फिल्म उद्योग का संपर्क सेतु
सिने पर्यटन की संभावनाओं में जयराम सरकार की फिल्म नीति का जिक्र शुरू हुआ, तो भारतीय फिल्म निर्माता संघ के कार्यकारी अधिकारी कुलदीप मक्कड़ का शिमला दौरा इसे अंगीकार करता हुआ दिखाई देता है। रही फिल्म नीति की व्याख्या, तो इसे अभी व्यावहारिकता के कैनवास पर उतरना है और इसके लिए स्थानीय परिप्रेक्ष्य में इसकी मजबूती परखनी होगी। यह दीगर है कि सरकार ने फिल्म उद्योग के साथ संपर्क सेतु के रूप में फिल्म नीति के तहत ढांचागत प्रोत्साहन का आरंभिक खाका बनाया है, लेकिन दिशा का निर्धारण और स्पष्ट करना होगा। कहना न होगा कि सिने पर्यटन को डेस्टिनेशन के मुकाम तक पहुंचाने के लिए कारोबारी अंदाज चाहिए और यह भी जरूरी है कि इसके दायरे में मांग की आपूर्ति हो। यानी फिल्म नीति केवल हिमाचल से फिल्म निर्माण की सहूलियतों का महज वर्णन न होकर उन संभावनाओं का खुलासा व व्यापक नीतियों का समर्थन भी करे, जिनके तहत कारवां बनेगा। इसके लिए बाकायदा एक फिल्म बोर्ड की स्थापना या कला-संस्कृति के विभागीय ढांचे की नई प्रस्तुति चाहिए। प्रदेश के सांस्कृतिक पक्ष की कोई स्वतंत्र गवर्निंग बॉडी नहीं है और न ही कलाकारों, कला समीक्षकों तथा कला प्रेमियों की भूमिका को समझा गया। कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग या अकादमी के योगदान को मात्र भाषा या साहित्य के संदर्भों में देखा जाता है और यह इसलिए भी कि इनका नेतृत्व इसी लिहाज से हुआ। प्रदेश के मेलों, सांस्कृतिक समारोहों और अब फिल्म नीति की अवधारणा में इन तमाम उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, स्वतंत्र प्रारूप में किसी बोर्ड या प्राधिकरण का गठन करना होगा। पर्यटन और सिने पर्यटन के अंतर को समझने तथा मनोरंजन के खाके में उल्लास को निरुपित करने के लिए एक ऐसे प्रतिष्ठान की जरूरत है जो अपनी योजनाओं-परियोजनाओं को आकार दे सके। प्रदेश के तमाम मेलों और सांस्कृतिक समारोहों के आयोजन, फिल्मांकन तथा सिने पर्यटन की तस्वीर में इजाफा करने के लिए लोकेशन व्यवस्था के साथ-साथ विभिन्न मंजूरियों व इंतजाम की जिम्मेदारी से जुड़े पैकेज बनाने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं हिमाचल की पृष्ठभूमि से जुड़ी प्रस्तुतियां, प्राकृतिक आकर्षणों की सामग्री तथा फिल्म उद्योग की मांग के अनुरूप तैयारी की गारंटी देने के लिए दक्षता के साथ पूरी व्यवस्था में निपुणता तभी आएगी, जब एक विशेष बोर्ड या प्राधिकरण इन्हें देखेगा। प्रदेश में सिने पर्यटन के लिहाज से विभिन्न स्थलों का चयन केवल नैसर्गिक सौंदर्य से ही नहीं होगा, बल्कि मनोरंजन पार्कों, फूल वाटिकाओं, वोटैनिकल गार्डन, टी गार्डन, ट्यूलिप गार्डन व एग्रो पर्यटन जैसी सुविधाओं से परिष्कृत होगा। प्रदेश के विभिन्न बांधों में नौकायन, साहसी खेलों के आयाम और ईको साइट्स के विस्तार से परिपूर्ण होगा, लेकिन इसके साथ-साथ, भारी उपकरणों से सुसज्जित स्टूडियो, फिल्म सिटी तथा फिल्म एवं टीवी प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने की जरूरत है। आश्चर्य है कि सरकारें हिमाचली परिदृश्य में यह तय नहीं कर पाईं कि सिने पर्यटन का सेतु बनने के लिए एक अदद फिल्म सिटी चाहिए। गरली-परागपुर की धरोहर विरासत में फिल्म सिटी बस घोषित करने का इंतजार कर रही है, जबकि वहां की दर्जनों इमारतें अपनी वास्तुकला के कारण अलग-अलग पृष्ठभूमि के स्टूडियो में रूपांतरित हो सकती हैं। गरली-परागपुर की परिधि में हिमाचल की विविधता का एक लंबा गलियारा न केवल पौंग झील, कांगड़ा के चाय बाग, धौलाधार के नजारों, हरिपुर-गुलेर से सुजानपुर तक के धरोहर भवनों, बल्कि डलहौजी की बर्फबारी, खजियार के नजारों तथा चंबा के कलात्मक पक्ष तक विकसित हो सकता है। प्रदेश में शिमला व धर्मशाला के फिल्म फेस्टिवल खासे चर्चित हो रहे हैं और अगर इन्हें भी डेस्टिनेशन के रूप में देखा जाए, तो बालीवुड के साथ-साथ देश की संपूर्ण फिल्म इंडस्ट्री के लिए हिमाचल के पैगाम सार्थक होंगे। इसी के साथ हिमाचल में मनोरंजन की सुविधाओं का विस्तार भविष्य में मल्टीप्लेक्स के अलावा सभागारों की स्थापना में सहायक होगा।
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