कांग्रेस ने अग्रणी संगठनों से बेदखल किया निचला हिमाचल

By: Oct 31st, 2019 12:30 am

सभी अध्यक्ष शिमला जिला से; क्षेत्र के साथ जातीय संतुलन में भी अनदेखी, पार्टी को भविष्य में भारी पड़ सकता है सौतेलापन

धर्मशाला  -हिमाचल की सियासत में उपुचनाव के बाद अब पार्टी के भीतर होने वाले संगठनात्मक चुनावों को लेकर जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। विपक्षी दल कांग्रेस के हालात देखें, तो यहां अधिकतर फ्रंटल संगठनों के अध्यक्ष शिमला व आसपास के क्षेत्रों से ही हैं, जिससे लोअर हिमाचल के कार्यकर्ताओं में खासी नाराजगी है। जातीय व क्षेत्रीय संतुलन साधे बिना चल रहे हालात कांग्रेस की मुश्किलों को आने वाले दिनों में और अधिक बढ़ा सकते हैं। पिछले कुछ समय से एनएसयूआई और युवा कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव भी मनोनयन से हो रहे हैं, जिससे आम कार्यकर्ता इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पा रहे। ऐसे में कांग्रेस के आम कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेताओं में भी इन मामलों पर खूब चर्चा चल रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कुलदीप राठौर, युवा कांग्रेस अध्यक्ष मनीष ठाकुर, एनएसयूआई अध्यक्ष चतर सिंह, महिला कांग्रेस अध्यक्ष जैनब चंदेल और राजीव गांधी पंचायती राज संगठन के मुखिया दीपक राठौर राजपूत हैं और सभी शिमला जिला से हैं। इसके अलावा सेवादल प्रमुख अनुराग शर्मा ब्राह्मण हैं और शिमला से हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख व सक्रिय संगठनों के मुखिया की सूची देखें तो सभी अपर हिमाचल से हैं। ऐसे में निचले हिमाचल के कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में बैलेंस बनाने को आवाज उठने लगी है।  सियासी समीकरणों को साधने के लिए किसी भी राजनीतिक दल में जातीय व क्षेत्रीय संतुलन आवश्य देखा जाता है, लेकिन कांग्रेस के भीतर अचानक बने यह हालत लोअर हिमाचल के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को रास नहीं आ रहे। अगर ऐसा ही रहा, तो आने वाले दिनों में सियासी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हालांकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर उपचुनाव के बाद संगठनात्मक बदलाव के संकेत दे चुके हैं, लेकिन अब हार के बाद मचे घमासान के चलते सियासी चर्चाओं का दौर जोर पकड़ने लगा है।

मनोनयन के सियासी खेल से निराशा

कांग्रेस के युवा संगठन के चुनाव भी विक्रमादित्य सिंह के विधायक बनने के बाद नहीं हो पाए हैं। हालांकि पूर्व में योजनावद्ध तरीके से चुनाव प्रक्रिया पूरी कर आम कार्यकर्ता की सहभागिता सुनिश्चत की जाती रही है। इसी तरह एनएसयूआई के चुनाव भी ऊना के करुण शर्मा के बाद नहीं हो पाए हैं, जिससे अब कांग्रेस के भीतर चल रहे मनोनयन के सियासी खेल से भी युवा कार्यकर्ताओं में निराशा है। कार्यकर्ता पदाधिकारियों की आयु और क्षेत्रीय संतुलन का ध्यान रखने के लिए आवाज बुलंद करने लगे हैं।

यहां से जाती है सत्ता की सीढ़ी

किसी भी राजनीतिक दल को सत्ता की सीढ़ी तक ले जाने के लिए कांगड़ा-चंबा, ऊना, हमीरपुर और कुल्लू व मंडी का अहम योगदान रहता है। सबसे अधिक विधायक संख्या वाले कांगड़ा को किसी भी सूरत में माइनस नहीं किया जा सकता। ऐसे में संगठनात्मक एकजुटता के लिए कांग्रेस को भी अपनी भावी रणनीति लोअर हिमाचल को ध्यान में रखकर करनी होगी।


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