गांधी आखिर गांधी क्यों

By: Oct 2nd, 2019 12:05 am

डा. सुधांशु कुमार शुक्ला

स्वतंत्र लेखक

राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में गांधी की प्रासंगिकता, गांधी के मूल्य, गांधी की गलती पर प्रश्न उठाते फिरते हैं। प्रवास के समय अर्थात पोलैंड में मैंने गांधी अर्थात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चिंतन मनन फिर किया। कारण स्पष्ट है कि यूरोप की बड़ी से बड़ी लाइब्रेरी हो, विश्वविद्यालय और दूतावास हो सब जगह गांधी जी की मूर्ति, गांधी जी चरखे के साथ तो कभी ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान की भजन पंक्ति में हैं। गांधी जी जिस भारत को या उनके सपनों का भारत कैसा हो? भारत के लोग कैसे हो? उसका वर्णन रामचरितमानस में मिलता है…

आज के माहौल में भारतीय जीवन की उठापटक, बाजारवाद का बढ़ता प्रभाव, पाश्चात्य संस्कृति की उन्मादी लहर ने कई बड़े-बड़े प्रश्न खड़े कर दिए हैं। दूसरे राजनीतिक गलियारों में गिरता स्तर और मानवीय नैतिकता का सूखते जाना, तरह-तरह की सोच को जन्म दे रहा है। आज हम अपने अतीत की गाथाओं में महापुरुषों के बारे में गाल बजाते, आंखें मटकाते नए तथ्यों, नई सोच को सोचने समझने को मजबूर कर रहे हैं। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में गांधी की प्रासंगिकता, गांधी के मूल्य, गांधी की गलती पर प्रश्न उठाते फिरते हैं। प्रवास के समय अर्थात पोलैंड में मैंने गांधी अर्थात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चिंतन मनन फिर किया। कारण स्पष्ट है कि यूरोप की बड़ी से बड़ी लाइब्रेरी हो, विश्वविद्यालय और दूतावास हो सब जगह गांधी जी की मूर्ति, गांधी जी चरखे के साथ तो कभी ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मत्ति दे भगवान की भजन पंक्ति में हैं। गांधी जी जिस भारत को या उनके सपनों का भारत कैसा हो? भारत के लोग कैसे हो? उसका वर्णन रामचरितमानस में मिलता है।

श्रीराम ने लंका पर विजय ऐसे ही प्राप्त नहीं कर ली, राम को नल-नील, जामवंत, केवट, वानर यहां तक कि विभीषण की भी सहायता लेनी पड़ी। यदि भारत का उत्थान, विकास करना है तो सभी वर्ग के लोगों को साथ लेकर चलना होगा, तभी देश आगे बढ़ेगा। अमीर और अधिक अमीर तथा गरीब और अधिक गरीब क्यों होता चला जा रहा है? उसका कारण आर्थिक असंतुलन है। आर्थिक असमानता ने मनुष्य-मनुष्य के बीच खाई पैदा कर दी है। गांधी जी ने सत्य और अहिंसा दो ब्रह्मास्त्र दिए, जिसके बल पर देश ने करवट ली, देश गुलामी की जंजीरों से मुक्त हुआ। गांधी जी का सत्य और अहिंसा हमारे इन दो मूल ग्रंथों का सार है। गांधी जी कहते हैं- मेरे पास दुनिया को सिखाने के लिए कुछ भी नया नहीं है, सत्य और अहिंसा उतने ही पुराने हैं, जितने कि पर्वत। इन दोनों का प्रयोग मैंने एक व्यापक पैमाने पर किया, जितना में कर सकता था। इस प्रक्रिया में मैंने कभी-कभी गलतियां की और उनसे सीखा भी।

वस्तुतः सत्य की खोज में मैंने अहिंसा को खोज लिया। गांधी जी का सत्य क्या है, उनका सत्य सत्यम शिवम सुंदरम है। भारतीय दर्शन भी यही कहते हैं। सत्य कल्याणकारी और सुंदर है। इस तरह से केवल सत्य ही अटल है और अटल ईश्वर है, मेरे लिए ईश्वर सत्य और प्रेम, नैतिकता, नीति और निडर है, ईश्वर प्रकाश और जीवन का स्रोत है लेकिन इसके बावजूद वह इन सबसे परे है। ईश्वर अंतकरण है। जब गांधी जी यह कहते हैं कि सत्य ही ईश्वर है और ईश्वर ही सत्य है अर्थात जो सच है, जो अटल है, जिसका स्वरूप नहीं बदलता। एक मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं। अर्थात सत्य केवल मैं ‘ईश्वर’ हूं। जगत मिथ्या है, झूठ है, जिसका कोई स्वरूप नहीं होता है। मानव जीवन में सत्य ही स्थायीत्व को धारण किए हुए है। झूठ माया के प्रपंच से माया की चमक से आकर्षित अवश्य करता है। लेकिन वह क्षण भंगुर होता है। गांधी जी का सत्यए ईश्वर और नैतिकता ही मानवीय जीवन मूल्यों का आधार है। इसी के आधार पर उन्होंने सत्य की खोज, सत्य के प्रयोग किए, परिणाम स्वरूप प्रयोगों द्वारा निखरा सत्य कोहिनूर बन गया। गांधी जी ने सत्य के साथ अहिंसा को जोड़ा, जो उनकी सोच दृष्टि को उजागर करता है। वास्तव में सत्य और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू है। दोनों का परस्पर घनिष्टतम संबंध है। अहिंसावादी कायर नहीं होता है, वह तो मात्र सत्य से बंधे रहने के कारण मानवतावादी होता है। गांधी जी ने लिखा है- अहिंसा किसी को चोट न पहुंचाने की नकारात्मक अवस्था मात्र नहीं है, अपितु यह बुराई करने वाले के प्रति भी भलाई करने के रूप में प्रेम का एक सकारात्मक पक्ष है।

इसके विपरीत प्रेम जो  कि अहिंसा की एक सक्रिय अवस्था है, इस बात की अपेक्षा रखता है कि वह गलत करने वाले से स्वयं को अलग कर उसका विरोध करे, भले ही इससे गलत कार्य करने वाला नाराज हो या उसे चोट पहुंचे। अपने सकारात्मक अर्थ में अहिंसा सर्वोत्तम प्रेम है, सर्वोच्च उदारता है। यदि मैं अहिंसा का अनुरागी हूं तो अपने शत्रु से भी प्रेम करूंगा। वे कहते हैं अहिंसा अचूक है, वह कभी नाकाम नहीं जाती। गांधी जी की अहिंसावादी दृष्टि मानवतावाद के लिए है। आज के संदर्भ में जब आतंकवाद, भ्रष्टाचार का बोलबाला है, तब गांधी कैसे प्रासंगिक हो सकते हैं। हम कुछ प्रजातियों की रक्षा के लिए हिंसक जानवरों को मारते हैं, कुछ विशेष परिस्थितियों में मनुष्य की हत्या भी जरूरी हो जाती है। मान लें कि एक व्यक्ति पागल की तरह हाथ में तलवार लेकर उग्रतापूर्वक दौड़ रहा है और अपने रास्ते में आने वाले हर व्यक्ति को मार दे रहा है तथा उसे जिंदा पकड़ने का साहस कोई नहीं कर पा रहा है।

ऐसे में कोई भी जो इस सनकी व्यक्ति को मारेगा तो वह सम्मान का हकदार होगा और लोग उसे परोपकारी मानेंगे। गांधी को राजनीति के गलियारों से ऊपर उठकर पढ़ना होगा। राजनीति करना उनका उद्देश्य नहीं था। तत्कालीन भारत और साउथ अफ्रीका में फैले बैर भाव अस्पृश्यता को दूर कर मनुष्य को मनुष्य से प्रेम करना सिखाना था। उन्होंने वैसा किया भी। आज विश्व का हर बड़ा नेता, चिंतक गांधी दर्शन की बात करता ही नहीं है अपितु उनका मुरीद बन गया है। प्रवास के समय लोगों से भारत और राष्ट्रपिता गांधी की बात करने से स्वयं को गौरवान्वित ही नहीं महसूस करता हूं अपितु उस ऋषियों-मुनियों की पावन धरती, तपोवन भूमि को याद करता हूं, जहां गांधी का जन्म हुआ। गांधी दर्शन एक ऐसी विचारधारा है जो हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाकर विश्व बंधुत्व का पाठ पढ़ाती है।


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