इन्फेंटरी डे

By: Oct 26th, 2019 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

आधुनिक हथियारों से लैस हरदम जोश व जज्बे से लबरेज होकर देश की सरहदों पर चौबीसों घंटे मुस्तैद भारतीय सेना का सबसे आक्रमक दस्ता जिसके विशेष तरीके से तीव्र प्रशिक्षित जवानों को दुश्मन देश की सरजमीं में घुसकर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसे घातक व जोखिम भरे आपरेशन को अंजाम देने की महारत हासिल हो वह ‘द क्वीन ऑफ  बैटल’ की पहचान से विश्व विख्यात ‘इन्फेंटरी’ भारतीय थल सेना का सबसे बड़ा व महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इन्फेंटरी के बिना सेना की कल्पना ही नहीं हो सकती। युद्धों के इतिहास में इन्फेंटरी ने सदैव अग्रणी मोर्चों पर किरदार निभाकर अपने रणकौशल से भारतीय सैन्य इतिहास के अनगिनत सुनहरे पन्ने अपनी शौर्यगाथाओं की इबारत से भर दिए हैं। दुश्मन के खेमे में खलबली मचाने वाली थल सेना 27 अक्तूबर का दिन प्रतिवर्ष ‘इन्फेंटरी डे’ के रूप में मनाती हैं। दरअसल भारतीय सैन्य पराक्रम की इस 72 वर्ष पुरानी शौर्यगाथा का गौरवशाली इतिहास कश्मीर से जुड़ा है। 1947 में विभाजन के साथ ही कश्मीर पाक हुक्मरानों की आंखों में खटकने लग गया था इसे हथियाने के लिए पाक सेना ने सिविल लिवास में कई हजार कबाइली तथा पशतून लश्करों को साथ लेकर 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान की सरहदें लांघ कर कश्मीर पर हमला बोलकर अपने नापाक मंसूबे जाहिर कर दिए थे। पाक पैरोकारों ने उस हमले को ‘आपरेशन गुलमर्ग’ का नाम दिया था जिसकी कियादत मेजर जनरल अकबर खान ने की थी तथा घुसपैठिया युद्धकला का तरीका इजाद करना उसी के मस्तिष्क की खोज थी। पाक सेना के उस उन्मादी सैलाब जैसे हमले से निपटने में असमर्थ जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई। कश्मीर विलय की तमाम सियासी उलझनों के उपरांत 26 अक्तूबर 1947 को ‘इंस्ट्रमेंट ऑफ  एक्सेशन’ साइन होने के बाद पाक सेना के उस हमले के पलटवार का भारतीय थल सेना ने जब कश्मीर के महाज पर शदीद आगाज किया वह समय 27 अक्तूबर 1947 का ऐतिहासिक दिन था जब भारतीय थलसेना की ‘प्रथम सिख’ बटालियन को कर्नल रंजीत राय महावीर चक्र ‘मरणोपरांत’ के नेतृत्व में दिल्ली से विमान द्वारा श्रीनगर पहुंचाया गया था। हालांकि भारतीय सेना की बाकि युनिट भी साथ-साथ पंहुच गई थीं। यह पहला मौका था जब आजाद भारत की सेना ने कश्मीर की धरती पर अपने कदम रखे थे और पाक सेना का सामना किया था। इस युद्ध में पाक सेना अपने मुख्य लक्ष्य श्रीनगर की हवाई पट्टी को कब्जाने के लिए लगातार आगे बढ़ रही थी, लेकिन श्रीनगर पहुंचने से पहले ही बड़गाम के पास भारतीय सेना की 4 कुमांऊ रेजिमेंट की एक कंपनी के 50 जवानों ने माकूल जवाबी हमला करके आगे बढ़ रही दुश्मन की सेना के कई सैनिकों तथा घुसपैठियों को लाशें के ढेर में तबदील करके वहीं खामोश कर दिया था। उस कंपनी का नेतृत्व मेजर सोमनाथ शर्मा कर रहे थे जिनके अनुभवी सैन्य नेतृत्व व निडरता के आगे दुश्मन की सेना स्तब्ध रह गई थी। मगर दुर्भाग्य से श्रीनगर को बचाने के लिए पाक सेना के ऊपर जवाबी हमले के उसी आक्रमक सैन्य अभियान में दुश्मन की गोलीबारी में मेजर सोमनाथ वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन शहादत से पहले वे अपने जवानों के साथ उस बड़े हमले को नाकाम करके भारत की विजयगथा सुनिश्चित कर चुके थे। जिसके चलते श्रीनगर को फतह करने का ख्वाब लेकर निकले पाक सैन्य कमांडर अकबर खान की पूरी रणनीति ध्वस्त हुई। वही शिकस्त पाक सेना के ताबूत में कील सबित हुई वहीं से उस युद्ध ने निर्णायक मोड़ लिया। रणक्षेत्र में दुश्मन के समक्ष जांबाजी व कुशल नेतृत्व के लिए भारत सरकार ने मेजर सोमनाथ को देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ ‘मरणोपरांत’ से अंल्कृत किया था। इसी युद्ध में अद्म्य साहस के प्रदर्शन के लिए सरकार ने चार अन्य सैनिकों को भी परमवीर चक्र से नवाजा था जिनमें लांस नायक कर्म सिंह ‘प्रथम सिख’ सीएचएम पीरू सिंह ‘राजपुताना राइफल’ नायक जदुनाथ सिंह ‘राजपूत रेजिमेंट’ तथा मेजर राम राघोबा राणे ‘इंजीनियर्स’ थे, लेकिन मेजर सोमनाथ शर्मा आजाद भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता शहीद सैनिक थे जिनका संबंध वीरभूमि हिमाचल से था। 1947-48 में 14 महीनों तक चले इस भयंकर युद्ध में कश्मीर को पाक सेना के चंगुल से आजाद कराने में 1104 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे जिनमें 43 शहीद शूरवीरों का संबंध भी हिमाचल से था। इस युद्ध में कश्मीर पर हमलावर ज्यादातर पाक सैनिक विभाजन के बाद ही पकिस्तान गए थे इसी युद्ध में शहीद पकिस्तानी कैप्टन मोहम्मद सरवर भट्टी प्रथम ‘निशाने हैदर’ का संबंध भारतीय ‘पजांब रेजिमेंट’ से था। कश्मीर को दुश्मन से महफुज रखने में तमाम युद्धों तथा आंतरिक सुरक्षा में तैनात होकर हजारों सैनिक अपना बलिदान दे चुके हैं। देश के लिए सैनिकों की शहादतें ही शौर्य पराक्रम का सबसे बड़ा सबूत होती हैं। देश के सफल सैन्य अभियानों की विजय का इतिहास इस बात की तसदीक करता है कि सेना सदैव वीरता व शौर्य की समर्थक रही है जिसके लिए देश हमेशा सर्वोपरि रहा है, लेकिन भारतीय सेना के हाथों चार युद्धों में भारी शिकस्त खाने के बाद अपनी हिमाकतों पर दुनियां भर में फजीहत तथा अपने ही देश में जलालत झेल रहे चार राज्यों के इस बेगरत मुल्क के बेमुरव्बत हुक्मरानों ने कोई तासूर नहीं लिया। अपनी तकरीरों से कश्मीर का राग अलाप कर अपने दामन पर लगे शर्मनाक पराजय के दाग मिटाने के लिए पाक पैरोकार जिसे बहादुरी बताते हैं वास्तव में वो बेवकूफी है। बहराल ‘ग्लोवल फायरपावस 2019’ की रिपोर्ट के अनुसार भरतीय थल सेना विश्व की 4 सर्वाधिक शक्तिशाली सेनाओं में शुमार कर चुकी है जो देश की सरहदों पर दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने की कुव्वत तथा आतंकी सरपरस्ती को बेनकाब करने की पूरी सलाहियत रखती है लाजिमी है कि हमें अपनी सेना की हैसियत तथा रुतबे पर गर्व होना चाहिए जिसके दम पर कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और निःसंदेह रहेगा।


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