हृदय का कार्य

By: Sep 21st, 2019 12:15 am

ओशो

जब हृदय सक्रिय हो जाता है, तो तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व, पूरी संरचना, पूरे तौर-तरीके को बदल डालता है, क्योंकि हृदय का अपना अलग मार्ग है। पहला सूत्रः सिरविहीन होने का प्रयास करो। स्वयं के सिरविहीन होने की कल्पना करो, सिरविहीन होकर ही चलो। सुनने में यह अजीब लगता है, परंतु यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण साधनाओं में से एक है। इसका प्रयोग करो, तब तुम जानोगे। चलो और यह अनुभव करो जैसे कि तुम्हारा कोई सिर नहीं है। प्रारंभ में तो यह बहुत अटपटा लगेगा। जब तुम्हें यह महसूस होगा कि तुम्हारा सिर ही नहीं है, तो बड़ा अटपटा और अजीब लगेगा, लेकिन धीरे-धीरे तुम हृदय में स्थित हो जाओगे। एक नियम है। शायद तुमने देखा हो, जो व्यक्ति अंधा है उसके कान अधिक तत्पर, अधिक संगीतमय होते हैं। संगीत के लिए उनकी अनुभूति गहनतर होती है। क्यों जो ऊर्जा सामान्यतः आंखों से बहती है, अब उनसे तो बह नहीं सकती। तो वह एक भिन्न मार्ग चुन लेती है, वह कानों से बहने लगती है। अंधे लोगों में स्पर्श के प्रति ज्यादा गहरी संवेदनशीलता होती है। यदि कोई अंधा व्यक्ति तुम्हें छुए, तो तुम्हें अंतर पता चलेगा। क्योंकि सामान्यतः छूने का बहुत सा कार्य हम आंखों से ही कर लेते हैं। हम एक-दूसरे को आंखों से छू रहे हैं। एक अंधा व्यक्ति आंखों से नहीं छू सकता, तो ऊर्जा उसके हाथों से होकर बहती है। अंधा व्यक्ति आंखों वाले किसी भी व्यक्ति से अधिक संवेदनशील होता है। कभी-कभी हो सकता है कि ऐसा न भी हो, परंतु सामान्य रूप से ऐसा ही होता है। यदि एक केंद्र न हो तो ऊर्जा दूसरे केंद्र से बहने लगती है। तो इस प्रयोग को सिरविहीन होने के प्रयोग को करके देखो। जो मैं बता रहा हूं और अचानक तुम एक अद्भुत बात अनुभव करोगे। ऐसा होगा जैसे पहली बार तुम हृदय पर आए। जब पहली बार पश्चिम के लोग जापान पहुंचे, तो वह विश्वास नहीं कर पाए कि जापानी लोग पारंपरिक रूप से सदियों से यह सोचते रहे हैं कि वे पेट से सोचते हैं। यदि तुम किसी जापानी बच्चे से पूछो कि तुम्हारा सोच-विचार कहां होता है, तो वह अपने पेट की ओर इशारा करेगा। सदियां और सदियां बीत गई हैं और जापान सिर के बिना जीता रहा है। यह मात्र एक धारणा है। यदि मैं तुमसे पूछूं तुम्हारा सोच-विचार कहां चल रहा है, तो तुम सिर की ओर इशारा करोगे, लेकिन जापानी व्यक्ति पेट की ओर इशारा करेगा, सिर की ओर नहीं। यह भी एक कारण है कि जापानी मन इतना स्थिर, शांत और निश्चल है। अब वह भी भंग हो गया है क्योंकि पश्चिम हर चीज पर फैल गया है। अब पूरब कहीं है ही नहीं। पूरब तो अब कुछ ही इक्का- दुक्का लोगों में बच रहा है जो द्वीपों की तरह कहीं-कहीं मिल जाते हैं। भौगोलिक रूप से पूरब समाप्त हो गया है। अब तो पूरा विश्व ही पाश्चात्य है। सिरविहीन होने का प्रयास करो। अपने स्नानगृह में दर्पण के सामने खड़े होकर ध्यान करो। अपनी आंखों में गहरे झांको और महसूस करो कि तुम हृदय से देख रहे हो। धीरे-धीरे हृदय केंद्र सक्रिय हो जाएगा और जब हृदय सक्रिय हो जाता है, तो तुम्हारे पूरे व्यक्तित्व, पूरी संरचना, पूरे तौर-तरीके को बदल डालता है, क्योंकि हृदय का अपना अलग मार्ग है। तो पहली बातः सिरविहीन होने का प्रयास करो। दूसरे, अधिक प्रेमपूर्ण होओ क्योंकि प्रेम बुद्धि से नहीं हो सकता। अधिक प्रेमपूर्ण हो जाओ। यही कारण है, जब कोई प्रेम में होता है, उसकी बुद्धि छूट जाती है।


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