पेंशनरों से कब होगा न्याय

By: Oct 23rd, 2019 12:05 am

हरि मित्र भागी

लेखक, धर्मशाला से हैं

फिर भी अभी तक यह वृद्धि मूल वेतन में क्यों लागू नहीं की गई? सरकार को इस विषय में शीघ्र ही निर्णय लेना चाहिए। पेंशनर वरिष्ठ नागरिक भी होते हैं, इसलिए यह मांग भी है कि उनका चिकित्सा भत्ता कम से कम एक हजार रुपए किया जाए। जो अस्पताल में दाखिल हों, उनके लिए कैशलैस व्यवस्था लागू की जाए। पेंशनरों को कई बार औपचारिकताओं के चलते अपने बिलों की अदायगी का कई महीनों इंतजार करना पड़ता है। इसलिए कैशलैस व्यवस्था लागू करके इस झंझट से छुटकारा दिलाया जाए। बसों में कम से कम किराए में पचास प्रतिशत छूट होनी चाहिए। दो वर्ष में एक बार यात्रा के लिए एलटीसी सुविधा हो…

हिमाचल प्रदेश के सर्वांगीण विकास में प्रदेश के पेंशनरों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हिमाचल में प्रकृति के उपहार को जो विकास की महक प्रदान की गई, उसमें राज्य के पेंशनरों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश में सड़क, पुल, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, बागबानी, राजस्व, पर्यटन, विद्युत, पन बिजली योजनाएं, अनुसंधान केंद्र इन सभी क्षेत्रों में पेंशनरों ने कर्म ही पूजा के सिद्धांत पर चलते हुए बड़े उत्साह व परिश्रम से विघ्न बाधाओं को पार करते हुए कार्य किया। जितना उस समय वेतन मिलता था उसे अधिक समर्पित ढंग से कार्य किया है। जनता के साथ तालमेल, दार्शनिक, शिक्षक मार्गदर्शन की तरह अनुभव सांझा किए। प्रदेश के कई क्षेत्र दुर्गम व समुद्रतल से काफी ऊंचाई पर स्थित है। उस समय बिजली, पानी, सड़कों, परिवहन की विशेष व्यवस्था नहीं थी। उन्होंने आज के कल के अनुकूल बनाने के लिए प्रतिकूल प्ररिस्थिति में कार्य किया। ऐसी परिस्थितियों में आवश्यक है कि सरकार ऐसे वर्ग की अनदेखी न करते हुए उनकी समस्याओं को जायज व न्यायसंगत समझते हुए उन्हें संजीवनी प्रदान करे। पेंशनरों को चिरकालीन मांग है कि पाच -दस साल बाद जो पांच, दस प्रतिशत जो वृद्धि की जाती है उसे मूल वेतन में डाला जाए। यह तार्किक इसलिए है कि जब कर्मचारी सेवारत होता है तो उसकी वार्षिक वृद्धि उसके मूल वेतन में विलय कर दी जाती है। उसी प्रकार पेंशन के नियम लागू होने चाहिए। वास्तव में मांग नहीं, यह एक विसंगति है जिसे दूर किया जाना आवश्यक है। यह दोनों समानांतर नहीं चलने चाहिए, यही निवेदन है, यही तार्किक व न्यायसंगत तथ्य है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसकी घोषणा भी कर दी थी। यह ठंडे बस्ते में चली गई। सुंदरनगर में पेंशनरों का विशाल सम्मेलन हुआ। वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने यह मांग रखी गई। विधायकों ने भी इसका समर्थन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह अधिकारियों से विचार करके इस संबंध में निर्णय लेंगे। परंतु आज तक कोई निर्णय नहीं हुआ। सरकार को इस विषय में जल्द से जल्द निर्णय लेना चाहिए। जन प्रतिनिधि भी यह समझते हैं कि सरकार की जितनी भी योजनाएं लागू हुईं, निर्णय तो राजधानी से हुए व धरातल पर उन्हें किन परिस्थितियों में लागू किया, उनमें पेंशनरों का मौलिक योगदान रहा है।

फिर भी अभी तक यह वृद्धि मूल वेतन में क्यों लागू नहीं की गई? सरकार को इस विषय में शीघ्र ही निर्णय लेना चाहिए। पेंशनर वरिष्ठ नागरिक भी होते हैं, इसलिए यह मांग भी है कि उनका चिकित्सा भत्ता कम से कम एक हजार रुपए किया जाए। जो अस्पताल में दाखिल हों, उनके लिए कैशलैस व्यवस्था लागू की जाए। पेंशनरों को कई बार औपचारिकताओं के चलते अपने बिलों की अदायगी का कई महीनों इंतजार करना पड़ता है। इसलिए कैशलैस व्यवस्था लागू करके इस झंझट से छुटकारा दिलाया जाए। बसों में कम से कम किराए में पचास प्रतिशत छूट होनी चाहिए। दो वर्ष में एक बार यात्रा के लिए एलटीसी सुविधा हो। पंचायत स्तर पर सामुदायक भवन हो जिसके पुस्तकालय, फिजियोथरेपी व चिकित्सा जाचं की सुविधा हो। जिला स्तर पर बैठक करने के लिए सभागार हो जहां वे अपने विचारों व अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकें व सरकार को भी अपने विचार दे सकें। सरकार चाहे तो उनके अनुभवों का लाभ उठा सकती है। आजकल के युग में उन्हें एकाकीपन की अनुभति न हो सके, अपने सुख-दुख काट सकें। पेंशनर अभी भी समाज में अपनी बहुमूल्य सेवांए दे रहे हैं। जिला की विकास समितियों व प्रदेश स्तर पर जो निणर्य लिए जा सकता हैं। उनके अनुभव का लाभ उठाया जा सकता है। यह राष्ट्र की अमूल्य निधि है। उनके चिकित्सा बिलों की अदायगी समय पर हो। अस्पतालों में जो उनके लिए  अलग लाइन का व्यवहारिक रूप में पालन हो। उनकी सामाजिक आर्थिक दशा की  ओर विशेष ध्यान दिया जाए। उनके शारीरिक व मानसिक दशा की ओर विशेष ध्यान दिया जाए। उन्हें कार्यालयों में बार-बार चक्कर न काटने पड़े। जब संयुक्त परिवारों के स्थान पर परिवारों का विघटन हो रहा है, इनकी ओर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। प्रदेश  में रोजगार नहीं  है तो बच्चों को घरों से दूर देश -विदेशों में जाना पड़ता है। इसलिए मां-बाप घर में अकेले होते हैं, इसलिए सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान दें। सरकार को इस संवेदनशील विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा। इस आयु में कई प्रकार की शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। सरकार को वैसे भी इनकी समस्याओं के लिए आर्थिक स्थिति की बाधा रुकावट बन  रही है जैसे तर्क का हवाला नहीं देना चाहिए। यदि विधायकों  के भत्तों के लिए  किसी प्रकार की आर्थिक बाधा आड़े नहीं आती तो उन पेंशनरों के लिए आर्थिक बाधाएं क्यों आ रही हैं?

माननीय मुख्यमंत्री जो घोषणा करते हैं, वह कार्यान्वित नहीं होती दूसरे मुख्यमंत्री कहते हैं कि अधिकारियों से विचार विमर्श किया जाएगा। सरकार को चाहिए कि  उन पेंशनरों  जिन्होंने जमीनी स्तर पर सरकार की योजनाओं  को लागू किया उसके साथ उनकी सेवाओं व उनकी  समस्याओं को मद्देनजर रखते हुए 65-70 की विसंगति को दूर करना चाहिए व अन्य मांगों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। सरकार बनाने में भी इनकी महत्त्वपूर्ण  भूमिका होती। आशा की जाती है कि सरकार पेंशनरों की मांगों को प्राथमिकता के आधार पर हल करेगी।


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