हमारे ऋषि-मुनि, भागः 10 महर्षि दत्तात्रेय

By: Oct 19th, 2019 12:15 am

माता अनसूया तथा अत्रि। इन माता-पिता की तपस्या का इस बालक पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वही राह ली जो मां-बाप की थी। वैसे भी नाना थे कर्दम प्रजापति और नानी थी देवहूति। मामा थे कपिलदेव। दत्तात्रेय के कुल संस्कार वातावरण के कारण ही उत्तम थे। दत्तात्रेय मुनि के ताया जी, सनत्सुजात का भी पूरे परिवार पर प्रभाव था। दत्तात्रेय के अपने दो अन्य भाई थे, दुर्वासा तथा चंद्रमा। यह तो और भी अच्छी बात थी। सोने पर सुहागा।

ऋभु थे गुरु

तीनों भाइयों ने गुरुकुल में रहकर उत्तम शिक्षा पाई। महर्षि ऋभु से ज्ञानबुद्धि पाई। तत्त्वज्ञान की पूरी जानकारी पा ली । उन्होंने संप्रदाय तथा गुरु मर्यादा की रक्षा पूरी लगन के साथ की। ऋभु गुरु से ही संपूर्ण मंत्र रहस्य और उपासना की शिक्षा पा ली।

बालकों से प्रेम

गुरु ऋभु से आज्ञा लेकर दत्तात्रेय अपने पिता अत्रि के आश्रम के पास ही रहने लगे। क्योंकि उन्हें छोटे भाई से बड़ा प्यार था तथा उन्हीं में रुचि रहती, इससे दत्तात्रेय का काफी समय व्यतीत हो जाता। शरीर सुंदर था। स्वभाव से शील तथा बातचीत से मधुर। बच्चों में खेलते रहने के कारण योगाभ्यास में कमी रहने लगी । 

आश्चर्यजनक घटना 

जब दत्तात्रेय जी ने यह निश्चय कर लिया कि वह इन बालकों से दूर हो जाएंगे, तो खेल के समय, उन्हीं के सामने उन्होंने एक तालाब में प्रवेश किया और फिर तीन दिनों तक इसी तालाब से अपनी सिद्धियों व शक्तियों के कारण डूबे रहे। भगवान विष्णु के अंश अवतार दत्तात्रेय ने सोचा कि बालक उन्हें मृत, डूबा हुआ मानकर दूर चले जाएंगे, भूल भी जाएंगे। मगर बालकों को दत्तात्रेय में उनसे कहीं अधिक प्रेम था, इसलिए वे तीन दिन भूखे-प्यासे प्रतीक्षा में वहीं डटे रहे। दत्तात्रेय में माता-पिता को सूचित किया, मगर उन्होंने जरा भी चिंता नहीं की। वे दत्तात्रेय में निहित शक्तियों को जानते थे। तीन दिनों बाद वे बाहर निकले प्रसन्नता को माहौल बना। मित्रों ने अनेक प्रश्न पूछे। कहां व कैसे थे, जानना चाहा। मगर दत्तात्रेय गूंगे बने रहे, एक शब्द भी नहीं बोले, हो गया रोना शुरू। उन्होंने पुनः छलांग लगा दी तालाब में। तीन दिनों तक तालाब में डूबे रहे। जब निकले तो नजारा देखने वाला था। अपनी योग शक्ति से रूप रंग बदल गया। वाम अंग में एक सुंदर लड़की गहनों से सजी संवरी थी। उनके अपने हाथ में मदिरा का भरा हुआ गिलास गिरते पड़ते बाहर निकले। उनके मित्रगण, गांव वाले दत्तात्रेय की निंदा करने लगे। कई बातें कह दीं, जो चुभने वाली थीं। उन दोस्तों की नजर में दत्तात्रेय भ्रष्ट व दुष्ट हो गए। अपने योगबल से ऐसा झूठा वातावरण बना लिया कि सब घृणा करने लगे। उनका अपना चरित्र उत्तम बना रहा। उनमें कोई बुराई न थी।   तत्त्वज्ञान दिया उन्होंने उनसे अनेक ऋषियों ने तत्त्वज्ञान पाया। प्रह्लाद, अलर्क तथा यदु उन्हीं के कारण बने। परमकल्याण उन्हें दत्तात्रेय ने दिया। माना जाता है कि आज भी सह्यपर्वत पर रात्रि विश्राम करते हैं। भोजन करने गोदावरी तट पर पहुंचते हैं। करवीर में वे भिक्षा मांगते हैं। अनेक बार, अनेक श्रद्धालुओं को उन्होंने दर्शन भी दिए हैं, लोग ऐसा बताते हैं।                                        – सुदर्शन भाटिया 

 


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