खेल नगरी का तमगा भी काम न आया

By: Oct 18th, 2019 12:02 am

उपचुनाव उवाच-27

मेरे आंचल में पुलिस के कब्जे में एक विशाल मैदान न जाने कितने चुनाव, रावण दहन, सांस्कृतिक और परेड समारोहों में सेल्यूट हासिल करते नेताओं को देख चुका है। धर्मशाला की ऋतुओं को बदलते देखना हो, तो धौलाधार के ठीक सामने मौसम के अक्स में पुलिस मैदान का नजारा लीजिए, लेकिन इसका दर्द भी समझिए। चुनावी दीवारों से दूर सैकड़ों युवा हर सुबह इसी मैदान पर कसरतें करते-करते फौज, पुलिस या सुरक्षाबलों तक पहुंचने की अपनी निरंतरता पर भरोसा करते हैं, लेकिन मंगलवार से उनके लिए गेट फिर बंद हो गए। गेट अकसर बंद होते हैं, क्योंकि कभी-कभी इसका कद वीआईपी हो जाता है। इस बार इन्वेस्टर मीट का आयोजन मेरे चुनाव परिणाम से ठीक दो सप्ताहों के भीतर उड़ान भरेगा। फिर रौनक होगी और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान की दूब पर चलेंगे, बशर्ते इन्वेस्टर मीट की अधोसंरचना के बीच मेरा कोई कोना इस काबिल रहेगा। मेरा भाग्य देखिए, वर्षों पहले इसका पैवेलियन हटा दिया गया, जो आज तक नहीं बना, लेकिन मोदी आगमन पर हर बार मेरे वजूद पर ईंटें चढ़ती हैं। ये ईंटें फुटबाल, हॉकी या एथलेटिक्स के मैदान को संवारने के लिए नहीं, बल्कि कभी सरकार के एक साला जश्न तो अब इन्वेस्टर मीट के आयोजन के लिए। करीब पांच दशकों से स्टेडियम बनने के इंतजार में यह मैदान पुलिस के हाथों की कठपुतली बना है, जबकि इसे खेल विभाग या नगर निगम को हस्तांतरित करने की मांग नागरिक उठाते रहते हैं। मैदान के बीचोंबीच पुलिस के आलाधिकारियों के टेनिस के प्रति शौक ने इसका एक हिस्सा छीन लिया, जबकि एक-दूसरे हिस्से पर जनता के विरोध को कुचल कर आईजी कार्यालय का स्तंभ खड़ा कर दिया गया। यहां बता दें कि धर्मशाला शहर की एक-चौथाई जमीन पर पुलिस विभाग का कब्जा है, जबकि प्राचीन हनुमान मंदिर की आरती थाली भी विभाग की संपत्ति है। धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक खेल के मैदान हैं, लेकिन खेल विभाग के पास एक भी नहीं। वर्षों पहले खेल के पैसे से जो होस्टल मैदान के साथ बना, उस पर भी पुलिस विभाग का कब्जा है। पिछली सरकार ने फुटबाल अकादमी बनाने की ठानी, लेकिन जोराबर स्टेडियम आज भी विधानसभा सत्र के दौरान पार्किंग सुविधा मुहैया कराता है। साई के खेल छात्रावास को स्तरोन्नत करने की एक फाइल वर्तमान सरकार के पास अटकी है। निचले सकोह में राष्ट्रीय खिलाडि़यों को उच्चतर प्रशिक्षण के लिए पिछली सरकार जगह मुहैया करवा चुकी है, लेकिन इसे भी सियासत ने ताश के पत्तों की तरह फेंट डाला। खनियारा में जिला स्तरीय स्टेडियम के लिए एक बड़ा मैदान वर्षों पहले तैयार हुआ, लेकिन राजनीतिक खींचतान में यह सपना भी अधूरा पड़ा है। मुझे कभी पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने खेल नगरी कहा और मैं कुछ कदम चला भी, लेकिन अचानक यह कारवां न खेल प्राधिकरण तक पहुंचा और न ही खेल विश्वविद्यालय को मैं अपने से जोड़ पाया। मेरे उपचुनाव में हालांकि खेल कोई मुद्दा नहीं, लेकिन पुलिस मैदान के विस्तार पर स्वयं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उस समय कह गए, जब सरकार का एक साला जश्न मेरे आंचल में जगह देख रहा था। अब इन्वेस्टर मीट के प्रयत्न में सरकार को साधुवाद देते हुए फिर उम्मीद करूंगा कि कोई न कोई हिमाचली खेलों में निवेश करते हुए मेरा एक अदद मैदान चुन ले। पुलिस मैदान के गेट से, कलम तोड़


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