अनुराग ठाकुर की आहट तक
उपचुनाव उवाच-17
मेरे उपचुनाव में सियासत के योद्धा-पुरोधा साबित होने की नूरा कुश्तियां पर्दे के पीछे जारी हैं। जो पिछले चुनावों में नहीं हुआ, इस बार हो रहा है। रिश्तों की इबारत में अक्षर बदल रहे हैं और नारों की गूंज में मेरा आत्मबल। कई हस्तियां मेरे आंगन में आईं, लेकिन एक जिक्र उस युवा का जरूर करूंगा, जो आज केंद्र में वित्त राज्य मंत्री हैं। सही पहचाना कि अनुराग ठाकुर से धर्मशाला का नाता न राजनीतिक है और न ही पैदाइशी, बल्कि यह खेल भावना का रहा। मैं अपने आसपास हमेशा खेल भावना की उम्मीद करता हूं, लेकिन सियासी विद्वेष की पराकाष्ठा में आप मुझे कहीं भी शर्मिंदा होते देख सकते हैं। मेरे एंट्री प्वाइंट पर ‘डिवाइन धर्मशाला’ लिखने वाले हाथ काट दिए गए या यह भी बिगड़ते रिश्तों की कहानी है कि जहां हजारों लोग सेल्फी लेते हैं, उस गौरव को सरेआम लूटा गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के उम्मीदवारों को अपने प्रचार की एक सेल्फी ‘डिवाइन धर्मशाला’ के उन टूटे फूटे अक्षरों के साथ खिंचवानी चाहिए, जो पिछले दो सालों की सियासत में उजड़ गए। इसी दौर में बंद युद्ध संग्रहालय को देखकर दोनों तरफ की सियासत को शर्म नहीं आई होगी। किसी विभाग के अधिकारी या प्रशासन को भी फुर्सत नहीं मिली कि युद्ध संग्रहालय परिसर की देखभाल की जाती, ताकि वहां छत न टपकती और फूल न सूखते। सियासत के भीतर इरादों की नफरत और अहंकार की मुनादी में धर्मशाला के मतदाता भी अपनी इंद्रियों को सुन्न करके रहते हैं, इसलिए विधानसभा क्षेत्र के लिए की गई कई घोषणाएं कब्र में हैं। कभी स्व. सत महाजन ने बतौर पर्यटन मंत्री कहा कि ‘ट्री टॉप’ हट बनाएंगे या प्रदेश के पहले रज्जु मार्ग का धर्मकोट में शिलान्यास वर्षों से आराम कर रहा है। खैर राजनीति ने मुझसे बहुत कुछ छीना, लेकिन जो मुझे गैर राजनीतिक तौर पर मिला, उसी की पहचान है। डलहौजी के नागरिकों ने तिब्बती शरणार्थी बसाने से इनकार किया, तो दलाईलामा धर्मशाला के हो गए। अनुराग ठाकुर की क्रिकेट दीवानगी ने मुझे विश्व स्तरीय स्टेडियम दे दिया। सरकारें आती-जाती रहेंगी, लेकिन ये दो प्रतीक मेरी हिफाजत करेंगे, वरना पुलिस ग्राउंड भी खेलों की क्षमता में स्टेडियम होता। यह दीगर है कि कई प्रधानमंत्री यहां आए, लेकिन दूसरी बार नरेंद्र मोदी के आगमन से मरी और पुलिस ग्राउंड की बांछें खिल गईं। इन्वेस्टर मीट के बहाने मैं करवटें बदलने लगा हूं, वरना इस बार तो मैं विकास की एक ईंट भी फिलहाल नहीं बटोर सका। इन्वेस्टर मीट के सान्निध्य में प्रदेश की तस्वीर पच्छाद तक बदले, तो पता चलेगा कि हिमाचल कितने पानी में है। वरना आज तक के निवेश में कांगड़ा को क्या मिला। निजी यूनिवर्सिटियों के ढेर में सोलन दब गया, लेकिन धर्मशाला के नाम पर सीयू आज भी आईसीयू में है। औद्योगिक विस्तार से परवाणू और बीबीएन बने, लेकिन कांगड़ा के सीमांत क्षेत्र केवल रेत-बजरी की तरक्की में मशगूल रहे। नेता तो हमें भी मिले। पंजाब में रहते हुए कांगड़ा को बख्शी प्रताप सिंह जैसा व्यक्ति मिला, जिसने ब्रिटिश सेना छोड़कर आजादी की जंग लड़ी। पंजाब के राजस्व मंत्री के रूप में कांगड़ा को राजनीतिक कद मिला। पंडित सालिग राम के उठते कद पर वाईएस परमार के आजू बाजू की सियासत में सत महाजन और पंडित संत राम के अध्यायों की परिणति कांगड़ा को विवश करती रहीं और वर्तमान दौर मेरे उपचुनाव में किसका करिश्मा देख रहा है — कांग्रेस खुद को खारिज करेगी या भाजपा। ऐसे में केंद्र में वित्त रज्य मंत्री अनुराग ठाकुर जब कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार की संभावनाओं पर अपना वादा दोहराते हैं, तो मेरे आसपास राजनीतिक पदचाप बदल जाती है।
इन्हीं कदमों की आहट से
कलम तोड़
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