्छा से प्रेरित किया जाए, डांस, टेलरिंग छोड़ ज्यादा से ज्यादा कोचिंग इंस्टीच्यूट व करियर काउंसिलिंग का प्रावधान किया जाए तो शायद यह वक्त की जरूरत के हिसाब से सही कदम होगा।


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