ईश्वर बिन सुख नहीं

By: Oct 19th, 2019 12:15 am

स्वामी रामस्वरूप

यदि मनुष्य ईश्वर के बताए मार्ग पर न  चले, वैदिक शिक्षाओं से लाभ न ले, तब ईश्वर भी क्या करे। वह अपने नियम तोड़कर मनुष्य को सुख कैसे दे। यहां भी ईश्वर मंत्र में उपदेश करता है कि हे मनुष्यों तुम मुझसे इस प्रकार प्रार्थना करो‘ मा तिस्त्रःहरितः’ हे परमेश्वर मुझे तीन अर्थात स्तुति, प्रार्थना, उपासनाएं सुख पहुंचाती हैं…

ऋग्वेद मंत्र 10/33 में शिक्षा है कि वेद ज्ञाता विद्वान गुरु जन ज्ञान देकर मनुष्य जाति को सत्कर्म में प्रेरित करके परमात्मा की ओर प्रवृत्त करते हैं, जिससे कि श्रद्धालु परमात्मा को अपने अंतःकरण में अनुभव कर लेते हैं। मंत्र में कहा कि यदि हम मनुष्य का शरीर धारण करके परमेश्वर की भक्ति नहीं करते तब ‘दुःशासु आ आगात-इति घोषः आसीत अर्थात दुःख से पीडि़त करने वाली क्लेश रूप मृत्यु और भिन्न-भिन्न कठिन रोग मनुष्य को आ दबाते हैं और प्रत्यक्ष देखने में आता है कि मनुष्य मृत्यु और रोग आदि आने पर चीखता-चिल्लाता रहता है। अगले ही मंत्र में ईश्वर ज्ञान देता है कि मृत्यु के पश्चात जब पुनर्जन्म होता है तब जीवात्मा को  माता के गर्भाश्य में माता की पसलियां इधर से उधर से पीडि़त करती हैं और स्वाभाविक मृत्यु का भय भी सताता है। जन्म के पश्चात वृद्धावस्था आने पर बुढ़ापे के रोग उसे सताते हैं। मनुष्य को मानसिक वासनाएं भी विवध रूप से खाती रहती हैं। वस्तुतः मनुष्य पिछले जन्मों के पुण्य तथा पाप रूप कर्मों का फल क्रमशः सुख-दुःख के रूप में भोगने आता है तथा यदि इस शरीर द्वारा पूर्व युगों की भांति वेद मार्ग पर चलकर ईश्वर स्तुति, प्रार्थना और उपासना के द्वारा अपने दुःखों का नाश नहीं करता, तो मनुष्य का शरीर त्यागने के पश्चात जीवात्मा कर्मानुसार पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि भिन्न-भिन्न योनियों में जाकर महादुःख को प्राप्त होता है। मंत्र में प्रार्थना है ‘नः पिता इव भव’ अर्थात हे परमेश्वर ! आप हमारे पिता के समान हैं। अतः ‘सुकृत नः सुमृत्यु’ हमारे दुःखों का नाश करके हमें मोक्ष के सुख को प्रदान कर। यहां हम ध्यान दें कि परमेश्वर ने तो मनुष्य जाति के कल्याण के लिए वेद विद्या दान में दे दीं और उसमें तरह-तरह के उपदेशों , शिक्षाओं, शुभ कर्मों, संपूर्ण पृथ्वी के पदार्थों के ज्ञान और उपासना आदि अनंत शिक्षाएं दे दीं। अब यदि मनुष्य ईश्वर के बताए मार्ग पर न  चले, वैदिक शिक्षाओं से लाभ न ले, तब ईश्वर भी क्या करे। वह अपने नियम तोड़कर मनुष्य को सुख कैसे दे। यहां भी ईश्वर मंत्र में उपदेश करता है कि हे मनुष्यो तुम मुझसे इस प्रकार प्रार्थना करो‘ मा तिस्त्रःहरितः’ हे परमेश्वर मुझे तीन अर्थात स्तुति, प्रार्थना, उपासनाएं सुख पहुंचाती हैं। मैं नित्य तेरी स्तुति, प्रार्थना और उपासना के द्वारा मोक्ष का सुख प्राप्त करूं।       – क्रमशः

 


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