इन्वेस्टर मीट की दिशाएं

By: Oct 26th, 2019 12:06 am

कुलभूषण उपमन्यु

स्वतंत्र लेखक

यहां तीन तरह के उद्यमों की संभावनाएं हैं। संसाधन आधारित, कौशल आधारित, और मांग आधारित। हिमाचल प्रदेश पारिस्थितिकीय और पर्यावरण की दृष्टि से हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, जिसमें औद्योगिक या अन्य निर्माण गतिविधियों को बहुत ही सावधानीपूर्वक आयोजित करने की जरूरत रहती है। हिमालय देश के लिए शुद्ध पानी, शुद्ध वायु, और उपजाऊ मिट्टी बनाने वाला कारखाना है, यानी जीवन के आधारभूत तत्त्वों को देने वाला है जिसके बिना जीवन चक्र ही खतरे में पड़ सकता है…

हिमाचल प्रदेश आज कल उद्योगों में निवेश आकर्षित करने के लिए उत्साह पूर्वक इन्वेस्टर मीट की तैयारियों में लगा है। जिस प्रदेश की जनसंख्या का 10 प्रतिशत बेरोजगारी की लाइन में लगा हो वहां हर आदमी इसके आयोजन पर उत्साहित लगे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। प्रदेश में साढ़े चार लाख रोजगारों में से डेढ़ लाख से ज्यादा रोजगार निजी क्षेत्र में मिले हैं। राजकीय क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं घटती जा रही हैं, तो निजी क्षेत्र की ओर ध्यान जाना स्वाभाविक ही है। इस समय लगभग 9 लाख बेरोजगार रोजगार कार्यालयों में दर्ज हैं जिनमें से केवल 3 लाख ही कौशल युक्त हैं, शेष अकुशल मिडल या जमा दो तक शिक्षित हैं जिनके पास कोई अन्य कौशल नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार कौशल विकास पर काफी ध्यान दे रही है। यहां तीन तरह के उद्यमों की संभावनाएं हैं। संसाधन आधारित, कौशल आधारित, और मांग आधारित। हिमाचल प्रदेश पारिस्थितिकीय और पर्यावरण की दृष्टि से हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्र में स्थित है, जिसमें औद्योगिक या अन्य निर्माण गतिविधियों को बहुत ही सावधानी पूर्वक आयोजित करने की जरूरत रहती है। हिमालय देश के लिए शुद्ध पानी, शुद्ध वायु, और उपजाऊ मिट्टी बनाने वाला कारखाना है, यानी जीवन के आधार भूत तत्त्वों को देने वाला है जिसके बिना जीवन चक्र ही खतरे में पड़ सकता है। ये जो अनेक पर्यावरणीय सेवाएं हिमालय देता है, इसका कोई विकल्प भी नहीं हो सकता है। इसलिए यहां उम्मीद की जानी  चाहिए कि सरकार इन बातों को ध्यान में रख कर ही इन्वेस्टर मीट की दिशा तय करेगी। वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी एक अच्छा सूत्र दिया है, ‘जीरो एफ्फेक्ट और जीरो डिफेक्ट’ उत्पादन प्रक्रिया अपनाना। यानी पर्यावरण पर शून्य बुरा असर हो और गुणवत्ता में शून्य त्रुटि हो।

 राज्य सरकार ने भी अपनी उद्योग नीति  में उच्च प्राथमिकता वाले और कम प्राथमिकता वाले उद्योगों को विभाजित किया है और उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों को ज्यादा प्रोत्साहन दिया जाता है। इस श्रेणी में वही उद्योग हैं जो हिमालयी पर्यावरण और परिस्थिति पर न्यूनतम दुष्प्रभाव डालते हैं। जैसे कि कृषि आधारित, प्रसंस्करण आधारित, पर्यटन, या सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्र। परंतु महत्त्वपूर्ण है कि  हम ठीक और अच्छी सोच को जमीन पर उतार पाते हैं या नहीं। पिछले अनुभव से कुछ चिंताएं उभरना भी स्वाभाविक है। मध्यम और लघु उद्यमों में, उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र में 2015 तक 3313 उद्यम काम कर रहे थे, और गैर प्राथमिकता वाले क्षेत्र में 13597 उद्यम काम कर रहे थे, अर्थात प्राथमिकता वाले क्षेत्र के केवल 19059 उद्यम ही जमीन पर उतरे थे। यानी 80 प्रतिशत से ज्यादा उद्यम गैर प्राथमिक श्रेणी के थे। हालांकि पर्यटन उच्च प्राथमिकता  वाला  क्षेत्र है, परंतु उसमें भी हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए स्की विलेज जैसे बृहदाकार उद्यमों को इजाजत नहीं दी जा सकती। अच्छी बात यह भी है कि इन्वेस्टर मीट में उच्च प्राथमिकता वाले उद्यमों को ही प्रमुखता दी गई है। जिनमें कृषि व्यवसाय, खाद्य प्रसंस्करण, औषधी निर्माण, पर्यटन, नागरिक उड्डयन, स्वास्थ्य देख-भाल, आयुष गृह निर्माण एवं नागर विकास, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स, शिक्षा और कौशल विकास, जल एवं नवीकरणीय ऊर्जा। जल विद्युत को लेकर भी कुछ  चिंताएं हैं। बड़ी और विस्थापन को बढ़ाने वाली परियोजनाएं प्रदेश के लिए हितकारी नहीं साबित होंगी। हमारा विस्थापन के बाद पुनर्वास को लेकर बहुत ही बुरा अनुभव है।

भाखड़ा एवं पौंग के विस्थापित अभी तक अधर में लटके हैं। पुनर्वास में जिस बात का ध्यान रखना जरूरी होना चाहिए वह है सतत् आय का सिद्धांत। जो आदमी विस्थापित होता है वह आजीविका के स्थायी आधार खो देता है, उसकी नकद भर पाई सतत् आजीविका की गारंटी नहीं दे सकती। दूसरी बात जो ध्यान में रखने वाली है वह यह है कि नदी के एक निश्चित भाग से ज्यादा का दोहन नहीं किया जाना चाहिए। कम से कम 50 प्रतिशत नदी को स्वतंत्र बहने की व्यवस्था होनी चाहिए। छोटी-  छोटी माइक्रो परियोजनाओं में भी स्थानीय जल अधिकारों, पुनर्वास और अन्य सुविधाओं का कई जगह ध्यान ही नहीं रखा जाता है जिसके कारण स्थानीय विरोध के स्वर उठते हैं जिससे समाज  में अशांति का वतावरण बनता है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार इस बात  को ध्यान में रख कर ही प्रोत्साहनों की दिशा तय करेगी और औद्योगीकरण का स्वस्थ और पर्यावरण मित्र मॉडल विकसित करने का प्रयास करेगी। बद्दी बरोटीवाला में औद्योगिक प्रदूषण से हमें सबक लेकर हिमाचल के अन्य आंतरिक भागों में सावधानी बरतनी होगी वरना हमारा पर्यटन उद्योग भी दुष्प्रभावित होगा। यहां कोई धूल और धुआं खाने क्यों आएगा। सौर ऊर्जा, पर्यावरण मित्र पर्यटन, कृषि प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सेवाएं, सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स, शिक्षा और कौशल विकास, आदि क्षेत्रों पर जोर देकर कुछ अवांछित क्षेत्रों को आकर्षित करने से बचा जा सकता है। ऊनी वस्त्र उद्योग के प्रसार की बड़ी संभावनाएं हैं, खास कर सिंथेटिक ऊन के कंबल आदि का प्राकृतिक विकल्प चाहिए। इनके सिंथेटिक सूक्ष्म रेशे स्वास के साथ अंदर जा कर कितना नुकसान पहुंचाते हैं, इन बातों का ध्यान रख कर, जागरूकता फैला कर नए आयामों और संभावनाओं के द्वार खोले जा सकते हैं। तीन से पांच हजार फुट ऊंचाई वाली पट्टी में गोला नाख जैसे फलों का रोपण करके और अन्य सड़े-गले फलों से एथनॉल बनाने की भी संभावनाएं देखी जा सकती हैं।


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