आचार्य वैशम्पायन

By: Nov 30th, 2019 12:25 am

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 16

वैशम्पायन ने अपने सभी शिष्यों से कहा कि वे मिलकर उस अपराध का प्रायश्चित करें। इससे उन्हें सुगमता होनी थी। मगर उनके भांजे ने जोर देकर कहा, ये शिष्य अभी छोटे हैं। मैं अकेले ही प्रायश्चित कर लूंगा। इस पर वैशम्पायन को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने द्वारा यजुर्वेद की जिन ऋचाओं का ज्ञान दिया था,वे सब उगल देने को कह दिया…

वैशम्पायन थे वेदों के आचार्य,कर्मकांड के भी ज्ञाता। उन्हें भगवद्लीलाओं से बहुत लगाव था। महाराज जनक के यज्ञ का आयोजन करने में इनकी विशेष भूमिका रही है। महर्षि वैशम्पायन के भांजे थे याज्ञवल्क्य। ये दोनों भी महाराज जनक के कार्यसिद्धि में लगे रहे।  मगर वहीं पर मामा-भांजे का किसी बात पर झगड़ा हो गया। बात काफी बढ़ गई। बड़ी ही कठिनाई से इन्हें शांत किया गया। कुछ समय बाद भांजे ने भगवान सूर्य की कठोर तपस्या कर,उन्हें प्रसन्न कर लिया तथा उनसे संहिता भी प्राप्त कर ली, तब मामा वैशम्पायन को बेहद खुशी हुई।  वह अपनी इस प्रसन्नता को छिपा नहीं पाए। उन्होंने अपने सभी शिष्यों को विशेष उद्देश्य के लिए एकत्रित किया। तब याज्ञवल्क्य द्वारा प्राप्त संहिता का वहां पाठ किया गया। इसे सबने ध्यानपूर्वक सुना व फिर पढ़ा भी। वैशम्पायन ने विद्वत्संन्यास ग्रहण किया एक समय आया जब वैशम्पायन ने अपना घर,आश्रम सब त्याग दिया। उन्होंने विद्वत्संन्यास ग्रहण कर लिया। वह वेदों के भी प्रसिद्ध आचार्य थे तथा अनेकानेक शिष्यों को ज्ञान बांटा। उनके भांजे याज्ञवल्क्य ने भी उनसे यजुर्वेद का गहन अध्ययन किया था, जो उन्होंने क्रोधित होकर उनसे वमन करवा के उगलवा लिया था।  ब्रह्महत्या का पातक लगा मेरुपर्वत के समीप बहुत से ऋषि इकट्ठे हुए। एक बड़ी सभा आयोजित की गई। यह कई दिनों तक चली। सभी को प्रतिदिन उपस्थित रहने को कहा गया। जो नहीं आ सकेगा, उसे सात दिन का वाचिक ब्रह्महत्या का पातक लगना था। इस भय से उपस्थिति बनी रहती। इसी बीच वैशम्पायन मुनि के पिता का श्राद्ध आ गया। उन्होंने श्राद्ध करना अधिक जरूरी समझा। इसके लिए उन्हें दंडित किया गया, पातक लगा दिया। वैशम्पायन ने अपने सभी शिष्यों से कहा कि वे मिलकर उस अपराध का प्रायश्चित करें। इससे उन्हें सुगमता होनी थी। मगर उनके भांजे ने जोर देकर कहा, ये शिष्य अभी छोटे हैं। मैं अकेले ही प्रायश्चित कर लूंगा। इस पर वैशम्पायन को क्रोध आ गया। उन्होंने अपने द्वारा यजुर्वेद की जिन ऋचाओं का ज्ञान दिया था,वे सब उगल देने को कह दिया। भांजा भी कम न था। उन्होंने इन्हें अन्नरूप में उगल फेंका और निर्णय कर लिया कि वह किसी को भी अपना गुरु नहीं मानेगा, मामा को  भी नहीं।

 – सुदर्शन भाटिया 


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