ज्ञान का संग्रह

By: Oct 19th, 2019 12:15 am

आधुनिक मनुष्य एक बहुत ही नई घटना है। कोई भी परंपरागत विधि अपने वर्तमान रूप में प्रयुक्त नहीं हो सकती। क्योंकि आधुनिक मनुष्य पहले कभी था ही नहीं, अतः सभी पुरातन विधियां अब असंगत हो गई हैं। उदाहरण के तौर पर शरीर इतना बदल गया है, इतना व्यसनी हो चुका है कि कोई विधि सहायक नहीं हो पाती। आज पूरा वातावरण बनावटी हो चुका है हवा, पानी, समाज, रहन-सहन कुछ भी सहज नहीं है। आप बनावटीपन में ही जन्मते हैं  उसी में बड़े होते हैं। तो परंपरागत विधियां हानिकारक सिद्ध होंगी। उन्हें आधुनिक संदर्भ के साथ-साथ बदलना पड़ेगा। दूसरी बात मन का गुण धर्म अब बदल चुका है। पतंजलि के युग में मनुष्य के व्यक्तित्व का केंद्र मस्तिष्क नहीं हृदय था। इससे पहले हृदय भी नहीं था। उससे भी नीचे के तल पर नाभि के पास। अब यह तल नाभि से भी दूर हो गया है। अब केंद्र मस्तिष्क हो गया है। तभी कृष्णामूर्ति जैसे व्यक्तियों की देशनाएं आकर्षित करती हैं। कोई विधि नहीं, कोई तकनीक नही बस समझ चाहिए। परंतु यह समझ केवल शाब्दिक, केवल बौद्धिक है, बदलता कुछ भी नहीं, रूपांतरण कुछ भी नहीं होता। यह फिर से ज्ञान का संग्रह बन जाता है। मैं व्यवस्थित विधियों की बजाय अराजक विधियां इस्तेमाल करता हूं क्योंकि अराजक विधि केंद्र को मस्तिष्क के नीचे ढकेलने में सहायक होती है।

कोई भी व्यवस्थित ध्यान केंद्र को नीचे ढकेलने में असमर्थ होता है क्योंकि व्यवस्थापन मस्तिष्क का कार्य है। व्यवस्थित ढंग द्वारा मस्तिष्क और भी सशक्त होता है, इसमें और भी ऊर्जा बढ़ती जाती है। अराजक विधि द्वारा मस्तिष्क प्राणविहीन होता जाता है।

इसका कोई लेना-देना नहीं रहता। यह विधि इतनी अराजक होती है कि केंद्र स्वतःही मस्तिष्क से हृदय की ओर धकेला जाता है। यदि आप मेरे सक्रिय ध्यान को पूरी शक्ति से, अव्यवस्थित, अराजक ढंग से करते हैं, तो आपका केंद्र हृदय की ओर आने लगता है। तभी रेचन होगा। रेचन आवश्यक है क्योंकि मस्तिष्क के कारण हृदय दमित है। आपका मस्तिष्क आपके व्यक्तित्व पर इतना हावी हो गया है कि यह आपको नियंत्रित करता है। हृदय के लिए कोई स्थान नहीं अतः हृदय की आकांक्षाएं दबी रहती हैं। आप कभी दिल खोल कर नहीं हंसे, दिल खोल कर नहीं जिए, कभी भी दिल खोल कर कुछ नहीं किया। चीजों को गणित के अनुसार व्यवस्थित करने के लिए मस्तिष्क एकदम बीच में आ जाता है। अतः सर्वप्रथम एक अराजक विधि चाहिए जो चेतना के केंद्र को मस्तिष्क से हृदय पर ले जाए। फिर हृदय को निर्भार करने के लिए दमित भावों को बाहर फेंकने के लिए रेचन चाहिए। यदि हृदय हल्का तथा निर्भार हो तो चेतना का केंद्र और भी नीचे लाया जा सकता है, यह नाभि के पास आ जाता है। नाभि हमारे प्राणों का स्रोत है, वह बीज स्रोत जहां से हर चीज का उद्गम है शरीर, मन और सभी कुछ।

मैंने इस अराजक ध्यान विधि का प्रयोग बहुत समझ बूझ कर किया है। व्यवस्थित प्रणाली अब उतनी सहायक नहीं रही क्योंकि मस्तिष्क इसे अपने यंत्र के लिए इस्तेमाल करेगा। भजन गान अब उतना उपयोगी नहीं क्योंकि हृदय बहुत बोझीला हो गया है और भजन गान में न खिल पाएगा। चेतना के स्रोत तक लाना होगा। अतः मैं अराजक विधियों का उपयोग चेतना को मस्तिष्क से नीचे उतारने के लिए करता हूं। जब भी आप अव्यवस्थित होते हैं, तो आपका मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है।


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