भगवान किसी को नाखून न दे

By: Oct 29th, 2019 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

कई बार मेरे दिल में साहिर लुधियानवी की तरह ख्याल तो आता है, लेकिन तुम्हें लेकर नहीं। नाखून को लेकर। सोचता हूं कि नाखून बनाए ही गलत गए हैं। आदमी चाहे मेरी तरह गंजा हो, सदी के महानायक की तरह विग पहनता हो या उसके सिर पर कोरियन घास की तरह घने बाल हों, अगर नाखून होंगे तो अपना सिर जरूर खुजाएगा, लेकिन अकलमंद तो वही कहलाएगा जो सिर्फ अपने विरोधियों के खिलाफ इनका इस्तेमाल करता हो, वह भी हथियार की तरह। ठीक वैसे ही जैसे हमारी व्यवस्था करती है। फिर व्यवस्था में तो हर उस आदमी के पास नाखून होते हैं, जो सत्ता में हो, ताकतवर हो, अमीर हो, रसूख वाला हो, चालू हो या फिर बेशर्म। नाखूनहीन तो बस गरीब होता है या फिर संवेदनशील व्यक्ति या आम जनता, जो हर बार ठगे जाने पर भी कबूतर की तरह आंखें बंद कर व्यवस्था में विश्वास बनाए रखती है और हर इलेक्शन में पता होने के बावजूद चाहे ऐरा हो, गैरा हो या फिर नत्थू खैरा, ईवीएम में उसके नाम पर पीं की आवाज वैसे ही निकालती रहती है जैसे कोई चूहा सांप के मुंह में जाने से पहले निकालता है। वैसे अकलमंद मतदाता लाख चाहे तो भी इलेक्शन में जीतेगा तो ऐरा, गैरा या नत्थू खैरा ही। हमारा निजाम है ही ऐसा, लोकतंत्र के चोले में छिपा हुआ, दो मीटर की भगवा चैल में लिपटे किसी बगुला भगत की तरह। जीतने के लिए कुल मतों का मतदान प्रतिशत तो निर्धारित है नहीं। ऐसे में चाहे मतदान एक प्रतिशत ही क्यों न हो, जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे वही मुकदर का सिकंदर कहलाएगा। फिर जनता के पास कोई ऑप्शन भी तो नहीं होती। बेचारी जिस व्यक्ति या दल को उसकी नाकामी की वजह से आज नकार देती है, अगली बार घूम-फिर कर उसे ही जिता देती है। उसे बेचारा समझकर, खुद बेचारा बन जाती है। अभी जिसे पप्पू समझ कर, टप्पू को वोट दे रही है, उसी के टप्पों से परेशान होकर कुछ सालों बाद उसी पप्पू के नाम से पीं की आवाज निकाल देगी। यह सोचकर कि बेचारा कई सालों से लगा है, इस बार इसे भी मौका दे देते हैं। इतने सालों से जिन्हें जिता रहे थे उन्होंने हमें कौन सा च्यवनप्राश खिलाया है, जो यह घास खिला देगा। बशर्ते, ईवीएम में हेरा-फेरी के जो आरोप लग रहे हैं, वे मुस्तकबिल में कहीं सच ही साबित न हों।  नहीं तो कोरी घोषणाओं का जो प्रसाद जनता को खिलाया जा रहा है, वह व्यवस्था के प्रसाद में टप्पुओं को उसी तरह बनाए रखेगा जैसे कोई हीरोइन बूढ़ी होने के बावजूद कॅस्मेटिक सर्जरी के सहारे ताउम्र ड्रीमगर्ल बनी रहती है। चाहे उसके अंजर-पंजर पूरी तरह ढीले हो चुके हों। विशाखदत्त ने अपने ऐतिहासिक नाटक मुद्राराक्षस में कहा है कि वह शख्स ही क्या, जिसे सत्ता मिले और उसका दिमाग खराब न हो। ऐसे में ऐसा आदमी तो नल्ला ही कहलाएगा, जिसके सिर पर सत्ता चढ़कर न बोले और जो सत्ता के नाखूनों से दूसरे के तन से खून न निकाल सके। नाखून मिलते ही आदमी दूसरों को प्यार से खुजाना शुरू कर देता है। अब अगर खुजाते-खुजाते खून निकल आए तो उस बेचारे की क्या गलती?


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App